मेरे चारों बच्चे मेरी जान-6

शाम हुयी, सारे कर्मचारी चले गए। मैं हमारे रेस्ट रूम में आ गयी। अभिषेक गेट वगैरह लॉक करने के लिए निचे था। इतने में मैंने अपने कपड़े खोल लिए, सिर्फ ब्रा-पैंटी में आ गयी, अपने बाल खोल लिए, एक गाढ़ी से लिपस्टिक लगा ली, और अपने मोबाइल में एक रोमांटिक सा म्यूजिक लगा दिया। आज मैं अपने बेटे का ये दिन स्पेशल बनाना चाहती थी। इतने में मेरी नज़र कमरे में रखे एक छोटे से आईने पर पड़ी। काफी दिनों बाद मैंने खुद को निहारा। मैं किसी अभिनेत्री से कम नहीं लग रही थी।

अभिषेक जैसे ही कमरे में घुसा, वो मुझे देखता ही रह गया। सीधे मेरे पास आकर मेरे नंगे कमर को पकड़ कर मुझे जकड लिया, “माँ, तू इतनी हॉट है, मुझे आज एहसास हुआ। तू तो मेरे उम्र की एक कॉलेज जाने वाली लड़की लग रही है।” ये कहकर उसने मुझे चुम लिया।

मैं अब निचे बैठ कर उसका लंड निकालते हुए कहा, “बेटु, आज तू आँखें बंद मत करना। तू मेरी आँखों में आँखे डाले रह।”

और उसका लंड निकाल कर मैं चूसने लगी। मैं उसका लंड चूस रही थी और हम दोनों की नज़रें एक दूसरे पे टिकी थी। ये काफी उत्तेजित करने वाला दृश्य था।

“आह माँ, चुसो माँ, अपने लाल होंठो से मेरे लंड को चूमो, माँ। बहुत दिन इंतज़ार करवाया है आपने मुझे। बहुत दिनों से आपकी चुत से दूर रहकर तड़पा हूँ माँ। आह उह ओह्ह ओह्ह ओह उह आह ओह यस।” ये सब वो मेरी आँखों में आँखें डाल कर कह रहा था। मैं और तेज़ चूसने लगती। कुछ देर में वो झड़ गया और हम दोनों एक दूसरे के बाहों में आकर लेट गए।

“माँ, मैं तुझे बचपन से देख रहा हूँ, तुझे नंगी भी देख रहा हूँ पिछले कुछ महीनो से, पर आज तू गज़ब की हॉट लग रही है, माँ।”, मेरे बेटे ने मेरे तारीफों की पुल बांधते हुए कहा। “तू अभी भी काफी जवान है। तेरा बदन, तेरा चेहरा, तेरी त्वचा। कोई देख कर तेरी उम्र नहीं बता सकता माँ। मैं चाहता हूँ अब तू ज़रा खुलकर सजे धजे, नए नए तरीके के कपड़े पहने, तू ज़रा मेक-अप करेगी तो और खूबसूरत लगेगी।”

मैं शर्मा गयी और उसके होंठों को चूमने लगी।

उसका लंड अब खड़ा होने लगा। मैंने उसके लंड को पकड़ कर कहा, “अब चोद दे, बेटु। बहुत दिनों से मेरी चुत इंतज़ार कर रही है तेरे लंड का।” ये कहकर मैंने अपनी पैंटी निचे सरका दी। और ब्रा खोलने लगी तो, तो अभिषेक ने मेरे हांथो को रोकते हुए कहा, “ब्रा मत खोलो, माँ। बहुत खूबसूरत लग रही हो इस ब्रा में आज तु।”

भय्यी, मेरे प्रेमी की इच्छा सर-आँखों पर। लेटे हुए ही वो मेरे पीछे आ गया। मेरे एक टांग को उठा कर उसने पीछे से ही अपना लंड मेरे चुत में घुसेड़ दिया। और मुझे ज़ोर ज़ोर से चोदने लगा। मेरे दूदू ब्रा में कैद होकर हिल रहे थे। मेरा बेटा एक हाँथ से मेरे टांग को उठाये हुए था और दूसरे से बारी बारी ब्रा के ऊपर से दूदू मसल रहा था। इस आसान में मैं पहली बार चुद रही थी और ये मुझे बेहद पसंद आ रहा था। ऐसा लग रहा था मानो मेरे पुरे पीठ और गांड पे हर लंड के धक्के के साथ धक्का लग रहा हो।

