पिछला भाग पढ़े:- बाप बेटी की चुदाई – मालिनी अवस्थी की ज़ुबानी-12
डाक्टर मालिनी का आलोक के साथ चुदाई का प्रोग्राम बन चुका था। लंड चुसाई और चूत में ऊंगली-बाजी जारी थी। बातों-बातों में मालिनी ने आलोक की बात का जवाब देते हुए कहा कि चुदाई के मामले में वो भी मानसी से कम नहीं, तो आलोक मुस्कुरा दिया।
“मैं बैठी हुई आलोक के लंड के टोपे की चमड़ी आगे-पीछे कर रही थी, और आलोक मुझे अपने लंड के साथ खिलवाड़ करते हुए देख रहा था। आलोक को भी मेरे लंड के टोपे की चमड़ी आगे-पीछे करने से मजा आ रहा था”।
“हमारा दूसरा पैग भी खत्म हो चुका था। तीसरा बड़ा सा पैग पीने के बाद अचानक आलोक ने मेरी चूत से उंगली निकाल ली, और दारू के सुरूर में बोला, “चलिए उठिये मालिनी जी, आपकी गांड में डालूं अपना लम्बा लंड। रागिनी को तो बड़ा मजा आता है गांड चुदवाने का। आपको भी बड़ा मजा आएगा”।
“शिवाज़ रीगल के तीन पैग का सुरूर तो मुझे भी हो चुका था। मैं भी उठी। गिलास की बची स्कॉच पी, और बेड के किनारे पर उल्टा हो कर लेट गयी, चूतड़ पीछे करके उठा दिए और अलोक से कहा, “लो आलोक कर दी गांड तुम्हारे हवाले। अब जैसे मर्जी रगड़ो इसे”।
“ये सुनना था कि आलोक ने जैल की ट्यूब उठा कर जैल मेरी गांड के छेद पर लगाई और उंगली पूरी गांड में डाल दी। मैंने पीछे सर करके आलोक को देखा और हंस दी”।
“गांड में उंगली करना भी एक तरह का ठरक ही है। चूत में या गांड में उंगली डालने से मजा तो किसी को भी नहीं आता”।
“कुछ देर उंगली अंदर-बाहर करके आलोक ने खूब सारी जैल मेरी गांड के छेद पर और अपने लंड पर लगाई। फिर लंड गांड के छेद पर रखा, और मेरी कमर पकड़ कर एक ही झटके से पूरा का पूरा लंड गांड के अंदर तक बिठा दिया”।
“आलोक का लंड रगड़ खाता हुआ मेरी गांड में बैठा था। हल्की सी दर्द और मजे से मेरे मुंह से एक सिसकारी सी निकली ‘आह’। इस आह में दर्द काम और मजा ज्यादा था”।
“गांड में पूरा लंड अंदर डालने के साथ ही आलोक बोला, “मालिनी जी आपकी गांड तो अभी भी टाइट है, आज रगड़े लगाने का मजा आएगा, आपको भी और मुझे भी। ऐसे गांड चुदाई करूंगा आपकी, कि आप भी याद रखेंगी कि किसी ने गांड चोदी थी”।
“शायद आलोक का मतलब था कि रागिनी की गांड का छेद आलोक की गांड चुदाई से खुल चुका था”।
“मैं भी सर पीछे के तरफ मोड़ कर कहा, “आलोक ये इसलिए है कि मैं गांड चुदाई की शौक़ीन जरूर हूं, मगर इतनी भी नहीं। छह महीने या साल में एक बार ही मेरी गांड चुदाई होती है। ये तो आज तुम्हारा लम्बा लंड गांड में लेने का हो गया – चलो अब शुरू हो जाओ”।
“आलोक ने मेरे चूतड़ों पर एक धप्पड़ जमाते हुए कहा, “तभी मालिनी जी, रागिनी तो पंद्रह दिन में जब तक एक बार गांड ना चुदवा ले उसकी तो तसल्ली नहीं होती”।
