पिछला भाग पढ़े:- दादी माँ की मनोहर कहानियां-1
मैं: साली बुढ़िया, शर्म है ना लाज। कैसे अपने ही पोते से अपनी चूत चुसवा रही है। ले बहन की लौड़ी, मेरा लौड़ा चूस कर साफ़ कर। मैंने देखा दादी के चेहरे पे एक अलग मुस्कान सी आ गयी। शायद वो भी चाहती थी कि अब मैं उनकी एक रंडी की तरह चुदाई करूं।
दादी मेरे लौड़े को चूसते हुए मेरे आँखों में आँखें डाल कर इशारा कर रही थी कि मैं उनके मुंह को चोदूं। और मैंने उनके मुंह में अपना लौड़ा अंदर-बाहर करना और तेज़ कर दिया।
एक तो मेरा इतना बड़ा लौड़ा, दादी के मुंह से सिर्फ गौ गौ गौ गौ की आवाज़ आ रही थी, और मुंह से पूरा लार नीचे तक टपक रहा था। तेज़ी बढ़ाने के कारण उनके आँखों में आंसू थे। पर उनके चेहरे में एक हवस से भरी ख़ुशी थी। अब दादी लौड़ा चूसते-चूसते थक गयी और जैसे ही मैंने उनके मुंह से अपना लौड़ा निकाला, वो बोल पड़ी-
दादी: बउवा, अब भोंसड़ा में घुसा दे अपना मशाल। हमरा आग बुझा दे बेटा। बहुत दिन से खुजली हो रहा है। रिंकिया से चूत चंटवा के शान्ति नहीं मिलती, मुन्ना।
मैं: पहले बोल, तू हमरी रंडी है।
दादी: हां मुन्ना, हम तुम्हरी रंडी है, बेटा।
मैं: नहीं, ठीक से बोल।
दादी: हाँ-हाँ, हमरी जान। हम तुम्हरी रंडी है। हमको चोद-चोद के मार दो बेटा। हमरा भोंसड़ा फाड़ दो बेटा।
मैं: बोल की जब तक तू ज़िंदा है, हमरी रखैल बन के रहेगी।
दादी: और मत सताओ, राजा। हमको रखैल बनाओ, छिनाल बनाओ, रांड बनाओ, कुतिया बनाओ। बस हमरा मईया चोद दो बउवा।
मैं: चल, मेरी रांड दादी, अपना चूत खोल।
मेरे कहते ही दादी ने अपने दोनों हाथों से अपनी चूत के द्वार को खोल कर मेरे सामने परोस के दिया। दादी की चूत बहुत ज़्यादा चुदा हुई थी इसीलिए मैंने रहम करना फ़िज़ूल समझा और सीधा अपना बड़ा सा लौड़ा उनकी चूत में दे घुसाया। दादी चीख उठी।
दादी: रे माधरचोद, सच में फाड़ दिया रे बहन का लौड़ा।
अब मैं उनको चोदने लगा। उनकी चूत में अपना लौड़ा अंदर-बाहर करने लगा और वो ज़ोर-ज़ोर से कराह रहीं थी और आहें भर-भर कर चिल्ला रहीं थी।
दादी: आह आह। और चोद बहनचोद, जोर से चोद, जोर से चोद। फाड़ दे हमरा भोंसड़ा। भोंसड़े का भोंसड़ा निकाल दे।साली भोंसड़ी बहन की लौड़ी बहुत सताती है। बहुत खुजली देती है। ओह उफ़, आह आह, और तेज़ चोद बेटा और तेज़।
जैसे-जैसे मैं दादी को चोद रहा था, उनका खूबसूरत दूध हिल रहा था। उनके दूध को देख कर मुझे लालच आ गया और चोदते हुए मैं उनके ऊपर झुक गया और उनके दाएं दूध को अपने मुंह में लेकर उनका निप्पल चूसने लगा। दादी और मदमस्त हो गयी।
