घरेलू काम वालियों की चुदाई-6 (अंतिम भाग )

सुमन लंड चूत में लेने के लिए पूरी तरह तैयार थी।

मैंने सुमन को उठाया और बेड के ऊपर चद्दर पर लिटा दिया। सुमन के चूतड़ों के नीचे तकिया रख कर चूतड़ उठाये टांगे चौड़ी कर दी और चूत की फांकें खोल कर चूत में लंड ऊपर नीचे किया।

एक जगह लंड के सुपाड़े पर कुछ अलग सा महसूस हुआ। ये चूत का छेद था। बड़ा ही छोटा सा छेद।

मैंने लंड इस जगह के ऊपर रखा और सुमन को पीछे से जकड लिया।

मेरा सारा वजन मेरी कुहनियों और घुटनों पर था।

मैंने हल्का सा धक्का लगाया और थोड़ा सा लंड छेद में डाल दिया । सुमन के मुंह से चीख निकली आह …… और उसने मुझे रोकने की कोशिश। मैं समझ गया कुंवारी चूत है। सील फटेगी।

मैंने लंड वहीं रोक लिया और सुमन की तनी हुई चूचियां को अपने सीने से मसलने लगा। लंड को मैं वहीं चूत में पर धीरे धीरे अंदर बाहर कर रहा था, मगर जोर के धक्के नहीं लगा रहा था।

थोड़ी ही देर में सुमन फिर कसमसाई और चूतड़ हिलाये। सुमन थोड़ा लंड और मांग रही थी।

अब सुमन “आआआह….. आआह” की सिसकारियां भी ले रही थी और चूतड़ भी ऊपर नीचे कर रही थी।

मैं भी थोड़ा थोड़ा लंड अंदर करता जा रहा था।

कुछ ही देर में मुझे लंड की आख़री हिस्से पर सुमन की झांटों के बाल महसूस हुए।

लंड पूरा जा चुका था। सुमन पूरी मस्ती में आ चुकी थी। चूत ने लंड टाइट जकड़ा हुआ था। मैंने धीरे से लंड पूरा बाहर निकाला और धीरे से ही अंदर डाल दिया।

लंड टाइट चूत में अंदर बैठ गया साफ पता चल रहा था चूत पानी से भरी हुई है। सुमन कुछ नहीं बोली। बस “आआह…. आआह” ही करते रही।

मैंने तीन चार बार लंड ऐसे पूरा अंदर बाहर किया और रुक गया। जब मैंने कुछ देर लंड नहीं हिलाया तो सुमन ने चूतड़ ऊपर नीचे किये।

सुमन फिर से वही करने का इशारा कर रही थी – लंड अंदर बाहर करने का। मतलब पूरी चुदाई।

मैंने सात आठ बार यही दोहराया। लंड धीरे से बाहर और फिर धीरे से अंदर। सुमन ने मुझे पीछे हाथ डाल कर पकड़ लिया। टांगें और खोल दी। अब असली चुदाई का टाइम आ गया था। सुमन भी अब पूरी चुदाई मांग रही थी।

मैंने धीरे धीरे धक्के लगाने शुरू किये और धक्कों की रफ्तार बढ़ाने लगा। सुमन को मैंने कस के पकड़ कर अपने सीने से चिपका लिया I मेरे मुंह से बस “आअह सुमन … मजा आ गया” ही निकल रहा था “।

कुछ ही देर में सुमन की अअअअअह…. आह…. आआआआह …. आह… की सिसकारियां ऊंची होने लगीं।

सुमन के चूतड़ अब जोर जोर हिल रहे थे।

यकायक सुमन की सिसकारियां बढ़ गयी आअह…. सर… आअह …आअह… आआह …अअअअअह।

सुमन का पानी निकलने वाला था। मजा आने वाला था उसे। झड़ने वाली थी वो। मैंने अपना मजा रोका हुआ था। मैं सुमन के साथ ही झड़ना चाहता था।

एकाएक सुमन ने ऊंची सिसकारी ली…. “आआआआह…. आअह मां… मर गयी मै ….आआह…. आआह…. सर…. आअह”।

