पिछला भाग पढ़े:- मां चुदी पंचायत भवन में-1
हिंदी सेक्स कहानी के पिछले पार्ट में आपने पढ़ा कैसे मां गांव की औरतों के लिए ठरकी सरपंच से भिड़ पड़ी। फिर वो उसके घर गई अपना काम करवाने के लिए जहां वो मम्मी से उल्टी-सीधी बातें करने लगा। अब आगे-
सरपंच: बहुत गर्मी है तुझमें लगता है। सब निकालना पड़ेगा। अच्छा ठीक है, साइन मोहर तो करना ही है। अब बोल भी दो कहां-कहां करना है (और वो अपनी दोगली हंसी हंसने लगा)?
मम्मी कागज को टेबल पर रखते हुए सरपंच की ओर देखने लगी।
सरपंच: लगता है आज साइन और मोहर करा कर ही जाओगी। मैं तो साइन मोहर कर दूंगा, परंतु मुझे क्या मिलेगा?
और मम्मी को ऊपर से नीचे तक देखने लगा। मम्मी उस दिन काले रंग की नेट वाली साड़ी पहनी हुई थी, और बहुत ही ज्यादा सेक्सी लग रही थी। मुखिया अपने होंठ पर जीभ फिराने लगा। मम्मी यह देख कर अपना सर नीचे कर ली।
सरपंच: मैं चाहूं तो तेरी यह गलती के लिए तुम्हें बहुत ही ज्यादा कठोर सजा भी दे सकता हूं। और तू मेरा कुछ भी नहीं उखाड़ सकती। जो यह तू पुलिस के मुझे धमकी दे रही है, वह सब मेरे आगे-पीछे दुम हिलाते फिरते हैं।
मम्मी उसकी बातें सुन कर थोड़ी सी घबराई, परंतु फिर मम्मी ने हिम्मत करके बोली-
मम्मी: सरपंच जी मैं जानती हूं कि मैं आपका कुछ नहीं उखाड़ सकती। परंतु आपको भी पता होगा, कि जो कुछ भी नहीं कर सकता वह भी बहुत कुछ कर सकता है। इसीलिए आप चुप-चाप साइन कीजिए, और मेरा काम होने दीजिए।
सरपंच: कर दूंगा, परंतु एक शर्त पर। जब तुम मेरी जांघो पर आकर बैठ जाओगी।
और यह कह कर हंसने लगा। मम्मी उसकी बातों से थोड़ी असमंजस में लगी, और फिर बोली-
मम्मी: देखिए सरपंच जी, मैं गांव की विधावओं से वादा करके आई हूं, कि उन्हें उनका हक दिला के रहूंगी। फिर चाहे मुझे जो भी करना पड़े। यदि आप मेरे बारे में कुछ भी सोचेंगे, तो मैं आपको बर्बाद भी कर सकती हूं, और यदि आप चुप-चाप मेरा काम कर दे, तो मैं आपके लिए आप जो चाहें मैं कर सकती हूं।
यह सरपंच के लिए ऑफर था। उसने झट से मेरी मम्मी के हाथ को पकड़ कर अपनी बाहों में खींच लिया, और बोला-
सरपंच: बस इतनी सी बात। मैं तो अभी कर दूंगा (और मम्मी को दबोच कर उनको चूमने लगा। परंतु मम्मी ने उसे धक्का देकर हटा दिया)।
सरपंच: यह क्या हिमाकत है संजना जी लगता है आपको मेरी अंदाजा नहीं है?
मम्मी अपनी नज़र नीचे करके बोली: मेरा बेटा भी यहीं पर है। मैं यह सब नहीं कर सकती।
फिर सरपंच ने थोड़ा जोर लगा कर बोला-
सरपंच: बेटा हमें थोड़ा यहां एक-दो घंटे समय लगेगा। इसलिए तुम चाहो तो जा सकते हो। तुम्हारी मम्मी यहां कागज पत्र का कुछ काम कर रही है।
मैं: मम्मी क्या आप ठीक हो?