दादी: बहुत मज़ा आ रहा है, मुन्ना। ऐसे ही करते रहो।
एक हाथ से वो अपने एक दूध को भींच रही थी और दूसरे हाथ को मेरे बालों पर सहला रही थी।
अब मैं इस आसन में उन्हें चोदते हुए थक गया। मैंने जैसे ही उनकी चूत से अपना लौड़ा निकाला, वो रोने लगी।
दादी: बउवा, रुक काहे गए राजा? हमको चोदो ना मुन्ना।
मैं: अरे मेरी रांड की जनि, तुमको बिना संतुष्ट करके नहीं जाएंगे मेरी रानी।
मैंने दादी को बिस्तर से खींचा और नीचे उतार दिया। अब उनके एक पैर को उठा कर बिस्तर पर रख दिया, और पीछे से उनकी चूत में अपना लौड़ा घुसा दिया और चोदने लगा। मैं पीछे से धक्के मारने लगा। पूरे कमरे में थप-थप की आवाज़ गूंज रही थी और साथ में मेरी रांड दादी की आहें।
दादी: आह आह अहा हां हां आह ओह। हाय राजा, मेरा जान, मेरा बउवा। इतना मजा बहुत दिन बाद आ रहा है बेटा। और तेज़ चोदो मेरा राजा।
खड़े-खड़े हम दोनों थक गए तो मैं फिरसे बिस्तर पर चढ़ गया और दादी को खींच कर ले आया और उन्हें कुतिया बना दिया। उनकी गांड क्या मस्त लग रही थी। इतनी मोटी गांड पे मैंने कई बार ज़ोर-ज़ोर से थप्पड़ मारा और दादी दर्द में चीख उठती।
उनकी कसी हुए मस्त कमर को पकड़ कर मैंने उनकी चूत में फिर से अपना लौड़ा घुसा दिया और हचक कर चोदने लगा। उनकी मोटी गांड पर मेरे शरीर के लगने से थप-थप की ज़ोर से आवाज़ हो रही थी।
बीच-बीच में उनकी फूली हुई गांड को देख कर हाथ अपने आप उनकी गांड को थप्पड़ मार देता। बीच-बीच में मैं उनके बालों को अपने हाथों में लपेट कर ज़ोर-ज़ोर से खींचता और घोड़े की लगाम जैसा पकड़ कर तेज़ी से चोदता और दादी मस्ती में चिल्लाती, आहें भरती, गालियां देती।
अब मेरी पीठ दर्द करने लगी। मुझे एहसास हुआ कि मेरी प्यारी दादी की ठुकाई करते हुए डेढ़ घंटे से ऊपर हो गया था। मैं थक के चूर हो गया था, क्यूंकि ये मेरे लिए पहली बार था। मैं अभी भी झड़ा नहीं था, पता नहीं दादी ने दूध में क्या मिलाया था। मैं बिल्कुल थक कर बिस्तर पर सपाट लेट गया पर इस रांड की गर्मी अभी ख़तम कहां हुई थी, और मेरा लौड़ा भी अभी तक तना हुआ था, बिल्कुल सीधा तम्बू जैसा। मेरी प्यारी रांड आकर मेरे होंठो को चूमने लगी।
दादी: का हुआ, बउवा? थक गया का?
मैंने उनके दूध को पकड़ते हुए कहा-
मैं: साली बुढ़िया, कौन चूल्हा का गर्मी है की ख़तम ए नहीं होती?
