चित्रा और मैं-8

पिछला भाग पढ़े:- चित्रा और मैं-7

शाम के साढ़े सात ही हुए थे जब पड़ोस वाली आंटी हमें बुलाने आयी थी। मतलब यह कि हमारे पास करीब आधा-पौन घंटा था पड़ोस में जाने से पहले।

बदमाशियों में पक्की माहिर चित्रा ने अपनी चूची चुसवाने के लिए आगे बढ़ते हुआ कहा “राज, तुम मेरी चूचियों से खेलो और मैं सोचती हूं कि आंटी के घर पे क्या करना है। मगर पहले तो यह है कि अगर आंटी ने हम दोनों में इंटरेस्ट दिखाया तो तुम उन्हें चोदने को तैयार रहना मेरे सामने, ओके?”

यह सुन कर मैं तो ऐसा चौंका कि अगर अपने आप को फ़ौरन संभालता नहीं तो चित्रा की चूची चबा ही ली होती। मैं बोला “यार चित्रा, तुम्हें भी हद की बदमाशी के अलावा कुछ सूझता ही नहीं क्या? अभी हम ना वहां पहुंचे, ना हमने खाना खाया, और ना तुमने आंटी को सही तरह से समझा, सीधे उन्हें मुझसे चुदवाने की दूर की सोच तक कैसे पहुंच गई?”

चित्रा खिलखिला कर हंसी, और फिर मेरे लौड़े को सहलाती हुई बोली “सारी की सारी वजह तो ये तुम्हारा प्यारा सा लौड़ा और तुम हो। मुझे तो मेरे दिमाग में आलरेडी ये लन्ड आंटी की घुंघराली झांटों वाली चूत के अंदर और मेरी चूत उनके मुंह पर दिखाई दे रही है।”

यह कह कर मेरे सामने घुटने टेक कर बैठ गई चित्रा, एक हाथ से पकड़ा लौड़ा, और दूसरे से मेरी बॉल्स को सहलाते हुए लगी सुपाड़े को चूसने, और अगले पांच मिनिट में चूस-चूस कर ऐसे उसे खड़ा कर दिया, कि मेरे दिमाग में भी आंटी की चूत नज़र आने लगी।

इससे पहले कि मैं एक बार फिर झड़ जाऊं, मैंने चित्रा कि बगलों में हाथ डाल कर उसे खड़ा किया, और खुद उसके सामने बैठ कर अंगूठों से उसकी चूत की फांकें अलग कर उसके चने को चूसने लगा।

“हाय राम! क्या चूसते हो तुम! तुम चूसो मेरी चूत और मैं सोचती हूं कि हम लोग क्या पहन कर चलें आंटी के घर”।

आठ बजे जब हम निकले खाना खाने तो चित्रा ने अपनी चूत और मम्मे, और मैंने अपने लौड़ा, बॉल्स, और झांटे अच्छी तरह से साबुन से धोये हुए थे, और उसने ब्रा, ब्लाउज, और घुटनों तक की स्कर्ट पहनी जिसके नीचे उसने नंगे रहने का इरादा किया, और मुझे भी कच्छा नहीं पहनने दिया, और एक ऐसी पैंट पहनने को कहा, जिसकी दोनों जेबों में छेद हो, तांकि ज़रुरत पड़ने पर खड़े लौड़े को काबू में रख सकूं।

मैंने पूछा कि खुद स्कर्ट के नीचे नंगी क्यों जा रही थी, तो वो बोली “अभी पूछो मत, वहां अगर बात बनती हुई लगी मुझे, तो खुद ही समझ जाओगे। और इसलिए भी कि जब भी मौक़ा मिले तो तुम उसे छू सको”, मुझे शरारत भरी नज़रों से देख कर। “लेकिन यार चित्रा, मुझे तो एक हाथ जेब में ही रखे रहना पड़ेगा क्योंकि ये लौड़ा तो अपनी हरकतों से बाज़ कैसे आएगा? यह जानते हुए कि तुम तो अपनी स्कर्ट के नीचे नंगी हो ?”

