पिछला भाग पढ़े:- दो गायें और दो सांड-18
सेक्स कहानी अब आगे-
नसरीन मुझे, कानपुर की मशहूर मनोचिकित्स्क मालिनी अवस्थी को अपनी और निकहत की चूत चुसाई शुरू होने की कहानी सुना रही थी।
नसरीन बता रही थी कि निकहत की बातें सुन-सुन कर उसकी फुद्दी पूरी तरह गर्म हो चुकी थी। नसरीन निकहत के मम्मों पर हाथ फेरने लगी थी, और फिर नसरीन ने निकहत से पूछा, “निकहत बेटा क्या सच में ही आंटी ने यही बोला था कि पूरी रात अपनी है मेरी जान? अब ज़रा अपने पीछे वाले मुलायम-मुलायम चूतड़ चटवाओ, अपनी गुलाबी-गुलाबी फुद्दी का नमकीन रस पिलवाओ।”
“निकहत ने जवाब दिया, “जी अम्मी बोला तो यही था आंटी ने, मुझे ये अच्छे से याद है। क्योंकि जब आंटी ने ये बोला था तो मेरी फुद्दी एक-दम से गीली हो गयी थी।”
“मालिनी जी निकहत की बातों में मुझे ऐसा मजा आ रहा था जैसा चुदाई वाली फिल्में देखने का आता है।”
“मैंने उतावली में निकहत से पूछा, “फिर क्या हुआ निकहत बेटा?”
“निकहत बोली, “अम्मी इसके बाद आंटी ने मेरे कुछ बोलने से पहले ही मेरे चूतड़ों के नीचे दो तकिये रख कर मेरी फुद्दी ऊपर उठी दी और आंटी मेरे ऊपर उल्टा लेट गयी। आंटी का मुंह मेरी फुद्दी पर था और आंटी की फुद्दी मेरे मुंह के सामने थी।”
“आंटी ने मेरी टांगें थोड़ी सी खोली और मेरी चूत की फांकों को फैला कर अपनी जुबान मेरी फुद्दी में डाल दी। आंटी कभी मेरी फुद्दी के छेद को चूम रही थी, कभी मेरी फुद्दी का दाना मुंह में लेकर चूस रही थी। मैं और आंटी एक दूसरी की फुद्दी जोर-जोर से चूसने चाटने लगे। तभी आंटी ने मेरी टांगें थोड़ी और ऊपर कर दी। आंटी थोड़ा सा आगे को हो गयी। अब आंटी का मुंह मेरे चूतड़ों के बीच में था और आंटी मेरे चूतड़ों का छेद चाट रही थी।”
“आगे होने के कारण आंटी के चूतड़ भी आगे हो गए और मेरे मुंह के आगे आ आ गये। आंटी के चूतड़ मेरे मुंह से थोड़ा ऊपर थे। आंटी को अपने चूतड़ चाटते देख मेरा मन भी आंटी के चूतड़ चाटने का होने लगा। मैंने आंटी के चूतड़ों को थोड़ा नीचे किया – अब चूतड़ बिलकुल ठीक मेरे मुंह पर थे। मैं आंटी की चूतड़ चाटने लगी।”
“अम्मी मैं असलम की चूतड़ भी चाटती हूं मगर असलम के चूतड़ों से मुझे आंटी के चूतड़ चाटने मैं ज्यादा मजा आ रहा था। आंटी के चूतड़ बहुत नरम और मुलायम थे।”
“अम्मी हम दोनों एक-दूसरे की चूतड़ और फुद्दीयां पागलों की तरह चूस चाट रही थी। हमें जल्दी ही मजा आने वाला हो गया। हम दोनों की चूतें पानी छोड़ने को तैयार हो चुकी थी।”
“तभी आंटी ने मेरे चूतड़ कस कर पकड़ लिए और जोर से बोली, “निकहत निकल गया मेरा, मजा गया बेटा मुझे। यही हाल मेरा भी था अम्मी। मेरी चूत भी बस पानी छोड़ने ही वाली थी। मजे के मारे मैंने भी आंटी के चूतड़ पकड़ लिये और बोली, आंटी मेरी फुद्दी में भी मजा आ गया है।”
“निकहत बोली, “अम्मी मजा आने के बाद थोड़ी देर ऐसे ही एक-दूसरे की फुद्दी और चूतड़ चूसते चाटते रहे। थोड़ी देर बाद फिर आंटी मेरे ऊपर से उतर गयी और हम फिर से पास-पास ही लेट गयी। अम्मी, इस तरह चूत और चूतड़ चूसने चुसवाने के बाद मेरी शर्म अब तकरीबन खत्म ही हो गयी थी।”
“मालिनी जी जब निकहत ये सब बता रही थी तो मरी फुद्दी गरम होने लगी थी। मेरा हाथ तो निकहत में मम्मों पर ही था। मैंने निकहत से पूछा, “फिर क्या हुआ निकहत बेटा?”