दादी शर्मा कर हंसने लगी और फिर से चूमने लगी। मैंने उनकी गांड को उठाया और अपने खड़े लौड़े पर बैठा दिया और इशारा किया कि अब वो खुद से ही करें।
दादी मेरे लौड़े के ऊपर एक छोटी बच्ची के तरह कूदने लगी और चुदवाने लगी। जब वो कूद रही थी तो उनके दूध भी ऊपर नीचे कूद रहे थे।
अब मैं बस दादी को निहारने लगा। साली बुढ़िया जब इस उम्र में इतनी कातिलाना है, तो जवानी में क्या माल रही होंगी। और जब अभी तक इतनी गर्मी है तो जवानी में तो इनकी हवस बुझाना नामुमकिन होगा।
करीब 5 मिनट तक और दादी मेरे लौड़े पर कूदती रही और मैं झड़ गया। मेरा पूरा रस दादी के चूत में ही निकल गया। दादी अभी भी मेरे लौड़े पर ही बैठी थी। जैसे ही वो उठी, उनके चूत से मेरा रस टपक कर मेरे पेट पर गिर गया। वो झट से आकर मेरे पेट से मेरा रस चाटने लगी और चाट-चाट कर पूरा रस पी गयी।
हम दोनों की सांसें चढ़ी हुई थी। दादी भी अब निढाल हो कर मेरे बगल में आ कर गिर पड़ी। करीब 5 मिनट बाद जान में जान आयी, तो मैंने दादी के तरफ देख कर कहा-
मैं: दादी, तुम हमको स्वर्ग दिखा दी। कभी नहीं सोचें थे कि सबसे पहली बार अपना ही दादी को चोदेंगे।
दादी: अरे बउवा। हमको भी बहुत ख़ुशी है की हमरा दुलारा पोता का सबसे पहली बार चुदाई हमरा से हुआ। चलो, थोड़ा नहा लो। तब नींद बहुत बढिया आएगी।
मैं और दादी एक साथ बाथरूम में नहाने लगे। मेरा लौड़ा फिर से खड़ा हुआ तो मैंने दादी को खींच कर उनको उनके घुटनों पर बैठा दिया और अपना लौड़ा उनके मुंह में घुसेड़ दिया। वो भी बिल्कुल एक छोटी बच्ची के तरह मेरे लौड़े को लोल्लिपॉप जैसा चूसने लगी। पर मैं अब 2 मिनट में ही झड़ गया। जो थोड़ा बहुत मुठ नाली में बचा था, वो निकल गया, टंकी पूरी खाली हो गयी। नहाने के बाद मैं और दादी नंगे ही एक दूसरे से लिपट कर सो गए।
अगले दिन से एक नई दिनचर्या बन गई हमारी। अगले दिन दोपहर में मैंने रिंकी को भी चोदा। जवान है इसलिए चूत बहुत कसा हुआ था। और मेरा बड़ा से लौड़ा लेने के वजह से उसकी सांसें अटक गयी थी। पर फिर एकदम रंडी जैसा चुदने लगी।
शाम में रिंकी को ठोकते थे और रात की हकदार तो सिर्फ मेरी प्यारी दादी थी। अगली रात मैंने दादी की पहले से ढीली गांड को और ढीला कर दिया। दादी को गांड मरवाना ज़्यादा पसंद था। रिंकी की गांड खोलने में ज़रा परेशानी हुई।
मैं दादी के पास जहानाबाद में लगभग 6 महीने रहा और ऐसा कोई दिन नहीं गया जिस दिन मैंने दादी को और रिंकी को नहीं चोदा होगा। कई बार दादी और रिंकी को एक साथ चोदा। कभी-कभी रिंकी का बड़ा भाई आ जाता तो चारों मिल कर चुदाई करते। कई बार तो रिंकी और दादी बारी-बारी कर एक बार में दो लौड़े से चुदी हैं। एक लौड़ा चूत में, दूसरी गांड में।
सुबह, दादी और रिंकी, दोनों घर का काम करके खेतों में चले जाते थे। तो मैंने दादी से इच्छा ज़ाहिर की कि गांव कि कुछ और माल के चुदाई का इंतज़ाम करें। और दादी अपने पोते से इतना प्यार करती थी कि किसी भी फरमाईश को मना नहीं करती थी।
उन्होंने दिन के समय के लिए गांव की कुछ भाभियों का और कुछ जवान लड़कियों का इंतज़ाम करवा दिया जिन्हे मैं चोदता था। मेरे दादा जी जब ज़िंदा थे तो गांव के मुखिया थे और दादी की भी सब इज़्ज़त करते थे। और गांव की सारी औरतें दादी के पास मदद वगैरह के लिए आती रहती थी। तो दादी को कोई मना नहीं करता था।
पर जो मज़ा दादी को पेलने में आता था, वो किसी में नहीं था। दादी बिल्कुल बेहुदी होकर चुदती थी। ऐसा लगता था कि पैसे के लिए अपने मालिक को खुश कर रही थी।
