पिछला भाग पढ़े:- उस रात दीदी ने चखाया अपना गीलापन-1
सेक्स कहानी अब आगे-
एक दिन जब मैं काॅलेज से घर आया तो पाया कि पूरा घर खाली था, बस सुधा दीदी सोफे पर बैठ कर टीवी पर कुछ देख रही थी। मुझे देखते ही उन्होंने टीवी को बंद कर दिया और मुझे अपने पास बैठने का इशारा किया।
मैं जाकर उनके पास बैठ गया।
“गोलू हमारा रिश्ता क्या है?” उन्होंने सख्त आवाज में पूछा।
पहले तो मैं कुछ नहीं समझा। फिर बाद में हौले से कहा “भाई-बहन का। आप मेरी दीदी हो।”
“तो तुम अपनी दीदी के प्रायवेट पार्ट को रात में क्यों छू रहे हो?” उन्होंने पुछा। उनकी आवाज में सख्ती थी, लेकिन गुस्सा नहीं था। जैसे वह सच-मुच जानना चाहती हो की मैं उस तरह क्यों कर रहा था।
मैंने घबरा कर कहा। “क्या दीदी? मैं कुछ समझ नहीं रहा।”
“तू भोला मत बन गोलू।” उन्होंने उसी आवाज में कहा। “मैं गुस्सा नहीं, बस बता कि तू ऐसा क्यों कर रहा है?”
मैं थोड़ी देर चुप रहा, फिर धीमे से बोला, “दीदी… जब आपने उस रात अपनी सेक्स स्टोरी बताई थी ना… बस उसी दिन से मैं खुद को रोक नहीं पा रहा। मैं बस उस अहसास को महसूस करना चाहता हूं… आप जिस तरह महसूस कर रही थी… मैं भी चाहता हूं कि आप मेरी सांसों के पास हों… मेरे जिस्म पर महसूस हों…”
मैंने उनकी ओर देखते हुए धीमे से जोड़ा, “मैं चाहता हूं कि आपके हाथ… आपके होंठ… आपका स्पर्श मेरे लंड पर हो… जैसे आपने उस लड़के को महसूस किया था… मैं भी आपकी छुअन चाहता हूं।”
मैंने यह सब बहुत धीमे से कहा, लेकिन मेरे अंदर की आग अब थमने वाली नहीं थी।
उन्होंने कुछ देर मुझे हैरान होकर देखा, मानो कुछ सूझ ही नहीं रहा हो। फिर कुछ देर बाद कहा, “तू अपने डिक पर सिर्फ मेरा स्पर्श चाहता है या फिर मेरे साथ सेक्स करना चाहता है?”
मैंने घबराते हुए कहां, “मुझे नही मालूम मैं बस चाहता हूं मेरा लंड आपको छुए।”
उन्होंने मेरी बात को ध्यान से सुना, फिर हल्के से मुस्कुराई। “गोलू, तू अभी छोटा है… और मैं तेरी दीदी भी हूं… मैं तुझे मना नहीं करूंगी कि तू मुझे महसूस मत कर… लेकिन सेक्स… वो मैं नहीं कर सकती।”
मैं कुछ कह नहीं सका, बस उनका हाथ अपने लंड के ऊपर महसूस करना चाहता था। उन्होंने समझदारी से मेरी बात को समझा, और अपना हाथ धीरे से मेरी पैंट के ऊपर रखा। मैं कांप उठा… वो बस कुछ पल के लिए था… लेकिन वो एहसास, मेरे जिस्म में आग लगा गया।
फिर उन्होंने कहा, “तू अपने सारे कपड़े उतार दे और सोफे पर लेट जा।” उनकी इस लाइन ने जैसे मुझे सुन्न कर दिया। मेरे शरीर में एक तीव्र झनझनाहट दौड़ गई। मेरा दिल तेजी से धड़कने लगा, और एक पल को यकीन नहीं हुआ कि दीदी ने सच में ऐसा कहा था। मैं उनकी ओर देखने लगा। वो बिल्कुल गंभीर थी, उनकी आंखें मेरी आंखों से टकरा रही थी, कोई मुस्कान नहीं, कोई मज़ाक नहीं।
