अन्तर्वासना कहानी अब आगे-
हर रोज़ का एक ही रूटीन है। जुगनू सुबह दस बजे आता है और बाहर ही इंतजार करता है। अंदर नहीं आता जब तक मैं उसे ना बुलाऊं। अगर मैंने फार्म पर जाना हुआ तो ठीक, वरना जुगनू जा कर फार्म से दूध, सब्ज़ियां, अंडे, मीट ले आता है। इसके बाद दोपहर को मैं सेक्टर सत्रह अपनी दुकानों पर चला जाता हूं।
वाइन शॉप के ऊपर वाले ऑफिस में बैठ कर अपने जैसे ही करोड़पति दोस्तों को बुला लेता हूं। इस ऑफिस में इकट्ठे बैठ कर हम दुनिया भर की बेमतलब की वाहियात बातें करते हैं, खुशवंत सिंह के नॉन वेज चुटकुले सुनते है और बियर पी कर टाइम पास करते है।
अब कोइ ये भी ना पूछे के ये खुशवंत सिंह कौन था। पूरी की पूरी नई दिल्ली – कनाट प्लेस का सारा इलाका, लुटियन, जहां हमारे भाग्यविधाता राजनीतीज्ञी, उच्चतम न्यायालय के जज रहते हैं और जनता के पैसे मौज करते हैं, सारा का सारा खुशवंत सिंह के फादर (पापा) “सर सोभा सिंह” का बसाया हुआ है। उन्हीं की बदौलत आज भी दिल्ली इतनी खूबसूरत है। वरना अब तो यहां ऐसी बस्तियां बस रही होती और उनमें में तो जाने में भी डर ही लगता।
खैर छोड़ो इन सब बातों को, अब चलते हैं अपने ऑफिस में।
अगर कोइ यार दोस्त ना आये तो ऑफिस में ही लगे दीवान पर मैं आराम करता हूं। चार पांच बजे मेरी घर वापसी हो जाती है और घर आ कर सात बजे मैं व्हिस्की की बोतल खोल कर बैठ जाता हूं, हमेशा की तरह।
जिंदगी हो तो ऐसी। मस्त ज़िंदगी है मेरी। परदादा, दादा, बाप मेहनत कर गए और मैं उसका फल खा रहा हूं। सच में ही ज़िंदगी हो तो ऐसी ही हो।
चंडीगढ़ की सबसे महंगे सेक्टर पांच में हमारा घर तो है ही, जैसा की मैंने आप भाईयों को बताया है, हमारा चंडीगढ़ के पास मुल्लनपुर में एक फार्म भी है – बारह एकड़ का।
ये भी मेरे दादा ने इन्वेस्टमेंट करने के लिया था, मगर अब ये गोल्ड माईन है, बोले तो सोने की खान।
मुल्लनपुर एक तरह से न्यू चंडीगढ़ की तरह विकसित हो रहा है, और हमारे फार्म की जमीन की कीमत आसमान छू रही है।
मगर ये बिकाऊ ना कभी थी और ना ही अब है।
पहले इस फार्म को खरीदने वाले बहुत बिल्डर आते थे। मैं बोल-बोल कर थक गया कि भाई ये जमीन बिकाऊ नहीं है, मगर साले मानते ही नहीं थे। रोज़ आ जाते थे। मगर जब से मैंने गले में इटली की बनी “ब्रेटा” पिस्तौल लटका कर उनसे बात करनी शुरू की, उसके बाद से खरीदार आना बंद हो गए। मेरा लम्बा चौड़ा शरीर और गले में “ब्रेटा” पिस्तौल देख कर ही गांड फट जाती थी उनकी।
इस फार्म में एक घर भी है जिसे “फार्महाउस” कहा जाता है। ये घर भी हमारे सेक्टर पांच के बंगले जैसा ही बना हुआ है, मगर ये है एक मंजिला ही। हमारे इस फार्म में चार लोग काम करते हैं, पचपन साल का शराबी पूरन, उसकी तेईस चौबीस साल की बीवी बिशनी और दो लोग और हैं जिन्हें पूरन ही लाया हुआ है।