मम्मी: हां बेटा, तुम चाहो तो जा सकते हो। मैं एक घंटा में वापस आती हूं।
ठीक है मम्मी बोल कर मैं वही छिप गया, और थोड़ी देर बाद जब उन्हें लगा कि मैं चला गया, तब सरपंच ने फोन करके किसी से कहा के बाहर बोर्ड लगा दो कि आज पंचायत भवन बंद है। मैं बाहर देखा तो दिखा कि कोई पंचायत भवन पर
कोई बोर्ड लगा रहा था, और बाहर से दरवाजा को बंद कर रहा था।
अंदर कमरे में मम्मी को सरपंच दीवार के सहारे सटा कर उनकी चूचियों पर अपनी छाती का दबाव देकर मम्मी के गाल को चूमने लगा। मम्मी कुछ देर तो चुप-चाप खड़ी रही, परंतु सरपंच ने मम्मी के होंठ और गाल को चूम कर उन्हें भी गर्म कर दिया। मम्मी भी अब उनका साथ देने लगी। जैसे-जैसे सरपंच मम्मी के होंठ को चूसता, मम्मी भी उसके होंठ को चूस कर जवाब देती, और साथ ही उसके बालों और पीठ को सहलाती।
मम्मी के काले रंग के साड़ी को सरपंच ने खींच कर अलग कर दिया, और मम्मी अब उनके सामने काले रंग के ब्लाउज और काले रंग के पेटीकोट में खड़ी थी। मम्मी की गोरी-गोरी नाभी सरपंच के सामने थी। सरपंच उन्हें ललचायी नज़रों से देख रहा था।
सरपंच ने मम्मी के ब्लाउज और ब्रा को एक साथ खींच कर निकाल दिया, और मम्मी के दोनों चूचियों को बारी-बारी से दबाते हुए उनके निपल्स को काटने लगा आआह्ह्ह ऊऊह्ह्ह्ह। फिर सरपंच ने मम्मी को गोद में उठाया, और टेबल पर ले जाकर लिटा दिया। मम्मी के पेटीकोट को ऊपर तक उठा कर मम्मी की गोरी-गोरी जांघो को चूमने लगा।
मम्मी मदहोशी में सिसकारने लगी। उनके मुंह से आआआह्ह्ह्ह उउउउउउफ्फ्फ्फ़ आवाज़ आ रही थी। सरपंच मम्मी की जांघों को चूमते हुए मम्मी की पेंटी को दांतों से काटने लगा। मम्मी अपनी आंखें बंद करके उउफफ्फ्ग आह्ह कर रही थी। तभी सरपंच ने मम्मी के पेंटी को खींच कर अलग कर दिया, और फिर पेटिकोट का नाडा खोल कर उन्हें पूरी तरह नंगी कर दिया। फिर मम्मी के पैरों को फैला कर सरपंच मम्मी की गोरी-गोरी चूत को चाटने लगा।
इसी तरह मम्मी को लिटा कर उनकी चूत चाटते हुए उठा, और अपने लंड को निकाल कर मम्मी के सामने रख दिया।
मम्मी ने उसके गंदे लंड को देखते ही मुंह फेर लिया। फिर सरपंच गुस्से में आया और मम्मी के बुर पर अपना लंड रगड़ने लगा।
मम्मी उसके लंड के रगड़ाई से तड़प उठी और वह सिसकारने लगी।
फिर सरपंच ने मम्मी की बुर को फैलाया, और अपने लंड को अंदर डालने लगा। तभी मम्मी ने उसके लंड को पकड़ के मरोड़ दिया, और उसके होंठ को किस्स करते हुए मुस्कुराते हुए बोली-
मम्मी: पहले साइन तो कर दीजिए सरपंच जी। मैं कहां अपनी बुर लेकर भाग रही हूं। जी भर के चोद लेना बाद में?