“ये कह कर आलोक ने मेरी गांड चुदाई चालू कर दी”।
“गांड में लंड के धक्के लगाते हुए फिर जैसे आलोक अपने आप से ही बोला, “आज आएगा असली गांड चुदाई का मजा आआह। लंड और गांड दोनों की ही बढ़िया रगड़ाई होगी आज”।
“आलोक की ऐसी गांड लंड की बातें मेरे मजे को दुगना कर रही थी। दारू से दिमाग तो मेरा भी घूमा ही हुआ था। मैंने भी कहा, “आलोक रगड़-रगड़ कर फुला दे आज मेरी गांड। चल अब चुदाई की तरफ ध्यान दे, ऐसे धक्के लगा, जैसे धक्के कुत्ता कुतिया को चोदते हुए लगाता है – कुतिया की कमर पकड़ कर दीन दुनिया से बेखबर”।
“इसके बाद तो आधा घंटा आलोक ने जो मेरी गांड की रगड़ाई की वो मुझे ही पता है। मेरी चूत में रबड़ का मोटा लंड घुसा हुआ था, और गांड में आलोक का लम्बा लंड। दो बार मेरी चूत का पानी निकल चुका था, और अब हालत ये थी कि चूत में मजा आना बंद ही नहीं हो रहा था”।
“उधर आलोक मेरी गांड में लंड के धक्के लगा रहा था। उधर चूतड़ आगे-पीछे करके, चूतड़ झटका झटका कर मैं भी आलोक का लंड पूरा अंदर ले रही था”।
“आलोक के लम्बे लंड के धक्के गांड में लग रहे थे, मगर मजा चूत में आ रहा था”।
“तभी आलोक के लंड के धक्कों की स्पीड एक-दम बढ़ गयी, और साथ ही उसके बोल भी। अलोक बोल रहा था, “आआआह आआह मालिनी मेरी जान आअह मेरी जान आआआह ले निकला आअह ले निकला आआआह आआहअब निकलेगा गांड के अंदर”।
“और इसके साथ ही आलोक ने गर्म पानी का फव्वरा मेरे गांड में छोड़ दिया”।
“लम्बे लंड की ऐसी चुदाई और आलोक की वो मस्त कर देने वाली बातें – मुझे नहीं याद अब तक मेरी गांड की ऐसी चुदाई भी कभी हुई थी। गांड चुदवा कर मैं बिस्तर पर निढाल हो गयी, और मेरे साथ ही आलोक भी लेट गया”।
“रबड़ का लंड अभी भी मेरी चूत में ही था। आलोक उठा, रबड़ का लंड मेरी चूत में से बाहर निकाल कर मेरी टांगें उठा कर चौड़ी कर दी और मेरी चूत चाटने लगा”।
“जब चुदाई का मजा सर से उतरा तो आलोक बोला, “मालिनी जी गांड चुदाई का इतना मजा तो मुझे कभी भी नहीं आया”। और ये कह कर वो मेरे ऊपर ही लेट गया और मेरे होंठ जोर-जोर चूसने लगा”।
“मैंने भी आलोक को अपने होंठ चूसने से मना नहीं किया”।
कुछ देर में जब आलोक के सर से गांड चुदाई के मजे का भूत उतरा तो वो उठा और कपड़े पहन लिए। मैं भी उठी और मुंह हाथ और गांड, चूत की धुलाई करके, मेकअप ठीक कर के तैयार हो कर क्लिनिक में आ गयी”।
“मैंने प्रभा को बुलाया और कुछ ठंडा लाने के लिए बोल दिया”।
मैंने आलोक से पूछा, “आलोक रागिनी की चुदाई को तो मैं समझ सकती हूं, मुझे ये बताओ मानसी को भी तो तुम ऐसे ही चोदते होंगे”?