“मालिनी मैं समझ गयी कि मामला अब फुद्दी चुसाई की तरफ जा रहा है। निकहत मेरी फुद्दी चूसने के लिए ही मेरे पास आयी है। मैं अब तक निकहत के मम्मे मसलने लगी थी। निकहत भी गाऊन के ऊपर से ही अपना हाथ मेरी फुद्दी के ऊपर-नीचे करने लगी थी।”
“मालिनी जी मैंने निकहत से पूछा, “तो निकहत तुमने जब मालिनी जी की फुद्दी चूसी और उन्होंने तुम्हारी चूसी तब तुम्हें ये सब चूसने और चुसवाने का मजा आया?”
“मालिनी जी निकहत बोली, “जी अम्मी, बहुत ही ज्यादा मजा आया। अम्मी आंटी की फुद्दी से अजीब सी मस्त करने वाली महक आ रही थी। आंटी की फुद्दी में से गर्म-गर्म पानी निकल रहा था जो बड़ा टेस्टी था। आंटी की फुद्दी में से पानी निकलता जा रहा था और मैं वो पानी चाटती जा रही थी। अम्मी, जैसे मैं आंटी की फुद्दी चूस चाट रही थी, ऐसे ही आंटी भी मेरी फुद्दी चूस-चाट रही थी।”
“मालिनी जी, निकहत की बातों से तो मेरी फुद्दी तो गर्म हो ही गयी थी। मन कर रहा था के निकहत मेरी फुद्दी चूसे और मुझे मजा दे, मगर मैं आगे बढ़ने से पहले निकहत की पूरी बातें सुनना चाहती थी।”
“निकहत बोली, “अम्मी मैं आंटी से बोली, आंटी मुझे तो आपकी फुद्दी चूसने का ही बड़ा मजा आया है। मैंने पहली बार कोइ फुद्दी चूसी है। ये फुद्दी चुसाई तो कमाल की चीज़ ही है। अजीब सी मस्त कर देने वाली खुशबू – हल्का नमकीन स्वाद भी आता है चूसने में। आंटी एक बार और ये करेंगे। फिर मैंने अपनी उंगली आंटी की फुद्दी में डाल दी और उंगली को ऊपर-नीचे करने लगी।”
“आंटी बोली, “आह निकहत जरा चूत के दाने को उंगली से रगड़।”
“मैंने थोड़ी सी और करवट ली और आंटी की चूत के दाने के ऊपर उंगली रगड़ने लगी। आंटी की आँखें बंद थी।
मैंने आंटी से कहा, “आंटी आपकी फुद्दी चूसने में मुझे सच में ही बड़ा मजा आया है। आगरा जा कर भी मैं आपकी फुद्दी चुसाई याद रखूंगी।”
“अम्मी, आंटी ने एक बार मेरे होंठ अपने होंठों में लिये और बोली “निकहत बेटा सच में ही अगर फुद्दी चूसने में इतना ही मजा आया है तो फिर आगरा में क्यों नहीं फुद्दी चूसती?”