6 महीने में मैंने दादी और रिंकी को मिला कर कुल 8 औरतों को चोदा। लेकिन दादी के बाद जिसको चोदने में सबसे ज़्यादा मज़ा आया, वो थी मौजूदा सरपंच कि बीवी। अभी का सरपंच जवान और पढ़ा-लिखा, और कम उम्र का लड़का था, जिसकी हाल ही में शादी हुयी थी। हमारे खेतो में पानी का लाइन पास कराने के लिए दादी बहुत दिनों से उसके पास अर्ज़ी दे रही थी, पर वो अनसुना कर देता था।
एक दिन हम गांव के बाजार गए थे तो एक बला की खूबसूरत, बिल्कुल जवान और किसी सिनेमा की हीरोइन जैसे एक लड़की को देखा। जब मैंने दादी से पूछा तो पता चला की यही थी सरपंच की शहरी बीवी, मेनका। मेनका पे मेरा दिल आ गया। जब मैंने दादी से उसको सेट करने के लिए बोला तो दादी ने कहा-
दादी: बउवा। तू गांव की जो लड़की को बोलेगा, उसको चुदवा देंगे, सरपंच की माई तक को चुदवा देंगे, लेकिन उसकी मेहरारू बिल्कुल असंभव है।
पर असंभव को संभव करने का एक अलग ही मज़ा है।
और दादी के साथ 6 महीने रह कर उनके भी कई राज़ खुले, कैसे दादा जी अपने दोस्तों के साथ दादी को एक साथ चोदते थे। दादा जी के जाने के बाद कितने मर्दों से दादी ने चुदाई करवाई।
दादी की चूत सबसे पहले किसने चोदी थी, और एक बार में दादी ने कितने लौड़े लिए है। दादी के मनोहर कहानियों से ये साफ़ था की मेरी प्यारी दादी शुरू से ही एक नंबर की रंडी थी, पर दिल की बहुत साफ़ थी।
मुझे तो पटना जाने का मन ही नहीं करता था। हर बार मां-पापा को बहाने दे देता था की अभी यहां स्थिति ख़राब है, यहां निकलने नहीं दे रहे।
ऐसे बहाने करते-करते मैंने 6 महीने जहानाबाद में अपनी दादी को ठोकते हुए गुज़ार दिए। फिर भी मन नहीं भरा था। उसके बाद अनलॉक की प्रक्रिया शुरू हो गयी।
जहानाबाद तो बाइक से भी आराम से जाया जा सकता है तो मैं किसी ना किसी बहाने से हर शनिवार-इतवार को जहानाबाद चला जाता था और दिन-रात दादी और रिंकी की ठुकाई करता था।
कुछ महीनों बाद फिर से बंगलोर के एक कंपनी में मुझे नौकरी मिल गयी थी, और इस बार अच्छी तनख्वाह के साथ। तो मैंने एक फ्लैट रेंट पे ले लिया। मैंने एक महीने के लिए दादी को अपने पास बुला लिया।
उन्होंने कभी अकेले सफर नहीं किया था इतना दूर, तो ज़ाहिर सी बात है की रिंकी भी साथ आयी। पापा-मां ने उन्हें पटना में ट्रैन में बैठा दिया और मैंने उन्हें बैंगलोर स्टेशन में उतार लिया।
फिर दोनों को बैंगलोर घुमाया, वहां का रहन-सहन, कपड़े, खाने का अंदाज़ उन्हें सिखाया। मेरी बुढ़िया रांड को मस्त-मस्त कुछ ब्रा-पैंटी और छोटे-छोटे कपड़े खरीद के दिया, जिसे वो बैंगलोर में पहन सके।
दादी शुरू के एक-दो दिन शर्माती थी, क्यूंकि उनके लिए पूरा माहौल ही नया था और भाषा भी अलग, पर फिर धीरे-धीरे घुल गयी। मैं शाम में जल्दी ही ऑफिस से जाता, फिर हम लोग घूमने-फिरने जाते, फिर रात में आकर बिस्तर गरम करके चोदम-चुदाई करते।
दोस्तों, अब यहां से कहानी दो तरफ मुड़ती है।
एक तो वो कहानी, जहां मैंने और दादी ने प्लान बनाया मेनका (सरपंच की शहरी बीवी) की ठुकाई करने का, जिसमें हम बाल-बाल बचे।
और एक कहानी है कि कैसे मेरे प्यारी दादी इतनी बड़ी चुदक्कड़ बनी, कैसे दादा जी से मुलाक़ात हुई और कैसे दादा जी ने दादी को अपने दोस्तों के साथ चोदा।
आप इन दोनों में से जो कहानी पहले पढ़ना पसंद करेंगे, मैं वही सबसे पहले लिखूंगा।
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