पापा की परी प्रीती-2

अन्तर्वासना कहानी अब आगे-

हर रोज़ का एक ही रूटीन है। जुगनू सुबह दस बजे आता है और बाहर ही इंतजार करता है। अंदर नहीं आता जब तक मैं उसे ना बुलाऊं। अगर मैंने फार्म पर जाना हुआ तो ठीक, वरना जुगनू जा कर फार्म से दूध, सब्ज़ियां, अंडे, मीट ले आता है। इसके बाद दोपहर को मैं सेक्टर सत्रह अपनी दुकानों पर चला जाता हूं।

वाइन शॉप के ऊपर वाले ऑफिस में बैठ कर अपने जैसे ही करोड़पति दोस्तों को बुला लेता हूं। इस ऑफिस में इकट्ठे बैठ कर हम दुनिया भर की बेमतलब की वाहियात बातें करते हैं, खुशवंत सिंह के नॉन वेज चुटकुले सुनते है और बियर पी कर टाइम पास करते है।

अब कोइ ये भी ना पूछे के ये खुशवंत सिंह कौन था। पूरी की पूरी नई दिल्ली – कनाट प्लेस का सारा इलाका, लुटियन, जहां हमारे भाग्यविधाता राजनीतीज्ञी, उच्चतम न्यायालय के जज रहते हैं और जनता के पैसे मौज करते हैं, सारा का सारा खुशवंत सिंह के फादर (पापा) “सर सोभा सिंह” का बसाया हुआ है। उन्हीं की बदौलत आज भी दिल्ली इतनी खूबसूरत है। वरना अब तो यहां ऐसी बस्तियां बस रही होती और उनमें में तो जाने में भी डर ही लगता।
खैर छोड़ो इन सब बातों को, अब चलते हैं अपने ऑफिस में।