राजू और उसके प्यारे सन्तोष मौसा-1

ये कहानी हैं राजू की और उसके मौसा की। कहानी तब शुरू हुई जब एक बार गर्मी की छुट्टीयों में राजू के मौसा ने उसके पिता जी से राजू को उनके यहां भेजने को कहा। बुलाने की वज़ह कुछ ख़ास नहीं बस इतनी सी थी, कि एक तो राजू को भी खेती किसानी का काम सिखा देंगे, और साथ में उनकी भी मदद हो जायेगी।

गांव में राजू के मौसा संतोष की बहुत जमीन थी। जबकि राजू के पिता जी सीमित जमीन में ही खेती करते, उस पर भी तीन भाईयों का सांझा काम जिससे राजू को इतना काम करना भी नहीं होता‌ था।

राजू के पिता जी ने सोचा चलो इसी बहाने साढू साहब की मदद भी हो जाएगी, और राजू को भी कुछ काम आ जायेगा। पिछले साल ही संतोष के बेटे की नौकरी लगने से खेती का सारा काम सन्तोष पर था। यहीं सोच कर राजू को मौसा के घर भेजने के लिए तैयार किया गया।

पहले तो राजू ने मना किया, क्योंकि उसका मौसेरा भाई अपनी नौकरी के सिलसिले में अब दिल्ली ही रहता था। जिस वजह से उसका अकेले वहां मन नहीं लगता था। लेकिन पिता जी ने काम सीखने के जोर डाला, जिस पर राजू मना नहीं कर पाया।

राजू के विषय में बताऊं, तो राजू की उम्र अभी 19 साल हैं। बदन हल्का ही है, रंग गेहुंआ। लेकिन मुस्कान बहुत क़ातिल। कहने को वो एक अच्छा दिखने वाला लड़का था‌। लेकिन फिर भी जब से उसने एक दफ़ा गांव में नदी पर भैसों को नहलाते हुए अपने ताऊ का लंड देखा था, तब से उसके अंदर लंड के प्रति कुछ प्यार पैदा हो गया था।

ऐसा कुछ बहुत ज्यादा लंड गांड कभी हुआ नहीं। लेकिन जब भी मौका लगता, तो वो लोगों के लंड देख ही लेता। कभी किसी ताऊ के साथ सुबह खेत करने जाने पर, तो कभी पानी के सोते के पास जब कोई बुड्ढा अपनी गांड धोने आता, तो उसके लटकते लंड को देख उसे बहुत मज़ा आता।

एक बार गर्मी की दुपहरी में जब वो बाग के रास्ते से आ रहा था। तब उसने पहली बार किसी मर्द का तना लंड देखा। बाग में एक आदमी यही कोई 50-55 साल का बुड्ढा एक पेड़ से टिका अपने लंड को हिलाने में इतना मदहोश था, कि उसे याद ही नहीं रहा कि पास के खेत में छुपा राजू उसे देख रहा था। वो अपने लंड से निकले पानी को पेड़ के पत्ते से साफ कर वही फेंक कर चला गया, जिसे पास जाकर राजू ने उठाया और उस पर लगे माल को पहले सूंघा, और फिर चाटने लगा।

उसे माल चाट कर बहुत मजा आया, और इसी तरह राजू का बुड्ढे लोगों के लंड में दिल लगने लगा। लेकिन डर और शर्म की वजह से कभी किसी के साथ राजू का कुछ हो नहीं पाया। दूसरे दिन सुबह मौसा के घर जाने के लिए राजू को बस स्टैंड पर पिता जी ख़ुद ही छोड़ने गए। बस में बैठा राजू यही सोच रहा था कि उसे वहां कैसे अच्छा लगेगा। वो वहां दिन कैसे काटेगा। और इसी उधेड़ बुन में उसे नींद आ गयी।

आंख खुली जब उसके छोटे से मोबाइल पर मौसा का फ़ोन आया। आंख खुलने पर उसने फ़ोन उठाया तो पता चला वो बस स्टैंड आ गए थे उसे लेने। बस से उतर के वो मौसा के साथ ट्रेक्टर पर बैठ गांव को जाने लगे।

सन्तोष की उम्र 56 साल थी। उनका एक लड़का था। वो भी सरकारी नौकरी में लगा हुआ था, जिस वजह से वो दिल्ली ही रहता था। मौसी को गुजरे 12 साल हो चुके थे, लड़के की पढ़ाई के सिलसिले में शहर जाने के बाद से मौसा घर में अकेले ही रहते थे। घर के सारे काम खुद ही करते थे। खेत के कामों के लिए कुछ मजदूर रखे हुए थे।