इधर मेरे गले से भी आवाज निकली “आआह सुमन “और फर्रर्र से मेरा भी गर्म पानी सुमन की चूत में निकल गया। सुमन अभी भी “आआआह ….आह ….आआह आह” कर रही थी।

मेरा लंड सुमन की चूत में ही था। सुमन की सिसकारियों की आवाज सुन कर कुसुम आ गयी और बेड की साइड में खड़ी हो गयी। उसे भी पता लग गया होगा की सुमन को चूत चुदाई का पहला मजा आ गया है।

कुसुम इंतज़ार कर रही थी की कब मैं लंड सुमन की चूत से बाहर निकालूं और वो सुमन की चूत की हालत देखे।

सुमन मुझे छोड़ ही नहीं रही थी। लगता है उसे अभी भी मजा आ रहा था। कुसुम ने भी और मैंने भी सुमन को कुछ नहीं कहा। यही सोचा की पहली चुदाई हुई है मजा आ रहा होगा।

जब पांच मिनट गुजरने पर भी सुमन ने मुझे नहीं छोड़ा तो मेरा लंड फिर खड़ा हो कर सख्त होने लगा।

कुसुम अभी भी वहीं खड़ी थी।

मैंने एक बार लंड लगभग पूरा बाहर निकाला और झटके से पूरा जड़ तक सुमन की चूत में बिठा दिया।

सुमन ने नीचे से चूतड़ घुमाए, मगर मुझे छोड़ा नहीं।

कुसुम और मैं दोनों समझ गए कि चुदाई की प्यासी सुमन एक चुदाई और मांग रही है।

मैंने सर घुमाकर कुसुम की तरफ देखा और इशारे में पूछा “क्या करूं” ?

कुसुम ने भी सर हिला कर इशारे में समझा दिया – “चोद दो साहब”।

मैंने सुमन को फिर पकड़ लिया और धक्के चालू कर दिए – वो धक्के जो मैं अपनी पत्नी रूपा को लगाता था, जो कुसुम को लगाए थे और जो माया को लगाए थे। पूरे लम्बे जोरदार धक्के।

सुमन “आअह ….आआह” की आवाजें लगातार निकाल रही थी।

इस बार की चुदाई का मुझे असली मजा आ रहा था। सुमन की चूत का पानी, मेरे लंड का पानी – सब कुछ सुमन की चूत में ही था – और अब तो चूत के बाहर तक आ रहा था।

जब लंड का सिरा चूत पर टकराता था तो आवाज आती थी “फच्च फच्च फच्च फच्च”।

इस बार पंद्रह मिनट असली धुआंधार चुदाई हुई और ऊंची “आअह ….अअअअअह…. उउउऊँह …. उउउऊँह” सिसकारियों के साथ सुमन एक बार और झड़ गयी।

कुसुम फिर अंदर आ गयी।

इस बार सुमन ने मुझे छोड़ दिया। मैंने खड़ा लंड आरती की चूत में से निकला और उठ कर खड़ा हो गया।

देखा तो सुमन की चूत में से हल्का खून रिसा हुआ था। कुसुम ने सुमन को उठाया।

जैसे ही कुसुम ने सुमन को उठाया, सुमन बोली “चाची” और कुसुम के गले लग गयी। कुसुम सुमन को बाथरूम में ले गयी।

सुमन कुसुम को चाची कहती थी।

सुमन की चूत साफ़ करके पेशाब करवा के कुसुम सुमन को कपडे पहनाये और ड्राईंग रूम में बिठा आयी।

कुसुम कमरे में आई और बेड पर से खून के दाग वाली चद्दर उठाती हुई बोली साहब बड़ी मस्त चुदाई की है आपने सुमन की। तस्सल्ली हो गयी उसकी”।

“ये तो बार बार चुदने आएगी आपके पास”। फिर मेरे खड़े लंड को देख कर बोली, “ये क्या साहब ? फिर मांग रहा है ये “?

मैंने कहा, “नहीं कुसुम, तुझे तो पता ही है ये जल्दी नहीं झड़ता। सुमन की इस दूसरी बार की चुदाई में मेरा नहीं झड़ा “।

कुसुमने लंड हाथ में पकडा और मुट्ठ मारने वाले अंदाज में आगे पीछे करके पूछा, “तो अब क्या करोगे साहब इसका “?