फार्म हाउस के बाहर की तरफ छह कमरे बने हैं, सबमें TV है, फ्रिज है – टॉयलेट सब बने हैं – जिनमें ये सब लोग रहते हैं। घर के अंदर केवल बिशनी ही आती है और कोइ नहीं, या कभी-कभी पूरन आता है वो भी अगर मैं बुलाऊं तो।
मेरी तरफ से से पूरी तनख्वाह पूरन को दी जाती है। बाकी दो लोगो के साथ पूरन कैसे और क्या करता है, मुझे उससे कोइ सरोकार नहीं।
पूरन भरोसे वाला आदमी है। पिछले कई सालों से – शायद अठ्ठारह या उन्नीस सालों से पूरन हमारे यहां है। प्रीती जब छोटी थी तब पूरन उसे कंधों पर उठा कर फार्म में घुमाया करता था।
प्रीति बड़ी हो गई मगर उसका फार्म पर जाना नहीं छूटा। शादी के बाद भी प्रीती और सुखचैन जब भी चंडीगढ़ आते हैं, फार्म पर जरूर जाते हैं। सुखचैन भी पूरन के साथ बहुत गप्पबाजी करता है। सुखचैन को पूरन की शराब की आदत का पता है, इसलिए जब भी आता है पूरन के लिए मिलिट्री कैंटीन से विलायती शराब की बोतल लाना नहीं भूलता।
ये अधेड़ पूरन, इस तीखे नैन नक्शों वाली जवान बिशनी को पता नहीं कहां से ब्याह लाया है। ये भी पता नहीं बिशनी का पूरा या असली नाम क्या है – बिशन कौर या फिर कुछ और। पूरन ने ही हमें बताया के उसका नाम बिशनी है। वैसे बिशनी बात ठेठ पंजाबी में करती है, इसका मतलब वो रहने वाली तो पंजाब की ही है।
बिशनी मुझे सरदार जी और मेरी बीवी भूपिंदर को बीजी बोलती है। फार्म में दो विदेशी गायें हैं और शायद तीस पैंतीस देसी मुर्गे मुर्गियां हैं।
जुगनू – मेरा ड्राइवर, रोज दूध अंडे, सब्जियां फार्म से घर लाता है। कभी हमारा मुर्गा खाने का मन हो तो पूरन देसी मुर्गा काट देता है। दूध से देसी घी बनाना ये भी पूरन ही करता है। हमारे घर में शुद्ध देसी घी का ही इस्तेमाल होता है। घर में रिफाइन्ड तेल का इस्तेमाल नहीं होता, रिफाइन्ड से घुटनों की ग्रीज़ खत्म हो जाती है और घुटने दर्द करने लगते हैं।
फार्म में जो कुछ भी पैदा होता है वो या तो हमारे घर पर आ जाता है या पूरन और उसके साथी रख लेते हैं – बेचते हैं, या क्या करते हैं, मुझे कोइ मतलब नहीं। पूरन, बिशनी और बाकी दोनों लोगों को खाने-पीने की पूरी छूट है, बस देसी मुर्गा वो नहीं काट सकते अपने खाने के लिए। अगर मीट मुर्गा खाना ही है तो वो बाजार से लाते हैं।
अधेड़ पूरन की जवान बीवी बिशनी हर वक़्त बन ठन कर रहने की शौक़ीन है। साफ़ सुथरी है और अच्छे कपड़े पहनने की भी शौक़ीन है। बिशनी चुदाई भी मस्त करवाती है – पंजाबी में कहें तो हट-हट कर फुद्दी मरवाती है। बिशनी को मेरा लंड चूसने का बड़ा मजा आता है। एक बार कह रही थी पूरन का लंड मेरे लंड से आधा भी नहीं है और जब खड़ा होता भी है तो सख्त नहीं होता, ढीला-ढाला सा रहता है।
