पिछला भाग पढ़े:- नेहा दीदी के होंठों में लंड की पहली आग-1
मैं दीदी की पैंटी के साथ मजे कर रहा था। लेकिन अचानक दीदी की आंख खुल गई। उन्होंने मुझे नीचे बैठे देखा और जैसे ही उनकी नज़र मेरे हाथ और उस पैंटी पर गई, वो गुस्से से उबल पड़ी। अब आगे-
“ये क्या कर रहा है तू, पागल हो गया है क्या?” उन्होंने गुस्से में कहा। मैं डर के मारे कांपने लगा, कुछ बोल नहीं पाया। वो तुरंत उठी और पैंटी मेरे हाथ से छीनी। मेरे चेहरे की हालत देख कर शायद वो समझ गई कि मामला सिर्फ गलती नहीं, कुछ ज्यादा था। लेकिन उन्होंने उस समय कुछ नहीं कहा। बस चुपचाप चली गई और अगली ही रात से उन्होंने मुझसे दूर रहने का फैसला कर लिया।
अब वो मेरे साथ कमरे में नहीं सोती थी, बल्कि मम्मी-पापा के कमरे में जा कर सोने लगी। उनके इस बदलाव ने मुझे अंदर तक हिला दिया, लेकिन मैं जानता था कि ये मेरी ही गलती थी।
कुछ ही हफ्तों बाद दीदी की ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी हो गई। घर में सभी बहुत खुश थे, खास कर पापा। दीदी ने दिल्ली के एक नामी यूनिवर्सिटी में पोस्ट-ग्रेजुएशन के लिए एडमिशन ले लिया था। और एक दिन वो हमारे छोटे-से शहर से निकल कर दिल्ली चली गई। उनके जाने के बाद घर में जैसे एक खालीपन आ गया था, और मेरे अंदर भी। वो एक चेप्टर जो अधूरा छूट गया था, अब और भी अधूरा लगने लगा।
अगले कुछ हफ्तों में दीदी की गैरमौजूदगी ने मेरे अंदर एक अजीब-सी बेचैनी भर दी थी। मैं अपने कमरे में अकेला लेटा रहता और अक्सर उनकी यादों में खो जाता। लेकिन ये यादें मासूम नहीं थी, मैं अब भी रोज उनकी पुरानी पैंटी को छूता, उसे अपनी आंखों के पास लाकर सूंघता और खुद को तसल्ली देने की नाकाम कोशिश करता।
मगर अब वो तसल्ली भी अधूरी लगने लगी थी। मैं इंटरनेट पर और ज्यादा पोर्न वीडियो देखने लगा, लेकिन उनमें भी मुझे अब वही चेहरा नजर आता, दीदी का। मन करता कि काश एक बार फिर वो रात दोहराई जा सके, जब वो मेरे पास सो रही थी। हर कल्पना, हर सपने में अब सिर्फ दीदी ही होती थी, और मैं बार-बार बस एक ही ख्वाहिश दोहराता, काश, मैं उनके साथ सो सकता, इस बार बिना रुकावट के।
कुछ समय बाद दीदी छुट्टियों में कुछ दिनों के लिए घर आई, लेकिन इस बार उन्होंने मुझसे ज्यादा बात नहीं की। उनका व्यवहार अब पहले जैसा नहीं था, वो मुझसे नजरे चुराती थी, और हम दोनों के बीच अब एक अजीब-सी दीवार खड़ी हो गई थी। मैं उनके पास जाना चाहता था, कुछ कहना चाहता था, माफी मांगना चाहता था… लेकिन हिम्मत नहीं हुई। मैं बस दूर से उन्हें देखता रहा, और अपने मन में वही अधूरी ख्वाहिशें दबा कर बैठा रहा।