आलोक बोला, “जब भी मेरी और मानसी की चुदाई होती है, तो ऐसे ही चोदना पड़ता है मालिनी जी”।
“एक दिन की बात है, मानसी को चोदने का मेरा मन नहीं था तो मैंने मानसी को चोदने से मना कर दिया। खैर मालिनी जी मना करने के बावजूद भी उस दिन मानसी के कमरे में ही चुदाई तो हुई मगर बेमन की वो चुदाई लम्बी नहीं चली”।
“मानसी को चोद कर मैं अपने कमरे में आ गया। अभी मुझे बिस्तर पर लेटे हुए कुछ ही टाइम हुआ होगा कि मानसी आ गयी। बिल्कुल नंगी। मानसी दुबारा चुदाई करवाने आये थी, रगड़ाई वाली चुदाई”।
“तब मानसी की पहल से हम दोनों में दुबारा चुदाई हुई, रगड़ाई वाली चुदाई। ऐसी चुदाई से मानसी की तसल्ली हुई”।
“चुदाई करते हुए मैंने मानसी को बाहों में जकड़ा हुआ था। मानसी की छोटी-छोटी सख्त चूचियां मेरी छाती के साथ चिपकी हुई थीं। मतलब वो चुदाई पति-पत्नी, प्रेमी-प्रेमिका वाली चुदाई की तरह की चुदाई थी। शायद तभी मेरी बीस साल की बेटी ने चुदाई के बाद लंड मुंह में कर लंड को प्यार किया था और बोली थी, “थैंक यू पापा”।
“मानसी के चुदाई के बाद “थैंक यू पापा” बोलने से मैं तभी समझ गया कि मानसी को ढीली-ढाली बेमन वाली चुदाई नहीं, अच्छी खासी रगड़ाई वाली चुदाई चाहिए। उसी दिन मैंने सोच लिया कि या तो बाप बेटी में चुदाई या तो बिल्कुल नहीं होनी चाहिये, और अगर होनी है तो फिर ऐसी होनी चाहिए जैसी उस वक़्त हुई थी”।
“मालिनी जी उस दिन की जैसी चुदाई हुई थी, उस चुदाई में सब कुछ था, बस एक गंदी बकवास-बाज़ी ही नहीं थी। जबरदस्त धक्के, पूरा लंड बाहर निकाल कर झटके से चूत में डालना, सब कुछ था। उस दिन के बाद मानसी को कुछ कहने की जरूरत नहीं हुई। उस दिन के बाद हमारी चुदाई उसी तरह होती थी – रगड़ाई वाली चुदाई”।
मैंने अलोक हंस कर से पूछा, “आलोक मानसी की गांड में अपना ये डंडा तो नहीं डाला अब तक? गांड तो नहीं चोदी मानसी की अब तक”?
आलोक बोला, “नहीं मानसी जी। मानसी ने अब तक गांड चोदने के लिए तो नहीं कहा, और वैसे भी मानसी की गांड चुदाई की मेरी कोइ मंशा नहीं। मेरी तो मानसी की चूत चुदाई में ही कोई दिलचस्पी नहीं, गांड चुदाई तो दूर की बात है। मगर आप ये क्यों पूछ रही हैं”?
मैंने जवाब दिया, “आलोक भूल कर भी मानसी की गांड में अपना ये लम्बा लंड मत डालना, अगर मानसी कहे भी तब भी नहीं। लम्बा लंड चूत में उतना मजा नहीं देता, जितना गांड में देता है। अगर कहीं मानसी क गांड में तुम्हारा ये बम्बू जैसा लौड़ा एक बार चला गया, तो मानसी जोंक की तरह चिपक जाएगी और फिर मैं तो क्या कोइ भी उसे तुमसे चुदाई करवाने से रोक नहीं पायेगा”।
“आलोक ये सुन कर चुप हो कर बैठ गया”।
फिर मैंने कहा, “अच्छा एक बात बताओ अलोक, रागिनी नौ या शायद दस दिन पहले आयी थी मेरे पास, मेरे जापान जाने से पहले। रागिनी बता रही थी उसने अपनी हस्पताल की शिफ्ट दिन की करवा ही ली है। अब रागिनी रात को घर पर ही होती है। क्या इस दौरान तुम्हारी और मानसी की चुदाई हुई”?