“अम्मी मैं तो आंटी की ये बात सुन कर मैं बोली, “आगरा में आंटी? मगर आंटी मैं तो कहीं आती-जाती ही नहीं, मेरी तो फ्रेंड्ज़ भी ऐसी नहीं हैं जिनको मैं कह सकूं मैंने तुम्हारी फुद्दी चूसनी है। तो आंटी आगरा में फुद्दी चूसूंगी किसकी?”
“आंटी ने कहा, “निकहत एक फुद्दी तो है आगरा में – तुम्हारे घर में, तुम्हारे सामने।”
“अम्मी पहले तो मुझे कुछ समझ नहीं आया कि मेरे घर में? मेरे सामने?
“मैंने आंटी से पूछा, मेरे घर में किसकी फुद्दी आंटी? मगर अम्मी तभी मझे आंटी की बात समझ में आ गयी, और मैं एक-दम से बोली, “आंटी क्या आप मेरी अम्मी की बात कर रही हैं?”
“अम्मी आंटी बोली तो कुछ नहीं मगर मेरी तरफ देख आंटी मुस्कुराने लगी।”
“अम्मी, आंटी से मैंने कहा, मगर आंटी मैं अम्मी को फुद्दी चुसवाने के लिए कैसे बोलूंगी, वो तो मेरी अम्मी है।”
“आंटी ने वैसे ही मुस्कुराते हुए कहा, “निकहत बेटा अम्मी है तो क्या हुआ – है तो वो भी तुम्हारी मेरी तरह एक औरत ही।”
“फिर कुछ रुक कर आंटी बोली, और निकहत बेटा फिर फुद्दी तो फुद्दी ही है। मेरी फुद्दी हो या तुम्हारी हो, या तुम्हारी अम्मी की या किसी और की हो। सभी फुद्दीयां एक जैसी ही होती हैं। सभी फुद्दियों में से महक आती है, सभी फुद्दियों में से पानी भी निकलता है सभी फुद्दीयों के पानी में मस्त करने वाला स्वाद भी होता है।”
“अम्मी फिर आंटी बोली, “निकहत जरा सोचो, फिर तुम्हारी अम्मी भी तो फुद्दी चूसने चाटने का मजा लेना चाहती होगी, जैसे तुम लेना चाहती हो, जैसे मैं लेना चाहती हूं।”
“अम्मी फिर आंटी ने एक बार मेरे मम्मों को दबाया और बोली, “निकहत बेटा तुम्हें तो फुद्दी चूतड़ चुसाई का मजा असलम भी देता होगा तुम्हारी फुद्दी और चूतड़ चूस चाट कर, मगर तुम्हारी अम्मी को कौन देगा फुद्दी चूसने चाटने का मजा, चूतड़ चूसने चाटने का मजा? उनके पास भी तो कोइ नहीं उनकी फुद्दी चूसने के लिए, उनके चूतड़ चाटने के लिए। निकहत तुम अपनी अम्मी के फुद्दी चूसो और अपनी अम्मी को अपनी फुद्दी चुसवाओ, दोनों काम हो जाएंगे। तुम्हे फुद्दी चूसने का मजा आ जायेगा और तुम्हारी अम्मी को फुद्दी चुसवाने का मजा आ जाएगा। आखिर को तुम्हारी अम्मी को भी फुद्दी की महक लेने और फुद्दी का गर्म नमकीन पानी चाटने चूसने का मजा मन करता होगा।”
“अम्मी अब मैं आपको क्या बताऊं। जब आंटी मुझे ये सब बता रही थी तब तक मेरा दिमाग सुन्न हो चुका था। इसके बाद मैं चुप हो कर कुछ सोचने लगी।”
“मालिनी जी मुझे भी निकहत की बातों से कुछ परेशानी सी होने लगी थी। वैसे निकहत बात तो ठीक ही बोल रही थी – आखिर को मैं तो थी ही उसकी अम्मी। मगर फिर मैंने सोचा, अगर आपने निकहत को इतना कुछ बोला है तो कुछ सोच समझ कर ही बोला होगा, और निकहत को भी आपकी बातें ठीक लगी होंगी तभी निकहत यहां मेरे पास आयी है।”
“आखिर को मालिनी जी आप हैं तो एक मनोचिकिस्तक ही – ऐसे मामलों में हम आपके सामने क्या हैं – कुछ भी नहीं।”
“मालिनी जी पता ही नहीं चला कब मैंने निकहत के और अपने गाऊन के बटन खोल दिए थे। मैं हल्के-हल्के से निकहत की तने हुए सख्त मम्मे मसल रही थी। निकहत का हाथ मेरी फुद्दी पर था और निकहत अपना हाथ मेरी फुद्दी पर ऊपर-नीचे कर रही थी।”
“मैंने निकहत से पूछा, “फिर निकहत, फिर उसके बाद क्या हुआ?”