मौसा का शरीर खेत में काम करने से एक दम मस्त था। गांव के मर्द की तरह कंधे भरे हुए, छाती फूली, और जांघे भी भरी-भरी थी। गर्मी में मौसा में चेहरे से पसीना निचुड़ कर उनकी शर्ट में घुस रहा था, जिसके अंदर से छाती के बाल बाहर झांक रहे थे। उनके आस्तीन ऊपर चढ़े हाथो में भी बहुत सारे बाल थे।

मौसा ने राजू से सफर के बारे में पूंछा, जिस पर राजू ने सब सही रहा बताया। शहर से लौटते समय राजू को रास्ते में पड़ने वाले खेत दिखाए। जब घर लौटे तो शाम हो चुकी थी। गांव में सब लोग जल्दी ही लेट जाते हैं, तो सब तरफ़ सन्नाटा ही था। ट्रेक्टर खड़ा करके मौसा ने राजू को उसका कमरा दिखाया। मौसा का घर बहुत बड़ा था, और आस-पास कोई घर भी नहीं था। हर तरफ़ मौसा का खेत ही था।

कुछ देर आराम करने के बाद जब राजू बाहर आया, तब देखा मौसा केवल बनियान और लुंगी में अकेले बैठे दारु का पैक लगाने की तैयारी में थे। पर राजू को देख थोड़ा ठिठके जिस पर राजू ने खुद ही अंदर जाते हुए बोला-

राजू: मौसा जी आप कर लीजिए।

खाना मौसा ने बना दिया था, जिसे खा कर दोनों बाहर आंगन में चारपाई पर अलग-अलग लेट गए। मौसा ने अपनी बनियान और लुंगी उतार के अपने तकिये के पास ही रख ली, और पास ही लोटे में पीने का पानी रख लिया। एक क्वार्टर दारू पीने से मौसा बिस्तर पर पड़ते ही खर्राटे मारने लगे। जबकि उनके खर्राटों से राजू को नींद नहीं आई, तो वो उठ कर कमरें में सोने चला।

रात 2 के आस-पास राजू पेशाब जाने के लिए उठा और आंगन में से होते हुए पेशाब करके लौटने लगा। तब उसका ध्यान मौसा के देसी अंडरवियर में बने तम्बू पर गया। उसकी नींद उड़ गई और पैर वही रुक गए। राजू चांद की रोशनी में उस तम्बू को देख कर मौसा के बम्बू की लंबाई का अंदाजा लगाने लगा।

उसका मन हुआ कि बढ़ के उसे पकड़ कर अपने हाथों से उसकी मोटाई को महसूस करें। पर मारे डर के वो बस दूर से खड़ा उसे निहारता रहा। फिर वापस कमरे में आकर सोने की कोशिश करने लगा। सुबह 5 बजे बाहर की खटपट से उसकी नींद खुली तो रात के तम्बू को याद कर उसके मन में फिर वही ख़्याल दौड़ने लगा।

वो चुपके से उठा और बिना चप्पल के धीमे क़दमो से बाहर जाने लगा। उसके कमरे के पास ही बने बाथरूम की लाइट जल रही थी, और अंदर से कुछ खर-खर की आवाज़ रही थी। राजू ने चुपके से झांक कर अंदर देखा तो मौसा अपने अंडों पर ब्लेड से बाल साफ कर रहे थे। कोई साबुन या झाग ना होने की वजह से ब्लेड खर-खर की आवाज़ के साथ बालों को अपने साथ उतार रहा था। काले घने बालों के उतारने पर नीचे गुलाबी रंग की दो बड़े-बड़े अण्डे राजू के सामने थे।

वहीं बाई तरफ को निशाना ताने मौसा का काला 8 इंची लंड था, जिसका गुलाबी टोपा बल्ब की पीली रोशनी में चमक रहा था। मौसा के लंड और अंडों को देख कर राजू के मुंह में पानी आ गया, और वो मस्त होकर उसे देखने लगा। तभी मौसा उठने लगे और राजू खुद को संभाला, उससे पहले ही मौसा ने दरवाजा खोल दिया।

इसके आगे क्या हुआ, वो आपको कहानी के अगले भाग में पता चलेगा।

अगला भाग पढ़े:- राजू और उसके प्यारे सन्तोष मौसा-2

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