अलोक ने कहा, “हुई तो नहीं मालिनी जी”।
मैंने फिर पुछा, “क्या उसके बर्ताव से ऐसा लगा कि उसे रागिनी की अपनी शिफ्ट बदलवाने का गुस्सा है”?
अलोक बोला, “नहीं मालिनी जी ऐसा लगा तो नहीं। मानसी तो पहले भी रागिनी के साथ कम ही बात करती थी। अब भी वैसा ही है। दोनों में कम ही बात होती है”।
मैंने फिर आलोक से कहा, “आलोक अब मेरी बात ध्यान से सुनो। रागिनी को बोलना परसों मानसी को मेरे पास लेकर आये। रागिनी को ये भी बोलना मानसी को यहां छोड़ कर चली जाए। मैं उससे अकेले में ही बात करूंगी”।
“इस बीच अगर मानसी चुदाई करवाना चाहे तो मना मत करना। मानसी को चोद देना पहले ही की तरह। एक-दम की बंद चुदाई कहीं उसे डिप्रेशन में ही ना डाल दे”।
“यह बता कर मैं चुप हो गयी। आलोक समझ गया कि मेरी और से काम पूरा हो गया था”।
“आलोक बोला, “मालिनी जी वो रबड़ का लंड कहां से मिलेगा”?
मैंने कहा, “आलोक तुम उसकी चिंता मत करो, वो तुम मुझ पर छोड़ दो। पहले मुझे मानसी से बात करने दो। मानसी से बात करने के बाद ही देखूंगी उसे ऐसी रबड़ के लंड की जरूरत है भी या नहीं। और अगर जरूरत है तो कैसे लंड की जरूरत है – कितने मोटे लंड की जरूरत है”।
“मानसी अभी छोटी है, ज्यादा मोटा लंड उसके लिए ठीक नहीं। और साथ ही ये भी देखूंगी कि मानसी को फिर सिर्फ चूत में डालने वाला लंड ही चाहिए या दूसरा वाला, गांड और चूत में डालने वाला सेक्स टॉय भी चहिये। जैसी भी उसकी जरूरत होगी तो मैं ही मंगवा दूंगी”।
आलोक ने कहा, “मालिनी जी ये महंगे तो होंगे, आप मुझे बता देना मैं पेमेंट कर दूंगा”।
मैंने हंसते हुए कहा, “उसकी भी चिंता तुम मत करो आलोक। एक बार सेक्स टॉयज आने दो फिर तुम्हें बुलाऊंगी। टॉयज भी लेते जाना और”, अलोक के लंड की तरफ इशारा करके मैंने कहा, “उनकी कीमत भी देते जाना”। ये कह कर मैं हंस दी।
आलोक चलने के लिए उठा तो मैंने उसे अपने पास बुलाया, “आलोक,जरा इधर आओ”।
“आलोक मेरे पास आ गया। मैंने उसे बाहों में लेकर आलोक के होंठ अपने होठों में ले लिए। पांच मिनट उसके होठ चूसने के बाद मैंने आलोक को छोड़ा और कहा, “आलोक बढ़िया गांड चुदाई के लिए थैंक्स”।
“आलोक ने भी पीछे हाथ करके मेरे चूतड़ दबाये और चूतड़ों की दरार में उंगली डालता हुआ बोला, “मालिनी जी मस्त टाइट गांड है आपकी। चुदाई करवाने में भी आपका कोइ मुकाबला नहीं”। ये कह कर आलोक चला गया।
“उधर मैं सोच रही थी संदीप सोलंकी से बात करती हूं। अब गांड में लेने के लिए आठ इंच लम्बा रबड़ का लंड मगवाना ही पड़ेगा”।