“बेटु, आह यह आअह, ये आसान तूने कहाँ से सीखा? ओह उह आह मुझे बहुत मज़ा आ रहा है।”, मैंने पूछा।

“माँ, तू मेरे लिए तैय्यारी कर सकती है, मैं कुछ ख़ास नहीं कर सकता क्या? ” ये कहकर वो और ज़ोर से धक्के देने लगा।

इस आसान में कुछ देर चोदने के बाद उसने मुझे कमर से पकड़ कर उठाया और पुराने वाले कुतिया स्टाइल में सेट किया और पीछे से अपना लंड गांड में घुसाने लगा।

“शोना, तू आज मुझे रगड़ कर चोद। बहुत दिनों से मेरी वो रगड़न चुदाई नहीं हुयी है।” ये बस कहने की देर थी और मेरे बेटे ने मेरे बालों को लपेट कर धक्का देना शुरू किया और मैं मदहोश होने लगी।

“चोद बेटा, बेरहम होकर चोद। अपनी माँ की कोख भरदे बेटा। मुझे चोद चोद कर मेरी चुत लाल कर दे, मेरी जान। मेरे शोना। आह उह ओह उह उह ओह, हाँ मेरा बेटु, बिलकुल बेरहमी से चोद, मेरा बाबू।” पर चुदते हुए अचानक मुझे फिर से गाली वाली बात याद आ गयी। और मैं असमंजस में पड़ गयी की गालियों का प्रयोग करूँ या नहीं करूँ?

इतने में अचानक मेरे बेटे ने तेज़ी बढ़ा दी और उत्तेजना में मेरे मुंह से निकल गयी, “चोद दे साले माधरचोद, अपनी माँ को रंडी बना के चोद, साले बेहेन के लौड़े।”

ये सुनते ही अभिषेक रुक गया। और मुझे देखने लगा। मैंने अपना सर घुमा कर उससे आँखों ही आँखों में पूछा की रुक क्यों गया?

“माँ, ये क्या था? और आप कब से इस तरह की गालियों का इस्तेमाल करने लगी? और आप खुद को रंडी क्यों कह रही हो?” उसने बड़े ही हैरानी से पूछा।

“बेटा, मेरी एक सहेली ने मुझे कहा की चुदते वक़्त गालियां देकर चुदने में काफी मज़ा आता है। मैं कई दिनों से तेरे साथ कुछ नया करने का सोच रही थी पर हिम्मत नहीं हो रही थी। अभी तूने इतनी ज़ोर से धक्का दिया की मेरी जुबां से निकल गयी। तू भी मुझे दे सकता है। मुझे कुछ भी बोल, मुझे बुरा नहीं लगेगा।”

“मैं कोशिश करता हूँ माँ, पर फिर भी, तुझे कुछ अनापशनाप कहने में अजीब लगेगा।”

और फिर वो मुझे धीरे धीरे चोदने लगा। और मैंने कहा, “चोद अपनी रंडी माँ को साले, कुतिया बना कर चोद, चुत का भोसड़ा बना दे इस रंडी की ”

तो इसमें उसने जवाब दिया, “हाँ साली, छिनाल, साली रंडी, तुझे तो मैं सड़क चांप रंडियों जैसी चोदूँगा। तेरी चुत फाड़ के कुतो को खिला दूंगा, साली रांड।”

बाँध टूटकर पानी का सैलाब आने में सिर्फ एक छोटी दरार की ज़रूरत होती है, फिर चाहे बाँध किसी भी सीमेंट या पथ्थर का बना हो। बस फिर क्या था, ये गालियों के साथ चुदाई का सफर अब चल पड़ा। मेरी सहेली और उसके पति को गालियों भरा चुदाई क्यों पसंद था, ये मुझे एहसास होने लगा। चुदाई के वक़्त जब आप गाली देते हैं, तो उससे चुदाई और आक्रामक होती है। आप अपने जोश को लंड और जुबां, दोनों से ज़ाहिर करते हैं। खुल कर चुदने का आनंद देती हैं गालियां।