मैंने कहा “चित्रा, एक काम करो, 10 मिनिट देर से चलते हैं, और उतनी देर में अगर तुम मेरे लौड़े को चूस-चूस कर और एक बार खाली कर दो तो वो एक घंटे तक के लिए शांत रहेगा, क्या ख्याल है?” “नहीं, अभी और बिल्कुल नहीं” चित्रा ने मेरे लौड़े के सामने बैठ कर, बड़े प्यार से मेरी पैंट के आगे के बटन खोल कर, उसे दोनों हाथों में लेकर उसे ध्यान से देखते हुए उसको कहा “मुन्ने बच्चू, मेरा बस चले और तुम्हारे राज पापा अगर बर्दाश्त कर सकें तो तुम्हें चूस तो मैं सारे दिन सकती हूं, तुम हो ही इतने प्यारे।

लेकिन क्या पता राज को और मुझे खाना खिला कर पड़ोस वाली आंटी तुमसे मेहनत करवाना चाहती हो, और तुम्हें मेरी तरह अपनी बुर और चूचियां खोल कर दिखा दे तो क्या करोगे?”

चित्रा ने तो पड़ोसन को जैसे मिलने से पहले ही तय कर लिया था कि वो खाना खिलाने के बाद हम दोनों के साथ सेक्स मस्ती तो ज़रूर करना चाहती

होगी ही।

मेरे दिमाग में भी चित्रा को देख कर लगने लगा था कि जैसे सभी अकेली जवान पड़ोसनें पड़ोस के जवान लड़के -लड़कियों के साथ सेक्स मस्ती करते ही होंगे। आखिर सोचने में तो कोई हर्ज़ नहीं है ना? बदमाशी सीखनी हो तो बस चित्रा से मिलना काफ़ी है।

खेर, जैसे-तैसे मैंने चित्रा से लौड़ा छुड़वाया और पॉकेट में हाथ डाल कर उसे काबू में किया। और फिर चल पड़े हम दोनों एक-दूसरे का हाथ पकड़ कर, खाना खाने के लिए।

आंटी ने जब अपने घर का दरवाज़ा खोला चित्रा ने उन्हें नमस्ते करने के लिए मेरा हाथ छोड़ने से पहले चित्रा ने उसे हल्का सा दबा दिया।

आंटी के बाल खुले थे जिससे लग रहा था कि अभी नहा कर आयी थी, और वो केवल कमरबंद की जगह पर इलास्टिक वाला पेटीकोट और ब्लाउज पहने थीं, जिसके ऊपर एक हल्के पीले रंग की ओढ़नी डाली हुई थी।

उसमें से मम्मों की क्लीवेज साफ़ दिख रही थी। हमें घर के अंदर लेकर आंटी ने पहले तो कहा “तुम दोनों मुझे आंटी नहीं दीदी पुकारो, क्यूंकि दीदी बोलोगे तो खुल कर बात होगी, नहीं तो संकोच ही बना रहेगा, और फिर मैं भी तो कोई अधेड़ औरत थोड़े ही हूं। तुम लोगों से थोड़ी सी बड़ी ही तो हूं।”

“ठीक है दीदी” बोल कर चित्रा उनसे गले भी मिल ली। दीदी ने मुझे वहीं बैठने को कहा, और चित्रा से बोली “तू चल मेरे साथ किचन में, राज को यहीं बैठने दे जब तक हम दोनों खाने की तैयारी करते हैं, ओके राज?” मैंने भी हामी में सर हिला दिया, और पास के सोफे पर बैठ गया।

कुछ देर में किचन से पहले कुछ फ्राई होने की आवाज़ आयी, फिर कुछ जानी-पहचानी सी खुशबू आयी। मुझसे जब रहा ना गया तो मैं भी किचन में पहुंचा तो खुश हो गया। दीदी कचौड़ियां बेल रही थी और चित्रा उन्हें फ्राई कर रही थी।

मुझे देख कर चित्रा बोली “मज़ा आ जाएगा राज, दीदी ने तुम्हारे लिए बनारसी कचौड़ियां, चटपटी आलू की सब्ज़ी, बूंदी का रायता और सलाद तैयार किया है। अकेले ही इतनी मेहनत की है, मैं तो दीदी को बोल रही थी कि मुझे थोड़ा पहले बुला लेना था तो मैं भी साथ मिल कर कुछ काम करवा देती। अब हम दोनों को भी दीदी के लिए कुछ ऐसा करना पड़ेगा कि वह भी खुश हो जाएँ, है ना राज?”