मैंने कहा, “कुछ नहीं – करना क्या है। जब कुछ देर तक कुछ नहीं मिलेगा तो अपने आप ही बैठ जाएगा”।

कुसुम ने कुछ देर सोचा और बोली, “साहब माया तो अभी भी नहीं आई। मैं सुमन को ही भेजती हूं। उसी से चुसवा कर झड़वा लो। सुमन चूत चुदाई का मजा तो ले ही चुकी है अब मुंह का मजा भी लेने दो”।

ये कह कर बिना मेरे जवाब का इंतज़ार किये कुसुम बाहर चली गयी।

पांच मिनट बाद सुमन आ गयी और आते ही बेड पर बैठ गयी। पांच मिनट समझने समझाने के लिए बहुत होते हैं। कुसुम ने लगता है बता दिया था की क्या होना है – क्या करना है।

मैं खड़ा लंड ले कर सुमन के सामने खड़ा हो गया। सुमन ने फौरन मेरा लंड मुंह में लिया और चूसने लगी। मस्त चूस रही थी। सुमन जल्दी ही चुदाई की माहिर होने वाली थी।

ज्यादा टाइम नहीं लगा मेरे लंड को झड़ने में। सात आठ मिनट ही सुमन ने चूसा होगा कि मेरे लंड में से गरम गरम पानी आरती के मुंह में निकल गया। मेरे मुंह से आआह …. सुमन कि आवाज निकली।

कुसुम अंदर आ गयी। मेरे लंड के पानी से सुमन का मुंह भरा पड़ा था। सुमन कुसुम कि तरफ देख रही थी जैसे पूछ रही हो, ” चाची अब इसका क्या करूं ।

कुसुम ने कहा,” सुमन, मन है तो पी ले नहीं तो जा कर बाथरूम में थूक दे “।

सुमन ने मेरे लंड से निकला सारा पानी पी लिया।

कुसुम बोली, “वाह री सुमन तूने तो पहले दिन ही कमाल कर दिया”।

फिर कुसुम मुझे बोली, चलो साहब आप भी मुंह हाथ धो कर फ्रेश हो जाओ, मैं सब के लिए चाय बनाती हूं। माया भी आने वाली होगी”।

कुसुम चाय बना ही रही थी कि माया भी आ गयी।

माया को देख कर आरती खड़ी हो गयी। माया जैसे ही सुमन के पास गयी आरती “मौसी” बोल कर उससे लिपट गयी।

माया ने सुमन की पीठ पार हाथ फेरा और उसे अलग किया और किचन में कुसुम के पास चली गयी।

दोनों में कुछ खुसुरफुसुर हुई। दोनों हंसती हुई चाय की ट्रे ले कर आ गयी।

कुसुम ने अपने हाथ में पकडे छोटे से पर्स में से एक गोली निकाली और सुमन को खाने के लिए दे दी।

सुमन ने पुछा, “ये क्या चाची”?

कुसुम ने साफ़ साफ़ ही कह दिया, “साहब का पानी अंदर छूटा कि नहीं ? अगर पेट से हो गयी तो”?

सुमन थोड़ा सा शरमाई और मेरी तरफ हल्का मुस्कुरा कर देखा और कुसुम के हाथ से गोली ले कर निगल ली। मेरी ओर देखते हुए अपनी चूत खुजलाना नहीं भूली।

माया के खुशी देखने लायक थी। वो बार बार सुमन की पीठ पर हाथ फेर रहे थी जैसे कालोनी की गुंडे आवारा बलात्कारियों की चंगुल से सुमन को बचा लिया हो।

इसके बाद जब तक रूपा नहीं आई ये चुदाई का खेल बेरोकटोक चला।

कभी कुसुम, कभी माया, कभी कुसुम और माया इक्क्ठी और सुमन तो थी ही।

कुसुम सुमन को हफ्ते में एक बार ले आती थी। सुमन अब मस्त चुदाई करवाने लग गयी थी। मुझे नीचे लिटा कर मेरे खड़े लंड पर बैठ कर जो छलांगे लगाती थी मजा ही आ जाता था।