मुखिया मम्मी के इस हमले से थोड़ा तिलमिला उठा और वह बोला-
सरपंच: बहुत ही शातिर औरत है तू। मैं इस गांव की इतनी सारी औरतों को चोदा हूं। परंतु उनमें से एक ने भी आज तक हिम्मत नहीं कि मुझसे कुछ मांगने की। मैंने जो दिया वह हंस के रख लेती। आज तू पहली है जो मेरा लंड मरोड़ कर मुझसे बहुत बड़ी कीमत वसूल रही है। आज तो तेरी ऐसी चुदाई करूंगा कि तू हमेशा मेरे लंड के लिए तड़पेगी।
फिर सरपंच ने साइन और मोहर दोनों लगा कर, मेरी मम्मी को टेबल पर लिटा कर। उनकी चूचियों को जोर-जोर से मसलते हुए, अपने लंड को जोर से उनकी बुर में पेल दिया। मम्मी इस हमले से तड़प उठी, और उन्होंने अपनी आंख बंद करके अपने आप को समेट लिया।
सरपंच ने मम्मी की चूचियों को मसलते हुए उन्हें जोर-जोर से चोदना शुरू कर दिया। मम्मी के गोरी और कोमल बदन को वह बहुत ही निर्दयता से चोद रहा था। मम्मी की चूचियों को मसल कर लाल कर दिया था, और उनके होठों को चाट-चाट कर लिपस्टिक खा गया था।
अब मम्मी को भी सरपंच से चुदने में मजा आ रहा था। सरपंच जैसे-जैसे मम्मी की बुर में धक्का लगाते, मम्मी भी अपनी गांड उठा कर उनकी धक्कों का जवाब दे रही थी।
फिर सरपंच ने मम्मी को टेबल से नीचे उतारा और उनकी एक टांग टेबल पर रख कर पीछे से मम्मी के बुर को चोदने लगा। मम्मी की दोनों चूचियां नीचे लटक रही थी, और सरपंच उन्हें चोदते हुए उनकी चूचियों को मसल रहा था, और गर्दन और नंगी पीठ को चूम रहा था।
इसी तरह तेज-तेज धक्के लगाते हुए मम्मी की बुर में ही सरपंच का सारा माल निकल गया, और वह कुत्ते की तरह हांफते हुए मम्मी पर गिर गया। मम्मी ने उसे अपने ऊपर से हटाया और अपनी बुर को साफ करके पेंटी और सारे कपड़े पहन कर अपने आप को ठीक कर ली। उसके बाद वहां से अपने कागज पत्र लेकर निकल गई। जैसे ही मम्मी निकली, कुछ देर बाद मैं भी बाउंड्री के दूसरे तरफ से फांद कर बाहर चला आया।
मम्मी ने इस तरह से सरपंच से विधवाओं का हक दिला दिया, और उसके बाद जो भी गांव में कुछ प्रॉब्लम होता, तो वह मम्मी के पास जाते, और मम्मी सरपंच के पास जाती। फिर सरपंच मम्मी की चुदाई करता, और उसके बाद सारा गांव का काम निकाल देता।
मम्मी का अब गांव में बड़ा नाम हो गया था। जिसकी वजह से पापा भी अब मम्मी पर खुश थे। मम्मी गांव की कई सारी समस्याओं का हल बिना सरपंच के भी करती थी। गांव वालों ने तो यहां तक कहने लगे थे कि अगली सरपंच का चुनाव मेरी मम्मी ही लड़े।
मम्मी ने भी गांव वालों से कह दिया था कि इस बारे में वह सोचेंगी। सरपंच भी चाहता था कि मम्मी उनकी ही पार्टी से खड़ी हो और उनकी ही पार्टी की सरकार बने। क्योंकि सरपंच को भी पता था, कि इस बार चुनाव में चाहे जो भी चुनाव लड़े, जीतेगी तो मेरी मम्मी ही।