मैंने धीरे से सिर हिलाया, फिर चुप-चाप अपने कपड़े उतारने लगा। एक-एक कर मैंने अपनी टी-शर्ट, फिर पैंट और अंत में अंडरवियर तक निकाल दिया। मेरा लंड सख्त हो चुका था, और हवा लगते ही और भी तन गया था। मैं जैसे-जैसे कपड़े उतारता गया, दीदी की नज़रें मेरे जिस्म पर बनी रही। वो कुछ नहीं बोली।
मैंने कपड़े एक ओर रखे और धीरे से जाकर सोफे पर बैठ गया, फिर लेट गया। मेरी धड़कनें तेज़ थी, बदन गर्म हो चुका था और मन में अजीब सी घबराहट और उत्तेजना दोनों साथ चल रहे थे। मैंने आंखें बंद कर ली, लेकिन अंदर ही अंदर दीदी के अगले कदम का इंतजार कर रहा था, बेसब्री से।
“अपनी आंखें बंद मत कर गोलू,” उन्होंने कहा। मैंने आंखें खोली, तो देखा दीदी धीरे-धीरे अपने टॉप के नीचे हाथ डाल रही थी। उन्होंने धीरे से अपनी टी-शर्ट ऊपर खींची और उसे उतार दिया। फिर उन्होंने नीचे की ओर हाथ ले जाकर अपनी पजामा भी उतार दी। अब वो बस ब्रा और पैंटी में मेरे सामने खड़ी थी। उनका बदन हल्की पीली रोशनी में और भी ज्यादा चमक रहा था। उनकी भरी हुई छाती ब्रा के अंदर से उभरी हुई, और निचले हिस्से की गोलाई पैंटी के कपड़े से ढकी, मगर बेहद साफ-साफ उभरी हुई।
वो कुछ देर वैसे ही खड़ी रही, फिर मेरी ओर देखती हुई बोली, “अब बस लेटा रह और कुछ भी मत बोल।”
फिर वो धीरे-धीरे मेरी ओर बढ़ी, और मेरे पास आकर हल्के से झुक गई। उन्होंने अपने हाथों से बैलेंस बनाए रखा, ताकि उनका पूरा शरीर मुझ पर ना पड़े, लेकिन उनका चेहरा अब मेरे लंड के बेहद करीब था। उन्होंने अपने होंठ मेरे लंड के पास लाए और हल्के से उस पर एक चुम्बन दिया।
मैंने करवट लेते हुए धीरे से कहा, “दीदी… क्या मैं आपके ऊपर नहीं लेट सकता? मुझे आपका पूरा एहसास चाहिए।”
वो थोड़ा पीछे हटी, मेरी आंखों में देखा और बोली, “ठीक है गोलू… लेकिन तुम संभाल पाओगे ना?”
मैंने बिना झिझके सिर हिलाया। दीदी धीरे से सोफे पर लेटी, और मैं धीरे-धीरे उनके ऊपर गया। उन्होंने दोबारा मेरे लंड पर होंठ रखे और हल्के से चूमा, लेकिन जब मैंने उनका सिर नीचे की ओर धकेलना चाहा तो उन्होंने मेरा हाथ धीरे से हटाते हुए कहा, “गोलू, मैं सिर्फ चूम सकती हूं… ब्लोजॉब नहीं करूंगी।”
मैंने कुछ नहीं कहा, बस उनकी आंखों में देखा और उनकी गर्दन पर हल्का सा चुंबन लिया। वो अब मेरे नीचे थी, और मैं उनके जिस्म के हर हिस्से को महसूस कर रहा था पूरी तरह से, पूरे होश के साथ।
कुछ देर तक मैं यही सोचता रहा कि अब क्या करूं। दीदी ने साफ कह दिया था कि सेक्स या ब्लोजॉब नहीं होगा। मैं उनके ऊपर था, मेरा लंड उनके पेट के ऊपर सख्ती से धड़क रहा था, लेकिन अब मैं असहाय महसूस कर रहा था।
शायद दीदी ने मेरी हालत समझ ली। उन्होंने मेरी आंखों में देखा, फिर बिना कुछ कहे अपनी पीठ को थोड़ा उठाया, और धीरे-धीरे अपनी ब्रा की हुक खोल दी। उनकी बड़ी, मांसल छातियां अब पूरी तरह मेरे सामने थी, खुली, नग्न और मेरी सांसों को थाम लेने वाली।
