रजनी की चुदाई उसीकी की जुबानी

मैं हूँ आभा।

मैं और रजनी हमउम्र हैं – 21 की। एक ही कालेज में पढ़ती हैं और हॉस्टल के एक ही कमरे में रहती हैं।

कमरा ही नहीं और भी हम एक दूसरे का बहुत कुछ सांझा करती हैं – एक दूसरे के कपड़े, खाना, बिस्तर और राज़ भी – और कभी कभी तो एक दूसरी के बॉय फ्रेंड का लंड भी । और अगर कभी लंड की तलब आ जाये और लंड ना मिले तो एक दूसरी की चूत भी चाट लेती हैं, या फिर उंगली कर लेती हैं – “काम ही तो चलाना है”।

रजनी के 52 वर्षीय पिता रोशन लाल, रजनी के सौतेले पिता हैं। उनकी पहली पत्नी का चार साल पहले देहांत हो चुका है। उनका पहली पत्नी से 22 साल का बेटा दीपक है जो अभी तक कुंवारा है – पढ़ाई पूरी करके तीन महीने पहले ही अपने घर करनाल वापस आया है, अभी फ़िलहाल नौकरी की तलाश कर रहा है। पुश्तैनी अमीरी के कारण नौकरी की कोइ जल्दी नहीं है।

करनाल शहर के बाहरी भाग में उन लोगों का एक एकड़ में बना फार्म हाउस है। करनाल से सात किलोमीटर दूर उनके खेत हैं और एक बड़ा डेयरी फार्म है। वहां भी उनका एक बड़ा घर है।

रजनी की 41 वर्षीय तलाकशुदा मां उषा रोशन लाल की दूसरी पत्नी है – सुन्दर और स्वस्थ – उनकी शादी तीन साल पहले हुई थी। रजनी के सौतेले पिता रोशन लाल अक्सर खेतों वाले घर में ही रहते हैं, सप्ताह के अंत में ही करनाल आते हैं। रजनी ने मुझे बताया था की उसके सौतेले पिता को चूत और चुदाई में ज़्यादा दिलचस्पी नहीं है – शादी उन्होंने इस लिए की थी की घर संभालने वाली कोइ घर में आ जाएगी और उसके बेटे को मां मिल जाएगी।

करनाल वाला फार्म हाउस बहुत बड़ा है – रसोई के सामने बड़ा हाल है जो ड्राइंग रूम की तरह प्रयोग होता है। रसोई की बाईं तरफ का कमरा रजनी की माँ और उसके सौतेले पिता का है। रसोई की दाईं तरफ दो कमरे हैं – एक रजनी के सौतेले भाई दीपक का, दूसरा रजनी का। दो कमरे और हैं जो मेहमानों के लिए काम आते हैं।

हाल से ही एक गलियारा बाहर की तरफ जाता है जहां 25 वर्षीय नौकर संतोष ( जो घर का सदस्य ही है ) का कमरा है। संतोष हायर सेकंडरी पास है और बाहर के सारे काम करता है। कई बार दिन में डेरी फार्म पर भी चला जाता है। संतोष की 22 वर्षीय पत्नी है सरोज। सरोज घर के अंदर का काम संभालती है। सरोज साफ़ सुथरी सुन्दर और BA के “पहले साल” तक पढ़ी है – मतलब कालेज क्या होता है उसे मालूम है।

संतोष का एक 23 वर्षीय छोटा भाई भी है – सरोज का देवर – राकेश। करनाल में ही नौकरी करता है। अभी तक कुंवारा है। जब कभी चुदाई की तलब लगती है तो भाभी सरोज को चोदने आ जाता है – सरोज का प्यारा देवर है, मगर गांड का शौक़ीन है।

पिछले हफ्ते जब दो महीने की छुट्टियां काट कर रजनी वापस आयी तो कुछ ज़्यादा ही खुश थी। बात बात पर हंसना मेरी चूचियों पर हाथ फेरना या मेरी चूत या गांड पर हाथ लगाना – पहले वो ऐसी नहीं थी।

लड़की इतनी खुश तभी होती है जब या तो उसके मनपसंद लड़के के साथ उसकी शादी हो रही हो या फिर डाक्टरी के कोर्स के लिए मेडिकल कालेज में दाखला मिल गया को। तीसरा कारण है की लड़की की बढ़िया मस्त चुदाई हुई हो।

रजनी की ना तो सगाई हुई थी ना ही मेडिकल कालेज में दाखला ही मिला था – मतलब करनाल से मस्त चुदाई करवा कर आयी थी। सोच सोच कर मेरी तो अपनी चूत ही गीली होने लग गयी।