“आलोक के जाने के बाद मैंने सोचना शुरू किया कि अपने से तीस-बत्तीस साल छोटी मानसी से लंड चूत गांड वाली भाषा में कैसे बात करूंगी, और इस तरह खुल कर बात किये बिना बात भी बनने वाली नहीं थी। फिर मैंने सोचा, आने देते हैं मानसी को, फिर जैसा मौक़ा और माहौल बनेगा, वैसी ही बात कर लूंगी”।
— मानसी की मुलाक़ात डाक्टर मालिनी के साथ।
“दो दिन बाद रागिनी अपनी बेटी मानसी को ले कर आ गयी”।
“रागिनी से कोइ एक इंच लम्बी बेहद खूबसूरत मानसी बिल्कुल रागिनी पर गयी थी। साथ-साथ खड़ी दोनों बहनें ही लग रही थी”।
“रागिनी ने मुझे नमस्ते की मगर मानसी की नमस्ते करने से पहले ही हंसी छूट गयी”।
“मानसी बहुत हंसमुख लड़की थी, हमेशा हंसने वाली। मानसी के चेहरे की चमक से लग रहा था कि मानसी चुदाई करवाती तो है, मगर चुदक्कड़ नहीं है”।
“हमेशा चुदाई के चक्कर में रहने वाली चुदक्कड़ औरतों के चेहरे पर ऐसी चमक, ऐसा गुलाबीपन नहीं होता, जैसा मानसी के चेहरे पर था, मगर रागिनी के चेहरे पर नहीं था”।
“नमस्ते-नमस्ते के बाद रागिनी मानसी से बोली, “मानसी ये मालिनी जी हैं। कभी जीवन ज्योति में थी। आजकल जीवन ज्योति की कंसलटेंट – सलाहकार हैं। मालिनी जी तुमसे अकेले में कुछ बात करना चाहती हैं”।
“फिर रागिनी मेरी तरफ देख बोली, “अच्छा तो मालिनी जी मैं चलती हूं। आप अपना समय लीजिये। मानसी मेरे साथ आयी है, यहां का काम पूरा होने पर मानसी खुद ऑटो या टैक्सी करके चली जाएगी”।
“मैंने कहा, “उसकी चिंता मत करो रागिनी, मेरा ड्राइवर शंकर इसे छोड़ आएगा”।
“रागिनी चली गई। मानसी मेरे सामने वाली कुर्सी पर बैठ गयी। मैंने मानसी से पूछा, “कैसी हो मानसी”?
मानसी ने फिर से हंसते हुए जवाब दिया, “मैं ठीक हूं आंटी”।
फिर मैंने मानसी से कहा, “मानसी मैं तुम्हे अपने बारे में और अपने काम के बारे में बता दूं। पहले ये बताओ क्या पियोगी, चाय, कॉफी या कुछ और”?
मानसी बोली, “कॉफी ही पी लूंगी आंटी”।
“मैंने फोन करके प्रभा को कॉफी लाने के लिए बोल दिया”।
कॉफी पीती हुई मानसी से मैंने कहा, “मानसी बेटा, मैं एक साइकैट्रिस्ट हूं मनोचिकित्सक मेरे नाम के आगे डॉक्टर जरूर लगा हुआ है लेकिन मैं किसी भी तरह की शारीरिक या मानसिक बीमारी का इलाज नहीं करती। एक मनोचिकित्सक को बातों से लोगों के विचार को गहराई से जानने के लिए ट्रेंड किया जाता है”।
“कई बार लोग हमारे पास आते हैं अपनी समस्याएं बताते हैं, और उनका हल हमसे पूछते हैं। हैरानी की बात ये होती है उनकी समस्या का कारण उनको खुद समझ में नहीं आता। मगर एक मनोचकित्सक को बातों से ही उनकी समस्या का करण समझ आ जाता है”।
ये कह कर मैंने मानसी की तरफ देखा और हंसते पूछा, “मानसी मैंने कुछ मुश्किल तरीके से तो अपने बारे में नहीं बताया”?