“हम्म्म्म्म, सो तो है, तुम्ही कुछ सोचो ना, क्या करें हम लोग दीदी के साथ कि वह भी हमारी तरह खुश हो जाय?” “ओके, तुम चलो बैठो डाइनिंग टेबल पर हम खाना लेकर आते हैं, और इस बीच मैं दीदी से पूछती हूं कि हम दोनों उनके लिए क्या करें कि वह भी हमारी तरह खूब खुश हो जाए।” बोली चित्रा, आखिरी कचौड़ी को फ्राई करते हुए।

अब चित्रा के दिमाग में कुछ ना कुछ खुराफात तो रहती ही है हर समय। उसने तो पड़ोसन दीदी पर पहली नज़र में ही भांप लिया था कि वह अपने ब्लाउज़ के नीचे ब्रा नहीं पहने हुए थी, और उनके साथ किचन में कचौड़ी बनाते हुए जब दीदी ने एक पल को पेटीकोट के ऊपर से जब अपनी झांटों को खुजाया तो चित्रा को फ़ौरन पता चल गया कि दीदी ने पैंटी भी नहीं पहनी हुई थी।

मतलब पड़ोसन दीदी पेटीकोट के नीचे वैसे ही नंगी थी जैसे चित्रा खुद अपनी स्कर्ट के नीचे। मन-ही-मन चित्रा यह सोच कर मुस्कुराई कि राज बेचारे के लौड़े का क्या हाल होगा जब उसे यह पता चलेगा।

खाना टेबल पर लग गया था तब दीदी ने हमसे शुरू करने को कहा और बोली कि वह बाथरूम होकर आती है।

उसके जाते ही चित्रा ने मुझसे फुसफुसा कर कहा कि, “लगता है दीदी मस्ती करने के लिए पूरी तैयारी कर चुकी है, क्योंकि ना तो उसने ब्रा पहनी है और ना पेटीकोट के नीचे पैंटी। यानी पेटीकोट के नीचे दीदी भी नंगी है जैसे मैं नंगी हूं स्कर्ट के नीचे। लगता है उसने ज़रूर कोई पहल करने की तरकीब भी सोची हुई होगी।”

मैंने भी व्हिस्पर किया “फिर तो हम दीदी के प्लान का ही इंतज़ार करें ना, वह शुरुआत करेंगी तो बहुत मज़ा आएगा और फिर आगे आने वाले दिनों के लिए हम दोनों का रास्ता भी तो खुल जायेगा!” “हां, अब चुप करो वह आ रही हैं पेशाब करके और चूत पोंछ कर।” बोल कर चित्रा ने इतने में मेरी प्लेट में दो कचौड़ी डाल दी और आलू की सब्ज़ी मेरी ओर बढ़ा कर बैठ गयी।

दीदी आकर चित्रा के सामने यानी मेरे बगल में बैठ गयी और रायता मेरी तरफ कर दिया। “वाह, क्या खाना बनाया है दीदी! मेरा बस चले तो हम दोनों रोज़ यहां आ जाया करें, क्यों ठीक है ना चित्रा?” “हां तुम लोग तो आज रात को भी मेरे पास ही सो जाओ ना, मुझे तो अकेले सोना ज़रा भी अच्छा नहीं लगता।

कोई बदमाश अगर ज़बरदस्ती आ जाये तो में क्या करूंगी? क्यों राज?” दीदी ने मेरे कंधे पर हाथ रख कर बोला। मैंने फ़ौरन उनके हाथ के ऊपर अपना हाथ रख कर बोला “हां दीदी, बात करते हैं इस बारे में, अभी मैं ज़रा तीन-चार कचौड़ी और खा लूं।” “चल पेटू कहीं का बदमाश ” चित्रा बोली, “दीदी आप इसे अपना हाथ पकड़ाओगी तो ये तो और भी कुछ पकड़ने ना लगे, जरा ख्याल रखना।” “क्या कह रही चित्रा, राज तो एसा बिल्कुल भी नहीं दिखता, भले लोगों का बेटा जो है, क्यों राज ?” दीदी बोली।

इधर-उधर की बातें और कुछ हंसी मज़ाक़ में हमारा खाना भी हो गया। खाना खा कर हम तीनो दीदी के ड्राइंग रूम में बैठ कर फिर बातें करने लगे। दीदी ने कहा “चित्रा मेरा पति तो अगले शनिवार को आएगा, और राज के माता-पिता भी कल सुबह चाय-पानी के बाद तक ही लौटेंगे, तो क्यों ना तुम दोनों आज रात को यहीं सो जाओ? क्या ख्याल है?”