बस, फिर तो मैं रजनी की खुशी का राज़ जानने के लिए उसके पीछे ही पड़ गयी की। पहले तो हंस हंस कर रजनी ने टाला मगर फिर बोली “ठीक है, आज रात को तुम्हें सारा किस्सा बताऊंगी।”

मगर मैं तो सुनंने के लिए बेताब हो रही थी, “रात को क्यों, अभी क्यों नहीं “।

“अरी क्यों बेचैन हो रही है, किस्सा गरमा गरम और मस्त भी। ऐसे किस्से रात को ही सुने सुनाए जाते हैं। अगर हमारी भी गरम हो गयी तो ठंडी कैसे करेंगे” ?

अब तो मेरी जिज्ञासा और भी बढ़ गयी – मैं जानने के लिए बेचैन हो गयी की आखिर रजनी के साथ क्या और कैसे हुआ है। ये तो मैं समझ गयी की थी लड़की मस्त चुद कर आयी है – मगर किससे और कैसे। दिन भर मैं रात होने का ही इंतज़ार करती रही।

रात आयी, हम दोनों एक ही बिस्तर पर लेट गयीं। रजनी बुदबुदाई, ” क्या छुट्टियां कटीं, कभी ना भूलने वाली छुट्टियां “।

जिज्ञासा के मारे मेरी हालत खराब थी, “अब बताओ भी, रहा नहीं जा रहा”।

और फिर जो किस्सा रजनी ने सुनाया, वाकई सेक्सी, गरम करने वाला और मस्त था।

बकौल रजनी –
मैं (रजनी) जब करनाल पहुंची तो मेरी माँ बड़ी खुश हुई । सब से मेरा परिचय करवाया – दीपक, सरोज, सरोज का पति संतोष। सभी बड़े ही प्यार से मिले – मेरा तो बड़ा ही अच्छा स्वागत हुआ। दीपक को देख कर तो मेरा मन कुछ और ही सोचने लगा। सोचने लगी क्या डील डौल है – लंड भी बढ़िया होगा।

तभी ख्याल आया की वो मेरा भाई है। मगर दिल के एक कोने से आवाज़ आई भाई तो है, मगर है तो “सौतेला” ही। ख्याल आते ही फिर उसके लंड के बारे में सोचने लगी। तीन चार दिन यों ही निकल गए।

एक दिन रात को प्यास लगी तो मेरे जग में पानी नहीं था। मैं रसोई में से पानी लेने निकली। रसोई जाने के लिए दीपक का कमरा लांघना पड़ता है। जब उसके कमरे के सामने से गुज़री तो उसके कमरे का दरवाजा थोड़ा खुला हुआ था।

मैंने उत्सुकतावश अंदर झाँका तो दीपक कमरे में नहीं था – सोचा शायद टॉयलेट गया होगा। पानी ले कर जब वापस आयी, तब भी दीपक कमरे में नहीं था और दरवाजा वैसे ही खुला था। मैं बड़ी हैरान हुई की इतनी रात को दीपक कहाँ जा सकता है – घर के सारे दरवाजे तो बंद हैं।

मैं सोच ही रही थी की ऐसा लगा की मेरी माँ के कमरे से कुछ आवाजें आ रही हैं। मैं देखने के लिए गयी और थोड़ी सी खुली खिड़की में से झांका – अंदर का नज़ारा देख कर मेरे तो होश ही उड़ गए। दीपक पूरी तरह से नंगा बिस्तर पर लेता हुआ था और मेरी माँ उसके ऊपर बैठी थी – पूरी तरह नंगी। साफ़ पता लग रहा था की दीपक का लंड मेरी माँ की चूत में है और मेरी माँ दीपक का लंड चोद रही है।

मेरी माँ ऊपर नीचे हिल हिल कर झटके लगा रही थी और दीपक नीचे से झटके लगा रहा था। कुछ ही देर में माँ नीचे उतर गयी। दीपक का लंड खूटे की तरह खड़ा था। माँ बिस्तर पर लेट गयी और दीपक माँ की टांगें उठा कर ऊपर से माँ को चोदने लगा।

“अजीब नज़ारा था। मेरी सगी माँ मेरे ही सौतेले भाई से चुद रही थी और मैं देख रही थी “।