बिशनी को मैं हमेशा लंड पर कंडोम चढ़ा कर चोदता हूं।
वैसे तो मैं फार्म पर हर दूसरे-तीसरे दिन जाता हूं और जब मन करता है बिशनी को पकड़ कर चोद देता हूं। अगर कभी फार्म गए हुए ज्यादा दिन हो जाएं तो बिशनी खुद ही आ कर मेरा लंड पकड़ लेती है, और बोल देती है, “सरदार जी आज तो ‘करो’, बड़े दिन हो गए ‘किया’ नहीं।
बिशनी की चुदाई में एक खासियत ये है कि बिशनी हमेशा नीचे लेट कर ही चुदाई करवाती है। चुदाई करवाते वक़्त चोदने वाले को बाहों और टांगों में जकड़ लेती है और मिनट भी चुप नहीं रहती।
जब मैं बिशनी की चुदाई करता हूं तो पूरी चुदाई के दौरान बोलती रहती है, “आह सरदार जी क्या मस्त लौड़ा है आपका, आअह क्या मस्त फुद्दी मारते हो। रगड़ो सरदार जी, और जोर से रगड़ो, फाड़ो मेरी फुद्दी आज, आह मजा आ गया आ गया, बस सरदार जी अब मत रुकना, आअह मजा आने वाला है।”
बातों के साथ-साथ बिशनी चूतड़ भी घुमाती रहती है। कई बार तो बिशनी इतनी जोर-जोर से चूतड़ घुमाती है कि चोदने वाला लंड को आगे-पीछे ना भी करे तो भी लंड को रगड़े लगते ही लगते हैं। खैर ये तो थी फार्म की बात।
वैसे हिंदुस्तान भी अजीब ही देश है। चंडीगढ़ के एक करोड़पति – यानी मेरा – करोड़ों का फार्म है – जहां खेती घंटे की भी नहीं होती मगर “किसानी” के नाम पर सरकार ना बिजली का बिल भेजती है ना पानी का – सब कुछ मुफ्त।
अब वापस आते हैं चंडीगढ़ के घर पर।
सुखचैन ने चौथे दिन – तीन रातों के बाद – दिल्ली के लिए रवाना होना था, जहां से मिलिट्री के स्पेशल प्लेन से उसे आसाम जाना था। इन तीन दिनों में सुखचैन और प्रीती में चुदाई ही चुदाई हुई – चुदाई के सिवा कुछ नहीं हुआ।
दिन में भी कमरे का दरवाजा बंद ही रहता था – रात में तो रहता ही रहता था। इन तीन दिनों में मेरी भी रात की नींदें मुझसे दूर ही रही। मेरी आंखों आगे से सुखचैन के लंड पर छलांगे लगाती प्रीती हट ही नहीं रही थी। नींद मुझे आ नहीं रही थी, मैं गलियारे में कभी इधर कभी उधर घूम रहा था कि गलती से शायद गेस्ट रूम का दरवाजा खुला रह जाए और मुझे प्रीती और सुखचैन की चुदाई देखने को मिल जाए।
पहली रात मेरी बेकार गई, मैं कुछ नहीं देख पाया। और दूसरी रात को तो ‘पोपट’ ही हो गया।
उस दिन मैं अंडरवेयर बनियान में आधा खड़ा लंड लिए गलियारे कि चक्कर लगा रहा था कि किसी तरह प्रीती सुखचैन की चुदाई देखने को मिल जाए।
जैसे ही मैं गेस्ट रूम कि दरवाजे के पास पहुंचा, गेस्ट रूम का दरवाजा खुला और प्रीती बाहर निकली। गाऊन उसने खाली लपेटा ही हुआ था, बटन भी बंद नहीं थे। हाथ में पानी की खाली बोतल थी – शायद पानी लेने रसोई मैं जा रही थी। मगर एक फ्रिज तो गेस्ट रूम में भी था। तो फिर प्रीती रसोई में क्यों जा रही थी? क्या प्रीती को मेरे वहां होने की भनक, कोइ आवाज सुनाई दे गई थी?