मैंने तुरंत अपने दोनों हाथ उनकी छातियों पर रख दिए। वो गर्म थी, एक खास तरह की औरत की गर्मी, जो सीधे हथेलियों से होकर बदन में उतर रही थी। उनकी त्वचा बेहद नरम थी, जैसे रेशम पर हाथ फिरा रहे हों। मैंने धीरे-धीरे दबाना शुरू किया, कभी उंगलियों के बीच से उठा कर, कभी हथेली से पूरे उभार को थाम कर। उनकी गोलाई मेरी अंगुलियों में समा नहीं रही थी।
मैंने हल्के से निपल्स के चारों ओर अंगुलियां घुमाई, तो उनकी गर्मी और भी गहराई से महसूस होने लगी। वो छातियां ना सिर्फ भारी थी, बल्कि उनमें जान थी। जैसे हर दबाव पर एक स्पंदन उठता हो, जो मेरे पूरे बदन में फैल रहा था।
मैंने अपना चेहरा उनकी छातियों के करीब ले जाकर धीरे से निपल्स को चूमना चाहा, लेकिन तभी उन्होंने मेरा सिर रोकते हुए कहा, “गोलू, वहां मत… बस हाथ से ही।”
दीदी ने फिर मेरी आंखों में देखा और एक हल्की मुस्कान के साथ कहा, “अपना लंड मेरी छातियों के बीच रखो।”
मैंने बिना कुछ कहे अपना लंड उनकी गोल और भरी हुई छातियों के बीच में रख दिया। उन्होंने अपने दोनों हाथों से अपनी छातियां थोड़ी और पास लाई, जिससे मेरा लंड पूरी तरह उनके बीच दब गया। वो गर्म, मुलायम और भीगे से लग रहे थे। मेरी आँखें बंद हो गई उस एहसास में।
फिर उन्होंने धीमे से कहा, “अब अपने कूल्हे हिलाओ… जैसे ऊपर-नीचे करना होता है। मैं पकड़ कर रखूंगी।” मैंने वैसा ही किया। मेरा लंड उनकी छातियों के बीच फिसलता रहा, ऊपर-नीचे, और हर बार जब उसकी नोक उनकी ठुड्ढी के पास पहुंचती, तो एक अलग ही सनसनी मेरे शरीर में दौड़ जाती।
दीदी की पकड़ ने उस स्पर्श को और भी टाइट बना दिया था, जिससे मेरा लंड और भी ज्यादा संवेदनशील हो गया था। कुछ मिनटों बाद जब मेरी रफ्तार तेज़ हुई, तो मैं खुद को रोक नहीं पाया और अचानक मेरा वीर्य उनकी छातियों पर बिखर गया। गर्म, चिपचिपा तरल उनकी स्किन पर फैलने लगा, लेकिन कुछ बूंदें इतनी तेज़ निकली, कि उनके चेहरे तक जा पहुंची। उनके गाल, और एक-दो बूंदें उनके होठों तक भी लग गई।
वो हल्का सा चौंकी, लेकिन कुछ बोली नहीं, बस मुझे देखती रहीं, और मैं हांफते हुए उन्हें देखता रहा, जैसे अभी-अभी कोई सपना पूरा हुआ हो।
मैं थोड़ा सहम गया था कि वीर्य उनके चेहरे तक चला गया, लेकिन उन्होंने बस हल्की मुस्कान दी। फिर मैंने धीरे से उनका चेहरा पोंछा और उनके पास ही सोफे पर बैठ गया। दीदी अब आराम से सोफे पर बैठ गई थीं, बिना किसी झिझक या तनाव के।
मैं उनके पास बैठा था। कुछ सेकंड बाद जब मैंने कपड़े उठाने हाथ बढ़ाया तो उन्होंने कहा। “देख गोलू मैं तेरी बड़ी बहन हूं, तो तेरी हर ख्वाहिश पूरी करना मेरा काम है। लेकिन मेरी भी कुछ सीमा है। पर फिर भी मैं तेरे लिए कुछ और भी करना चाहती हूं।”