मुझ से और नहीं देखा गया और में भाग कर अपने कमरे में चली गयी। मेरी साँस फूल रही थी। दीपक का खूंटे जैसा लंड मेरी आँखों के सामने घूम रहा था। मेरी तो अपनी चूत ही गरम हो गयी। बड़ी मुश्किल से उंगली से रगड़ रगड़ कर चूत का पानी छुड़ाया, मगर आँखों के आगे वही नज़ारा था दीपक नीचे, माँ ऊपर। माँ नीचे दीपक ऊपर – और दीपक का मोटा लम्बा लंड।

अगले दिन मैंने देखा माँ और दीपक बिलकुल सामान्य हैं मगर मैं ना माँ से ना ही दीपक से नज़रें नहीं मिला पा रही थी। मुझे तो सरोज से भी शर्म आ रही थी। मैं सोच रही थी की क्या सरोज भी इस माँ बेटे की चुदाई के बारे में जानती है ? पूरा दिन ऐसे ही गुज़र गया। रात को नींद ही नहीं आ रही थी। बार बार उठ कर देखती थी की दीपक मेरी माँ को चोदने उसके कमरे में गया या नहीं – मगर उस रात वो नहीं गया। मेरी रात जागते जागते ही कट गयी।

अगले दिन मेरे चेहरे से साफ़ लग रहा था की मैं रात भर नहीं सोई। माँ ने एक दो बार पूछा भी, मगर मैंने टाल दिया। माँ ने भी सोचा होगी कोइ बात, रात ढंग की नींद नहीं आयी होगी। दीपक ने सरसरी नज़र मुझ पर डाली लेकिन बोला कुछ नहीं।

सरोज ने ज़रूर हँसते हुए कहा, ” क्या बात है जीजी रात को डरावना सपना देखा या कोइ भूत देख लिया”। मुझे उसकी ये भूत वाली बात कुछ अजीब लगी। मुझे लगा की ये दीपक और माँ के चूत चुदाई के रिश्ते के बारे में जानती है या मेरा वहम है। खैर !!

नींद मुझे अगली रात भी नहीं आयी। मैं तो जानना चाहती थी की दीपक माँ के पास जाता है की नहीं। उस रात दीपक आधी रात को माँ के कमरे में गया। मैं तो इस ताक में ही थी। फिर खिड़की की तरफ गयी। खिड़की आज भी थोड़ी सी खुली थी। खिड़की का पल्ला या तो खराब था या जान बूझ कर खुला रखा गया था।

अंदर देखा तो दीपक आज माँ को पीछे से चोद रहा था। माँ फर्श पर खड़ी थी और पलंग पर झुकी हुई थी। दीपक ने माँ की कमर पकड़ी हुई थी और दबा कर चुदाई कर रहा था।

तभी माँ ने सिर घुमा कर दीपक को कुछ कहा। दीपक ने भी हाँ में अपना सिर हिलाया और लंड चूत में से बाहर निकल लिया। मैंने सोचा की अब माँ पलंग पर लेटेगी और दीपक ऊपर से चोदेगा। मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ। माँ वैसे ही झुकी हुई खड़ी रही। दीपक आया, उसके हाथ में कुछ ट्यूब जैसा कुछ था। दीपक ने ट्यूब में से सफेद सफेद कुछ निकाल कर माँ की गांड के छेद पर लगाया।

“ओह !! तो क्या अब दीपक माँ की गांड चोदेगा ” ?

मैं समझ गयी दीपक माँ की गांड के छेद को चिकना करने के लिए जैल – क्रीम लाया था। दीपक ने क्रीम लगा कर अपने लंड का टोपा माँ की गांड के छेद पर रखा और धीरे धीरे लंड अंदर डालना शुरू किया। कुछ ही पलों में दीपक का मोटा लंड माँ की गांड के अंदर था।

मैं हैरान थी इतना मोटा लंड गांड में चला कैसे गया – लेकिन हक़ीक़त में दीपक का लंड माँ की गांड के अंदर ही था। मेरी तो अपनी गांड में खुजली होने लग गयी। चूत तो पानी छोड़ ही रही थी। माँ की गांड की चुदाई शुरू हो चुकी थी। तभी माँ ने सिर घुमा कर दीपक से कुछ कहा। दीपक ने भी सिर हिलाया और लंड पूरा बाहर निकाल कर पूरे जोर से अंदर पेला, अब गांड चुदाई फुल स्पीड पर चल रही थी।

माँ एक पक्की चुदक्क्ड़ की तरह चुदाई करवा रही थी।

मुझ से और नहीं देखा गया, मेरी हालत खराब हो रही थी। कमरे में आ कर फिर अपनी चूत को उंगली से रगड़ा – एक उंगली अपनी गांड में भी डालने की कोशिश की। रात ऐसे निकल गयी।

आगे की कहानी अगले भाग में।

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