“निकहत बोली, “फिर अम्मी मैंने आंटी से पूछा, मगर आंटी मैं अम्मी को फुद्दी चुसवाने के लिए कैसे बोलूंगी, वो तो मेरी अम्मी है।”
“इस पर फिर आंटी ने मुझे अपनी बाहों में ले लिया और बोली, “निकहत तुम सच में ही बहुत अच्छी हो।”
“फिर आंटी ने कहा, “निकहत तुम्हारी अम्मी बता रही थी असलम को कभी-कभी करनाल जाना पड़ता है जूतों वाले लिबर्टी के शोरूम के चक्कर में या यहां भी आना पड़ता है कानपुर नई वाली दुकान का सामान लेने के लिए। अब जब भी असलम करनाल जाए या कानपुर आये तो तुम अपनी अम्मी के साथ सो जाया करना, बस उसके बाद कुछ ना कुछ अपने आप ही हो जाएगा।”
“मालिनी जी निकहत कि बातों से तो अब तो मुझे भी समझ में आ गया था कि निकहत इस तरह मेरे पास क्यों आयी है। मगर निकहत की बातें सुन कर मुझे भी निकहत से फुद्दी चूसने चुसवाने की ठरक होने लगी थी।”
“मालिनी जी अगले ही पल मैं निकहत के मम्मे अच्छे से मसल रही थी, दबा रही थी। उधर निकहत अब मेरी फुद्दी की लाइन के अंदर उंगली ऊपर-नीचे कर रही थी। मैंने अपनी टांगें चौड़ी कर दीं – जिससे अगर निकहत चूत कि अंदर उंगली करना चाहे तो उसे दिक्कत ना हो।”
“मजे मारे मालिनी जी मेरे मुंह से आवाज नहीं निकल रही थी। निकहत मेरे पास लेटी थी मगर निकहत की जुबान मुझे अपनी फुद्दी के छेद के अंदर महसूस हो रही थी। मुझे अपनी चूत का दाना निकहत के होठों में, निकहत के दांतों में दबा हुआ महसूस हो रहा था। मैंने फिर भी मैंने धीमी आवाज में निकहत से पूछा फिर क्या हुआ निकहत?”
“निकहत बोली, “फिर क्या अम्मी, अब मैं यहां हूं आपके पास।” और इसके साथ ही निकहत ने अपनी उंगली से मेरी चूत का छेद ढूंढ कर उंगली मेरी चूत में थोड़ी सी अंदर कर दी।”
“मालिनी जी बस इसके बाद तो बचा ही क्या था। अब शर्माने से कुछ होने वाला नहीं था। मेरे हाथ निकहत के मम्मों पर थे और निकहत की उंगली मेरी फुद्दी में थी।”
“मैं उठी और मैंने अपना नाईट गाऊन उतार ही दिया और साथ ही निक़हत का भी। मैं और निक़हत जैसे ही नंगी हुई मैंने निकहत को बाहों में ले लिया और निकहत के होंठ चूसने लगी। निकहत के सख्त मामी मेरे मम्मों के साथ गड्डमगड्ड हो रहे थे।”
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