दो साल बाद मैंने भी ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी कर ली और अब मैं भी पोस्ट-ग्रेजुएशन के लिए दिल्ली जाना चाहता था। लेकिन हमारा परिवार मिडल क्लास था, और दिल्ली जैसे बड़े शहर में अलग-अलग रूम का किराया अफॉर्ड करना मुश्किल था। इसलिए पापा ने फैसला किया कि वो हमें दोनों को एक साथ एक ही कमरा किराए पर दिलवा देंगे, जिससे खर्चा भी बचे और हम दोनों का साथ भी हो।
अब जब मुझे पता चला कि मैं दो साल बाद फिर से दीदी के साथ एक ही छत के नीचे रहने वाला हूं, तो मेरे दिल में कई तरह के ख्याल आने लगे। वो पुराने दिन, वो रातें, जब हम साथ सोते थे, सब कुछ एक-एक कर के याद आने लगा। लेकिन इस बार हालात अलग थे, अब मैं बड़ा हो चुका था, और दीदी भी। वो मुझे शायद अब एक मैच्योर लड़के की तरह देखेंगी, ना कि छोटे भाई की तरह। मेरे मन में एक अलग ही उत्साह और बेचैनी भरने लगी थी, अबकी बार मैं सिर्फ दूर से देखने तक सीमित नहीं रहना चाहता था।
जब मैं दिल्ली पहुंचा, तो वो कमरा बहुत छोटा निकला, मुश्किल से दो लोग सो सकें उतनी ही जगह थी। वहां कोई अलमारी नहीं थी, इसलिए दीदी अपने ब्रा और पैंटी वगैरह धुलने के बाद वही कमरे में एक कोने में खुले में सुखाती थी। जब मैं कमरे में घुसा तो मुझे सबसे पहले वही नज़ारा दिखा, रस्सी पर टंगी दीदी की ब्रा और पैंटी, जो हवा में हल्के-हल्के हिल रही थी। उस पल मेरा दिल ज़ोर से धड़कने लगा। दो साल बाद फिर से वही सब कुछ इतने पास से देखना… मेरे लिए किसी सपने से कम नहीं था।
मैं थोड़ी देर तक बस खड़ा उन्हें देखता रहा, फिर दीदी ने अचानक पीछे मुड़ कर मुझे देखा और जल्दी से आगे बढ़ कर ब्रा उठाने लगी।
मैंने धीरे से कहा, “सॉरी दीदी… मैं बस—”
वो थोड़ी घबराई हुई-सी बोली, “कुछ नहीं… ये कपड़े अभी सुखा रही थी, बस थोड़ी देर में समेटने ही वाली थी।”
मैंने मुस्कुरा कर कहा, “कोई बात नहीं, आप अपना काम कीजिए।”
वो हल्की-सी मुस्कान देकर वापस अपने काम में लग गई। अब मैं भी क्लासेस जॉइन कर चुका था। दीदी के पोस्ट ग्रेजुएशन के दो साल पूरे हो चुके थे, और अब वो पीएचडी की तैयारी में लग गई थी। कमरे में अब दिन भर किताबों और नोट्स का माहौल बना रहता। दीदी पहले से ज्यादा गंभीर और व्यस्त हो चुकी थी, लेकिन वो अब भी पहले जैसी खूबसूरत लगती थी, और शायद अब और भी ज्यादा।
उनका शरीर अब और भी परिपक्व लगने लगा था। उनकी छाती गोल और भारी हो चुकी थी, हर मूवमेंट पर वो हल्के से हिलती और आंखें बरबस वहीं अटक जाती।
उनका कूल्हा पहले से ज्यादा चौड़ा और आकर्षक था, हर बार जब वो कमरे में चलतीं, उनका हिलता हुआ पिछवाड़ा मेरी नजरों को बांध लेता। और होंठ… उनके होंठ इतने नरम और भरे हुए लगते थे कि मैं बस उन्हें देखता रह जाता। वो होंठ इतने रसीले थे कि मन करता कि मैं अपना लंड निकाल कर उनके बीच दूं। उनको देखते ही मुझे वह हर बात याद आने लगती जो मैंने दो सालों तक उनको सोचते हुए पोर्न विडियो में देखी थी।