मेरी तो जैसे गांड ही फट गयी थी। मैं ठिठक कर खड़ा हो गया। मगर प्रीती ने एक नज़र मुझ पर डाली और एक मेरे आधे खड़े लंड पर – और हंसती हुई किचन की तरफ चली गई। मैं भी खिसयाया हुआ लाउन्ज में गया और बियर का एक कैन निकाला और अपने कमरे में चला गया।
अगले दिन शर्म से मेरी तो मेरी ये हालत थी कि मेरा लंड हरकत भी नहीं रहा था।
प्रीती जब भी मेरे सामने से गुजरती, मुझे देखती हुई हंसती हुई निकल जाती थी।
सुखचैन की अगले दिन की दिल्ली के लिए फ्लाइट थी, जहां से स्पेशल मिलिट्री प्लेन से उसने गुवाहाटी के लिए जाना था। मुझे मालूम था कि आज पूरी रात प्रीती और सुखचैन सोने वाले नही, पूरी रात उनकी चुदाई चलने वाली है।
मन तो बहुत कर रहा था कि जा कर उनकी धुआंधार चुदाई देखूं,मगर हिम्मत ही नहीं हो रही थी। डर लग रहा थी कहीं प्रीती पिछली रात की तरह मुझे रंगे हाथ ना पकड़ ले।
रात को बड़ी मुश्किल से आधी बोतल पीने कि बाद मुझे नींद आयी। सुखचैन की अगले दिन दोपहर बाद की चंडीगढ़ से दिल्ली के लिए फ्लाइट थी। प्रीती जुगनू के साथ सुखचैन को एयरपोर्ट छोड़ने गयी थी। सुखचैन को छोड़ कर प्रीती आयी तो लग ही नहीं रहा था कि सुखचैन दो तीन महीने कि लिए गया है।
प्रीती पहले की तरह ही चहक रही थी। मैं देख रहा था जिस तरह से सुखचैन और प्रीती चुदाई करते थे, प्रीती को तो ये सोच कर ही थोड़ा सा उदास होना चाहिए था कि अब चुदाई नहीं हो पाएगी। मगर ऐसा था नहीं।
शाम के छह बजने वाले थे। कांता खाना बना रही थी। मैं और प्रीती लाऊंज में बैठे टीवी देख रहे थे। कांता ने देसी मुर्गे का मीट और साथ में चावल बनाये। खाना बना कर कांता ने डाइनिंग टेबल पर रख दिया और अपना मीट पैक करके अपने घर चलने की तैयारी करने लगी।
जातेतजाते कांता प्रीती से बोली, “दीदी तीन दिन मैं नहीं आ पाऊंगी, मेरी ननद की डिलीवरी होने वाली है। आपको परेशानी ना हो इस लिए तीन सब्ज़ियां और दाल बना कर फ्रिज में रखी हैं। दो मुर्गे भी मसाले लगा कर – मैरीनेट करके – फ्रिज में रक्खे हैं, बस ओवन में रोस्ट करने हैं। कुछ और चाहिए होगा तो जुगनू यहीं होगा, वो नहीं जा रहा।”
प्रीती बोली, “अरे कांता इतना सामान बना दिया तूने? निश्चिन्त हो कर जा, तीन दोनों की ही तो बात है कोइ परेशानी नहीं होगी। मैं और पापा ही तो हैं। कुछ और मंगवाना होगा तो मार्किट से जुगनू से मंगवा लेंगे।”
कांता चली गयी।
शाम की साढ़े छह बजने वाले थे। प्रीती अपने कमरे में फ्रेश होने चली गयी और मैं भी अपने कमरे में फ्रेश होने के लिए चला गया। फ्रेश हो कर मैंने रात वाली ड्रेस पहनी।