आखिर को चुदाई की ये सब तरीके सिखाये भी तो मैंने ही थे।

बीच बीच में मैं पानीपत एक एक दो दो दिन के लिए जाता रहता था।

रूपा से चुदाई का मौक़ा ही नहीं मिलता था। बच्चा छोटा होने के कारण मेरी सास रूपा के पास सोती थी।

एक बार रूपा की चूत पर हाथ लगाने की कोशिश की भी थी तो रूपा ने झिड़क दिया, “शर्म करो अभी बच्चा छोटा है और सब घर पर होते हैं”।

इसके बाद मैंने रूपा के साथ चुदाई की कोशिश ही नहीं की। जरूरत भी क्या थी। पीछे फरीदाबाद में तीन तीन चूतें मेरा इंतज़ार कर रही होती थीं।

रूपा भी सोचती होगी, “कितना अच्छा पति है जो एक बार में ही मना करने पर चुदाई ना करने के लिए मान गया है “।

छह महीने बाद रूपा बेटे को ले कर आ गयी। मेरी चुदाईयां बंद हो गयी। रूपा तो अभी पास ही नहीं फटकने देती थी। जोजो – हमारा छोटा सा बेटा दिन में सोता था, रात को जागता था।

एक हफ्ते में ही जोजो ने रूपा का बैंड बजा दिया।

वो तीन महीने की अवैतनिक – बिना तनख्वाह – की छुट्टी ले कर फिर अपने मायके पानीपत चली गयी।

घर में मेरा और कुसुम, माया, सुमन की चुदाई का खेल फिर चल पड़ा।

तीन महीने के बाद जब वापस आयी तो रूपा के साथ मेरी सास भी थी।

जोजो अब नौ महीने का हो गया था। सास दिन भर बच्चे को संभालती थी और रूपा बैंक अपने काम पर चली जाती थी।

मेरे लिए ये सबसे मुश्किल दौर था। इतनी लगातार की चुदाईयों के बाद अगर चूत ना चोदने को मिले तो क्या हालत होती है ये बात अगर किसी को जाननी हो तो उसे मुझसे बात करनी चाहिए।

बिना चुदाई के मेरी हालत खराब थी। लंड का पानी तो चलो मुट्ठ मार कर निकाल लेता था, मगर चूतड़ों पर काटना ? चूत कि झांटों कि खुशबू ? मेरी हालत तो ये थी की चाय के प्याले से उठती महक में भी चूत की झांटों कि खुशबू ढूढ़ता था।

मगर जैसे हर रात के बाद दिन आता है – हर बुरे वक़्त के बाद अच्छा वक़्त आता है – मेरे दिन भी फिर गए।

जल्दी ही बिल्ली के भाग्य में छींका टूटना लिखा था।

“बिल्ली के भाग्य में छींका टूटना” – ये एक मुहावरा है।

कहते हैं कि एक बार एक मक्कार बिल्ली छत से टंगे मक्खन के बर्तन को बड़ी लालच से देख रही थी । बिल्ली सोच रही थी किसी तरह ये बर्तन टूट जाए तो मुझे सारा मक्खन खाने को मिल जाएगा।

तभी एक कौव्वा आया और मक्खन से भरे लटकते हुए बर्तन पर बैठ गया। वक़्त के साथ बर्तन लटकाने वाली रस्सी कमजोर हो गयी होगी और वो टूट गयी।

बर्तन नीचे गिर गया और मक्खन जमीन पर बिखर गया। बिल्ली खुश – और उसने सारा मक्खन चट कर लिया – ये होता है “बिल्ली के भाग्य में छींका टूटना”।

तो मित्रो बिलकुल यही मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ।

सास घर में थी। चूत को तरस गया था मैं। तीन महीने और गुजर गए। मुट्ठ मार मार कर ही मेरा गुजारा हो रहा था। ना कुसुम, ना माया और ना सुमन। रूपा के साथ मेरी सास सोती थी।

जोजो अब एक साल का हो चुका था। चेहरे पहचानता था। और रेंग रेंग कर पूरे घर में घूमता था। सुमन जब आती तो उसके साथ बड़ा खुश रहता था।