चित्रा ने जवाब में मेरी तरफ देख कर कहा “दीदी आप चलो हमारे साथ अपना घर बंद करके, और हम सब राज के घर में सो जाते हैं आज रात को। सुबह जब चाची और चाचा आएंगे तब आप वापस आ जाना, क्यों राज?” मैंने तो फ़ौरन सर हिला कर हां कर दी यह सोच कर कि चित्रा ने ज़रूर दीदी के साथ कुछ सेटिंग की होगी कचौड़ियां बनाते टाइम।

वापस घर आ तो गए, पर मुझे बार-बार यही ख्याल आ रहा था कि चित्रा स्कर्ट के नीचे नंगी थी, दीदी पेटीकोट के नीचे नंगी और बिना ब्रा के थी, और मेरा लौड़ा तो ना तो खुद बैठ रहा था, और ना मुझे आराम से बैठने दे रहा था।

दीदी आराम से सोफे पर बैठ कर बोली “हां, चित्रा और राज, चलो तुम दोनों पहले तो मुझे यह बताओ कि तुम दोनों आज घर में अकेले आखिर क्या-क्या बदमाशियां कर रहे थे?” चित्रा मुस्कुराते हुए मेरी तरफ देख कर बोली “कुछ भी तो बदमाशी नहीं की ना राज? बस कैरम और लूडो खेला, और एक बार बहार जा कर चाट खाई। काफी बोर-से हो गए हम लोग, है ना राज?” मैंने भी हामी भर दी।

“अच्छा जी, अगर सिर्फ कैरम और लूडो ही खेल रहे थे तो चाट खाने के लिए जाते टाइम प्यार से एक-दूसरे का हाथ क्यों पकड़ा हुआ था? और लौटते टाइम एक पेपर बैग में क्या लेकर आये हो ज़रा मुझे दिखाओ तो सही?” मुस्कुरा कर दीदी बोली। “मैं सब समझती हूं कि 18 बरस के लड़का-लड़की सारा दिन घर में अकेले क्या करते हैं।

अभी ज़्यादा दिन नहीं हुए मुझे उस उम्र से गुज़रे हुए। और हम भाई-बहनों ने तो आपस में बहुत बचपन से एसी-एसी बदमाशियां की थीं कि तुम लोग सोच भी नहीं सकते।” फिर कुछ सोच कर दीदी बोली “ओके, में बड़ी हूं इसलिए पहले मैं ही बताती हूं कि बचपन में हम भाई बहन लोग क्या-क्या करते थे।”

दीदी ने बताया की वह सब कजिन भाई-बहन मिला कर सात बच्चे थे, तीन लड़के और चार लड़की, और सभी करीब- करीब एक ही उम्र के थे जब से हर साल गर्मी कि छुट्टियों में इकट्ठे हुआ करते थे बैंगलोर में एक ताऊजी के बंगले में। सब बच्चों के पिता आपस में भाई हैं।

सभी बच्चों के लिए आँगन में एक ही नहाने के लिए बाथरूम था, जिसमें पहले तीनों लड़के एक साथ, और फिर चारों लड़कियां एक साथ नहाने के लिए नंगे करके घुसा दिए जाते थे, जिससे जल्दी नहाना निबट जाए। बाथरूम के बाहर एक तरफ एक पानी के घड़े रखने के लिए प्लेटफार्म था और वहीं बाथरूम की खुली खिड़की होती थी।

जब तीनो लड़के एक साथ नहा रहे होते तो चारों लड़कियां प्लेटफार्म पर चढ़ कर खिड़की में से लड़कों को नंगा नहाते आराम से देखती थीं, और माँ-बाप कुछ नहीं कहते थे। और लड़के तो लड़के होते हैं। वह कभी एक-दूसरे की नुन्नी पर साबुन लगाते, और कभी अपनी नुन्नी का सुपाड़ा एक दूसरे से टकराते, तो कभी एक-दूसरे को झुकाते गांड के छेद में साबुन लगाने के बहाने, और कभी अपने (नाम के) मसल्स दिखाने लगते।

दीदी बोली “हम सब लड़कियां आपस में डिसकस करते कि किसकी नुन्नी बड़ी या मोटी थी, या इतनी छोटी थी कि ठंडा पानी पड़ते ही सिकुड़ कर बस खाल ही रह जाती है। तब हम खिलखिला कर उसको पूछते की तू मूतेगा कैसे तो वह खिसिया कर अपनी नुन्नी कि खाल को आगे-पीछे कर के उसे बाहर निकालता”

आगे की कहानी अगले भाग में।

अगला भाग पढ़े:- चित्रा और मैं-9

Leave a Comment