आधी बाजू का कुर्ता और ढीला-ढाला पायजामा। कपड़े बदल कर मैं लाऊंज में आ गया। बार में शीज़ रीगल की बोतल निकाली, फ्रिज में से सोडा निकाला और पेग बना कर टीवी चालू करके बैठ गया।
थोड़ी ही देर में प्रीती भी आ गयी। प्रीती ने हलके गुलाबी गाऊन पहना हुआ था और गाऊन कि नीचे काले रंग की ब्रा और पैंटी पहनी हुए थी, जो गाऊन के ऊपर से साफ़ दिखाई दे रही थी।
प्रीती के बड़े-बड़े मम्मे और चूतड़ गाऊन फाड़ कर बाहर आने को बेताब थे। प्रीती के बाल खुले थे, और प्रीती बड़ी ही सेक्सी लग रही थी। प्रीति को देखते ही मुझे उसकी और सुखचैन की चुदाई याद आ गयी और एक-दम से मेरे लंड में हरकत सी हुई। मैंने जरा सा लंड पायजामे ठीक किया।
प्रीती ने ये देखा और जरा सी मुस्कुराई और उसने भी अपनी चूत को हल्का सा छुआ और भारी चूतड़ मटकाती झटकाती ‘बार’ की तरफ चली गयी। मुझे थोड़ी हैरानी सी हुई कि प्रीती ने ऐसी ड्रेस क्यों पहनी थी जिसमें मम्मों और चूतड़ों के उभार इतना साफ़-साफ़ दिखाई दे रहे थे।
प्रीती ने बार से वाइन की बोतल निकाली और मेरे सामने ही गिलास में वाइन डाल कर हल्के-हल्के घूंट भरने लगी। बातें प्रीती ही कर रही थी, मेरे मुंह से तो आवाज ही नहीं निकल रही थी।
बातें करते करते प्रीती कम से कम दस बार आगे की तरफ झुकी। प्रीती की सेक्सी पादर्शी ड्रेस और इस तरह बार-बार आगे झुकना – मुझे लग रहा था कि प्रीती जान-बूझ कर मुझे उकसाने, उत्तेजित करने की कोशिश कर रही थी।
प्रीती, “पापा की परी” – मेरी बेटी, ऐसा क्यों कर रही है? बात मेरी समझ में अब भी नहीं आ रही थी।
स्कॉच और वाइन पीने कि बाद हमने खाना खाया और बर्तन समेट कर अपने-अपने कमरों में चले गए। प्रीती गेस्टरूम में चली गई और मैं अपने कमरे में चला गया।
बड़ी मुश्किल से मुझे नींद आयी। सुबह उठा बाथरूम गया और फ्रेश हो कर बाहर आया।
मेरे कमरे कि सामने ही किचन है। प्रीती चाय बना रही थी। प्रीती को देखते ही मेरे लंड में एक करंट सा दौड़ गया और लंड में सख्ती आ गई, लंड खड़ा हो गया। प्रीति ने कल रात वाला ही हल्के रंग का गुलाबी गाऊन पहना हुआ था, मगर गाऊन की नीचे ना कल वाली काली ब्रा पहनी थी और ना ही पैंटी पहनी थी।
प्रीती के पीठ मेरी तरफ थी। प्रीती के चूतड़ों की बीच की लाइन साफ़ दिखाई दे रही थी। पक्का ही मम्मों का भी यही हाल था। मन किया कि अभी किचन कि शेल्फ पर ही लिटा कर चोद दूं प्रीती को। मगर वही बात – प्रीती थी तो मेरी बेटी ही। लेकिन प्रीती ऐसी ड्रेस पहन कर मेरे सामने आई ही क्यों?
मैं प्रीती की पीछे खड़ा हो गया। प्रीती मुड़ी और मुझे देख कर बोली, “गुड मॉर्निंग पापा।”