अचानक मेरे भाग्य का वो बिल्ली के भाग्य वाला छींका टूट गया – जिसका जिक्र मैने अभी अभी ऊपर किया है। ।

हुआ ये मेरे साले की बीवी को बच्चा होने वाला हो गया और मेरी सास को साले ने वापस बुला पानीपत लिया। रूपा परेशान हो गई कि अब जोजो को दिन भर कौन संभालेगा।

तभी कुसुम ने एक लाजवाब सुझाव दिया जिसने सबकी – कुसुम की अपनी, माया की, सुमन की और मेरी किस्मत पलट कर रख दी, और यही वो मेरे भाग्य का छींका था जो टूटा था।

कुसुम ने रूपा को सलाह दी, “बीबी जी आप सुमन को पूरे दिन की लिए क्यों नहीं रख लेती। सुमन पहचान वाली है, साफ़ सुथरी है, थोड़ा पढ़ी भी है, समझदार है और सब से बड़ी बात बाबा – यानी जोजो – सुमन के साथ हिला हुआ भी है। सुमन सुबह आपने काम पर जाने की समय पर आ जाया करेगी और जब आप शाम को वापस आएंगी तो वो चली जाया करेगी”।

रूपा को आइडिया पसंद आ गया। रूपा ने मुझसे इसकी बाबत पूछा।

मुझे तो ये पता ही था – फिर भी मैंने अनजान बनने की एक्टिंग करते हुए हां कर दी।

मेरी सास वापस पानीपत चली गयी।

सुमन अब हमारे घर सोमवार से ले कर शनिवार तक – छः दिन – सुबह से ले कर शाम तक आने लगी।

मेरी किस्मत का तो ताला ही खुल गया। मैं अब तीन नहीं चार चार चूतें चोदता हूं।

रूपा ने भी तरस खा कर चुदाई करवानी शुरू कर दी है। दिन में माया, कुसुम और सुमन बारी बारी से – और रात में रूपा।

एक नई बात और हुई है। रूपा ने चूत की झांटों की बाल हटाने बंद कर दिए हैं – टाइम ही नहीं मिलता उसको – और मैं भी ऐसा करने की लिए नहीं कहता।

रूपा की झांटों की खुशबू भी बाकी तीनों – माया, कुसुम, सुमन – की चूत की झांटो से कम मस्ती वाली नहीं है।

जिन पुरुषों ने ये कहानी पढ़ी है – अगर वो शादी शुदा हैं और अगर उनकी पत्नियां चूत की झांटों की बाल साफ़ करती हैं उन्हें चाहिए कि एक बार झांटों की बाल बढ़ा कर एक बार सूंघ कर देखें।

मुझे पूरा यकीन है की वो झांटों की खुशबू से मस्त हो जायेंगे – उनका लंड भी फनफनाने लगेगा ओर चुदाई का मजा दुगना हो जाएगा। “हींग लगे न फिटकिरी, रंग चोखा” वाली बात। अगर ना मजा आये तो बाल दुबारा साफ़ कर लें। इसमें क्या मुश्किल है। घर की ही तो खेती है।

यही सलाह उन भाभियों – भरजाईयों को भी है जिन्होंने ने ये कहानी पढ़ी है। अगर वो अपनी चूत की झांटों की बाल साफ करती हैं तो एक बार ऐसा ना करके बाल बढ़ा कर देखें।

बाल बढ़ाने की बाद अगर उनके घरवाले चूत की झांटों के बाल सूंघ कर ज्यादा मस्ती में आएं और ज्यादा बढ़िया से चुदाई करें तो चूत पर बाल रहने दें नहीं तो साफ़ कर लें। उन भाभियों – भरजाईयों की भी तो “घर की खेती” ही है।

अच्छा अलविदा। शाम को होटल भी जाना है। कुसुम भी आ गयी है।

अब कुसुम जोजो को संभालेगी और मैं सुमन को अंदर कमरे में ले जा कर चुदाई करूंगा।

किस्मत हो तो अनूप त्रेहन जैसी – यानी मेरे जैसी हो। अच्छा चलता हूं। लंड खड़ा हो चुका है। नमस्ते।

समाप्त
[email protected]