हम दोनों का गालियों से भरपूर चुदाई का सफर सरपट दौड़ पड़ा। चुदाई करते वक़्त हम पता नहीं एक दूसरे को कितनी गालियां देते थे। बिलकुल ही भद्दी गालियां। वो मुझे रांड कहता, छिनाल, बहन के लौड़ी, रखैल, कुतिया की बच्ची, बाजारू रंडी, भोंसड़ीवाली और पता नहीं क्या क्या कहता। मैं भी उसे माधरचोद, भोंसड़ीवाला, रंडी की औलाद, बहनचोद और जितने गालियां हैं, सब देती। पर कमरे से बाहर आके वो मुझे माँ ही बुलाता और मैं उसको मेरा बेटु। कमरे के बाहर इन शब्दों का इस्तेमाल न एक दूसरे के लिए होता ना ही अपने आम ज़ुबाँ में।

मैंने देखा की जब बिज़नेस में ज़्यादा ऊपर निचे होता तो मेरा बेटा मुझे और भी ज़्यादा गन्दी गाली देकर रगड़ता, वो जब गुस्से में होता तो नार्मल से ज़्यादा देर तक चोदते रहता। अब वो चोदते हुए मेरे चेहरे पर भी थप्पड़ मारता।

कभी कभार मेरा मुंह पकड़ कर मेरे ऊपर थूक देता। ज़मीन पर थूकता और फिर मेरे बालों को लपेट कर मुझसे अपनी थूक, अपनी वीर्य चंटवाता। उसका ये आक्रामक अंदाज़ मुझे बेहद पसंद था। घर पर उसकी माँ होती, पर बंद कमरे में मैं उसकी ग़ुलाम।

मुझे अच्छा लगता जब खुश होता तो प्यार करता, गुस्सा होता तो मुझे बेरहमी से चोद कर गुस्सा निकलता। इतने दिनों में पहली बार ऐसा होने लगा की मैं आलोक जी को भूल जाती। अचानक याद आता की ये आलोक जी का बेटा है। मेरी शादी हुयी थी किसी ज़माने में। अभिषेक का साथ मुझे हर दिन और जवान बना रहा था। तन से भी और मन से भी।

ये एक बेहद खूबसूरत बात थी। उसका ये रूप सिर्फ उस कमरे तक रहता था। उस कमरे से बाहर आते ही वो बिलकुल मेरा राजा बेटा हो जाता था। घर पे, ऑफिस में या कहीं भी, वो अपने संस्कार नहीं भूलता और मर्यादा का उलंघन नहीं करता। मुझे कई बार आश्चर्य होता की अभिषेक जो अभी मेरे सामने झुक कर मेरे पैर छूकर मुझसे आशीर्वाद ले रहा है, बंद कमरे में जाते ही मुझे रंडी बनाकर चोदेगा, थूक चंटवायेगा, चोदते हुए थप्पड़ मारेगा। पर ये कोई ढोंग नहीं था। ये बस एक अनकहा नियम था हमारे बीच में जिसकी गरिमा हम दोनों समझते हैं। बहार मेरा भी दिल उसके लिए एक माँ जैसा ही धड़कता है और अंदर कमरे में एक प्रेमिका जैसा।

कुछ पाठक सोचेंगे की मैं कहीं ये प्रताड़ना या ऐसा कुछ तो नहीं सेहन कर रही। नहीं, बिलकुल भी नहीं। मेरे आलोक जी भी आक्रामक अंदाज़ में चोदते थे, थप्पड़ बस गांड पे मारते थे। पर ये गाली वाली प्रथा मैंने ही शुरू की अभिषेक के साथ। थप्पड़ और थूक की जहाँ तक बात हो, तो सच कहूं तो मुझे अच्छा लगता। अच्छा लगता है जब मेरा बेटा, मेरा प्यार, मेरी नियंत्रण करता है। मुझे एक पल भी ऐसा नहीं लगता की कोई सीमा लांघ रहा है मेरा बेटा।

मेरे कहानी के जो हीरो हैं। उनमे से एक की तो काफी पहले ही मृत्यु हो गयी। मेरा दूसरा हीरो अभी परदे पर है। लेकिन अब मेरे तीसरे हीरो के एंट्री की बारी है।

कहानी काफी लम्बी है और काफी रोमांचक भी। आज जब उन दिनों को याद करती हूँ तो मुझे भी लगता कहीं ये सपना तो नहीं। पर ये सपना नहीं, हकीकत है।

कुछ समय का विराम चाहूंगी। या यूँ कहें की इंटरवल हुआ है। जुड़े रहिएगा।

पढ़ते रहिये, क्योकि कहानी अभी जारी रहेगी।

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