उन्होंने मेरी तरफ देखा और कहा, “मेरे सामने घुटनों के बल बैठ जा।”
मैं बिना कुछ कहे उनके सामने ज़मीन पर घुटनों के बल बैठ गया। वो अब मेरे एक-दम सामने थी। उन्होंने धीरे से अपना शरीर थोड़ा आगे किया, लेकिन पूरी तरह नहीं झुकी। उनके चेहरे की गर्मी और शरीर से आती गंध ने मेरे पूरे बदन में एक तेज़ सनसनी भर दी। फिर उन्होंने धीरे से कहा, “थोड़ा और करीब आ।”
उनके शब्द मेरे कानों में गर्म सांसों की तरह लगे। मैं थोड़ा और उनके पास सरक आया, अब मेरा चेहरा उनके जांघों के बेहद करीब था।
“और थौड़ा,” उन्होंने कहा। मैं और भी करीब चला गया।
फिर, उन्होंने धीरे से अपनी पैंटी की किनारी को अंगूठे से थोड़ा नीचे खिसकाया, सिर्फ़ इतना कि मैं एक झलक पा सकूं। सामने एक नरम, गुलाबी सी चीर हल्के भूरे बालों के बीच से झांक रही थी। किनारों पर हल्की नमी थी, जैसे वो अंग अपने आप में सांस ले रहा हो। होंठ हल्के फूले हुए थे, और बीच में की पतली दरार गहराई में उतरती हुई दिख रही थी। एक अजीब सी गर्मी और नमी की खुशबू मेरे नाक तक पहुंची, जिसने मेरी धड़कनों को और तेज़ कर दिया।
फिर दीदी ने मेरी आंखों में झांकते हुए, धीरे-धीरे अपनी दो उंगलियां अपने चीर की ओर ले गई। उन्होंने अपनी अंगुलियों को भीतर डाला, पहले हल्के से और फिर थोड़ा गहराई तक। उनकी सांसें तेज़ हो गईं, और वो उंगलियां वहां भीतर कुछ पल तक घूमती रहीं, मानो खुद से कुछ महसूस कर रही हों। जैसे ही उन्होंने उन्हें बाहर निकाला, उन पर चिपकी गाढ़ी, गर्म नमी की चमक मेरी आंखों के सामने थी।
उन्होंने उन उंगलियों को मेरी तरफ बढ़ाया, बेहद धीरे और तय इरादे से। फिर बिना कुछ कहे, उन्होंने अपनी वही गीली, नम उंगलियां मेरे होठों पर रख दी। वो छुअन गर्म थी, गाढ़ी, नम और बेहद निजी। जैसे कोई सीधा उनका अंग ही मेरे चेहरे से छू गया हो। मेरी सांस रुक सी गई, और वो नमी मेरे होठों पर एक अजीब सी कंपकंपी छोड़ गई। स्वाद नमकीन और तीखा था।
“तेरी दीदी तुझे सिर्फ इतना ही हक दे सकती है,” उन्होंने कहा।
थोड़ी देर बाद, उन्होंने अपनी पैंटी को वापस ठीक किया, और धीरे से मुस्कराते हुए कहा, “अब चल, कपड़े पहन ले। हम खाना खा लें।”
मैंने थोड़ी झिझक के साथ अपने कपड़े उठाए और पहनने लगा। दीदी भी अपने कपड़े पहनने लगी। उन्होंने ब्रा और टॉप पहना, और नीचे लेगिंग्स। जब तक हम तैयार होकर बाहर खाने के लिए निकले, मेरे मन में अभी भी बस वही छवि घूम रही थी, उनकी वो खुली चीर, वो गर्म नमी, वो बदन की महक।
खाने की थाली सामने थी, लेकिन मेरा ध्यान कहीं और था। मेरे दिमाग में हर बार उसी पल की वापसी होती रही, और एक अधूरी चाहत सीने में फंसी थी, कि काश मैं उन्हें पूरी तरह पा सकता। उनके भीतर समा सकता।
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