मानसी हंसी और बोली, “नहीं आंटी, मैं ये जानती हूं। ये भी जानती हूं कि आप मम्मी को बहुत पहले से जानती हैं। आप मम्मी और पापा से मिल चुकी हैं। मम्मी जान-बूझ कर मुझे आप के पास अकेला छोड़ कर गयी है, ताकि आप मुझसे खुल कर बात कर सकें”।
मैंने कहा, “अच्छा मानसी ये बताओ, अब जब कि तुम ये कह रही हो तुम्हारे मम्मी तुम्हें यहां मेरे पास क्यों लेकर आये है, तो एक बात का जवाब और दो – मगर पूरी सच्चाई के साथ”।
“मानसी खुल कर हंसते हुए , “आंटी मैं सब कुछ सच ही बताऊंगी। मझे ना कुछ छुपाने के जरूरत है ना झूट बोलने की। मुझे पता है मैं जो कर रही हूं वो कुछ लोगों के लिए गलत हो सकता है, मगर मैं तो उसे गलत नहीं समझती। अब पूछिए क्या पूछना है”?
“मैंने मानसी की साफ़ बातें सुन कर अच्छा लगा। ऐसे लोगों की मानसिक समस्याएं सुलझाना एक चैलेंज होता है। सालों बाद मुझे ये चैलेंज मिला था। मुझे अफ़सोस हुआ कि जापान जाने से पहले मेरी मानसी से बात क्यों नहीं हुई”।
“मानसी हंसमुख और खुले स्वभाव से मुझे ये भी समझ आ गया कि मानसी से बात करने में कोइ मुश्किल पेश नहीं आने वाली। मैंने मानसी को भी बता दिया कि मैं सारी बात-चीत रिकार्ड करती हूं और एक बार समस्या का समाधान निकल जाए तो टेप वापस कर देती हूं”।
“मेरी बातें सुन कर मनसी बोली, “मुझे ये सब मालूम है आंटी, आप पूछिए जो भी पूछना है”।
मैंने टेप रिकार्डर का रिमोट हाथ में लेते हुए मानसी से कहा, “एक बात और मानसी, जो भी बात करना साफ़-साफ़ शब्दों में करना। ढके छुपे शब्दों से बात करने से कई बार बातों का कुछ अलग मतलब भी निकल जाता है। समझ गयी”।
मानसी जोर से हंसी और बोली, “आंटी आपका मतलब लंड, चूत, चुदाई, सब साफ़-साफ़ बोलूं”?
“और इससे से पहले कि मैं मानसी की इस बात का जवाब देती, मानसी ही बोल पड़ी, “आंटी मैं सब कुछ साफ़-साफ़ ही बोलूंगी। मम्मी तो मुझे आपके पास लाई ही इस लिए है कि मेरी और पापा के बीच जो चुदाई होती है वो आप किसी तरह बंद करवा दें। अब आपसे क्या छुपाना और कैसा शर्माना”।
“कहां तो मैं सोच रही थी कि अपने से इतनी छोटी मानसी से कैसे साफ़-साफ़ बात करूंगी। मगर यहां तो मानसी ने लंड चूत चुदाई जैसे शब्द बोल कर मेरी समस्या ही हल के दी। सुन्दर होने के साथ-साथ मानसी समझदार भी थी”।
“मानसी अपनी बात बताने के लिए तैयार थी। मैंने टेप रिकार्डर तैयार किया और मानसी को बोला, “हां तो मानसी शुरू से शुरू हो जाओ।
मैंने क्लिक की एक आवाज के साथ टेप रिकार्डर चालू कर दिया।
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