मैं उनके प्रायवेट पार्ट को मुंह लगा कर उसका सारा रस पीना चाहता था, उनके निपल्स को जोर से मरोड़ना चाहता था, उनके होंठों को अपने होंठों से लगा कर चूमना चाहता था। और सबसे बढ़ कर मैं अपना सारा सफेद पानी उनके मुंह पर बिखेरना चाहता था।
मैंने बहुत दिनों तक खुद को रोके रखा, लेकिन एक रात जब दीदी गहरी नींद में थी और पैंटी पास में ही सूख रही थी, मैं फिर से अपने आप पर काबू नहीं रख सका। मैंने धीरे से उठ कर वो पैंटी ली, और उनके सामने बैठ कर उसे हाथ में लेकर धीरे-धीरे अपने लंड पर रगड़ने लगा। दीदी की सांसें शांत थी, लेकिन मेरे अंदर फिर वही पुरानी आग भड़क उठी थी।
अब तो ये मेरा रोज़ का सिलसिला बन गया था। हर रात जब दीदी सो जाती, मैं चुप-चाप उठ कर उनकी पैंटी ले लेता, और उसी पर अपना सारा सफेद पानी निकाल कर बाद में पोंछ डालता। धीरे-धीरे दीदी को कुछ शक होने लगा था। उन्हें पैंटी पर रोज हल्का-सा गीलापन और अजीब-सी गंध महसूस होने लगी थी। लेकिन उन्होंने मुझसे कभी कुछ नहीं कहा। शायद वो टाल रही थी, या शायद यकीन नहीं करना चाहती थी। मुझे लगा कि अगर उन्होंने कुछ नहीं कहा तो सब ठीक है, और मैं और भी बेफिक्र होकर वही सब करता रहा।
अब तो मैं कभी-कभी रात को दीदी के होंठों के पास एक बूंद छोड़ने लगा था। वो गहरी नींद में होती, और मुझे लगता कि अगर उन्होंने कुछ नहीं कहा, तो शायद उन्हें एहसास भी नहीं हुआ। मैं धीरे से पास झुकता, उनका चेहरा देखता, उनके सांसों की गर्मी महसूस करता, और फिर अपने सफेद पानी की एक बूंद को उनके होंठों के कोने पर छोड़ देता। वो कभी करवट बदलती, कभी अपनी नाक खुजाती, लेकिन नींद इतनी गहरी होती कि उन्हें कुछ समझ नहीं आता।
फिर एक संडे के दिन जब हम दोनों दोपहर रुम में ही थे। मैं एक कोने में रखे स्टडी टेबल के पास कुर्सी पर बैठा उनको चुपके देख रहा, तब वह अपने कपड़े धो रही थी। उन्होंने अपनी गुलाबी पैंटी को धोने के लिए उठाया, जिस पर कल रात मैंने सफेद पानी छोड़ा था। उन्होंने एक पल उसकी पैंटी को नाक के पास ले जाकर सूंघा और फिर नीचे रख दिया और उठ कर मेरे पास आने लगीं। मैंने अपनी नजरें चुरा ली।
“तु करना क्या चाहता है गोलू?” उन्होंने सख्त लहजे में पूछा। अचानक मुझे डर लगने लगा।
“क्या हुआ दीदी?” मैंने मासूम भरी आवाज में पूछा।
“तु आख़िर करना क्या चाहता है?” उन्होंने उसी आवाज़ में पूछा।
इसके आगे इस कहानी में क्या हुआ, वो अगले पार्ट में पता चलेगा। फीडबैक [email protected] पर दें।
अगला भाग पढ़े:- नेहा दीदी के होंठों में लंड की पहली आग-3