शीला की जवानी-22 (अंतिम भाग)

चुदाईयों से फारिग हो कर सब हॉल में बैठे थे। अंदर संधू और ज्योति के चुदाई चल रही थी।

शीला चूत में उंगली करने लगीI नैंसी को घोड़ी की तरह चूतड़ पीछे करके खड़े देख कर मेरा लंड फुंफकारे मारने लगा। नैंसी के बड़े-बड़े चिकने चूतड़ों से मेरी नजर ही नहीं हट रही थी।

वैसे तो क्या, मेरी जगह कोई बड़ा बाल ब्रह्मचारी भी होता, तो उसका भी लंगोट ढीला हो जाता। मैं तो फिर पुराना खिलाड़ी था। चूत और चुदाई का पिस्सू। और अब तो गांड चुदाई का भी उस्ताद बन गया था।

जैल नैंसी पहली चुदाई के बाद साथ ही ले आई थी, और मेज पर ही पड़ी थी। कंडोम मैंने लंड पर चढ़ाया और नैंसी कि पीछे जा कर ‘थोड़ी सी’ जैल लगाई। इस बार लंड रगड़ा लगा कर गांड में डालने का मन हो रहा था। नैंसी ने भी तो यही कहा था “आजा जीत, फाड़ मेरी गांड।”

मैंने एक झटके के साथ लंड गांड के अंदर डाल दिया। नैंसी ने एक ऊंची सिसकारी ली, “आअह जीते, ये क्या कर रहा है।”

मैंने लंड को नैंसी की गांड में ठीक से बिठाया, और नैंसी की कमर पकड़ी और चुदाई शुरू कर दी।

इस बार नैंसी की गांड चुदाई दस मिनट भी नहीं झेल पायी, और अपनी चूत में उंगली करते करते एक ऊंची आवाज “आह… जीत निकल गया मेरा”, के साथ झड़ कर ढीली हो गयी।

अंदर से संधू और ज्योति की ऊंची-ऊंची सिसकारियों की आवाजें लगातार आ रही थी। नैंसी की चूत पानी छोड़ चुकी थी। मैंने खड़ा लंड नैंसी की गांड में से निकाला, और हसरत भरी नजरों से मेरे खड़े लंड को देखती हुई शीला को नैंसी की भाषा में ही कहा, “शीला आजा अब तू भी फड़वा ले, तू ही क्यों पीछे रहे। सब की सब तो चुदवा रही है।”

ये सुनते ही नैंसी हट गयी, और सोफे पर बैठ गयी और शीला को बोली, “आजा शीला, तू भी गांड चुदवा ले। नैंसी की जगह शीला खड़ी हो गयी। मैंने शीला की गांड के बाहर और अंदर जैल लगाई, थोड़ी जैल कंडोम चढ़े लंड पर भी लगाई और धीरे-धीरे बिना रुके लंड शीला की गांड में डाल दिया।

जब पूरा लंड शीला की गांड में बैठा, तो शीला थोड़ा चिहुंकी, आह-आह की सिसकारी ली, मगर मुझे रुकने के लिए नहीं बोली।

शीला की टाइट गांड के छेद ने मेरा लंड जकड़ा हुआ था। मैंने शीला को कमर से पकड़ा, और चुदाई शुरू कर दी। सही में गांड चुदाई का मजा शीला की गांड चोदने में ही आता था।

अंदर कमरे से अभी भी आवाजें आ रही थीं “आअह… संधू साहब निकलने वाला है मेरा आअह… उन्ह उन्ह… ज्योति मजा आ गया आज तेरी चुदाई का… उन्ह उन्ह… आअह गयी-गयी मैं… लगाओ संधू साहब होने वाला है मेरा आआआह… आआआह… संधू साहब आह।”

फिर आवाजें आनी बंद हो गयीं। लगता था संधू और ज्योति दोनों का काम हो गया था। झड़ गए थे संधू और ज्योति दोनों। इधर शीला जोर-जोर से अपनी चूत में उंगली कर रही थी, और साथ ही चूतड़ भी आगे-पीछे कर रही थी। मैंने शीला से पूछा, “शीला चूत में डालूं?”

शीला वैसे ही चूत में उंगली करती मस्ती में बोली, “मुझे नहीं पता जीत भैया, जो मर्जी करो जहां मर्जी डालो, मगर रुको मत अबI” मैंने शीला की गांड ही चोदने का फैसला किया, और जोरदार धक्के लगाने लगा। नैंसी गांड चुदवा कर बिना सलवार के ही सोफे पर बैठे थी।

संधू ज्योति की चुदाई कर के कुर्ता पायजामा हाथ में पकड़े अंडरवियर में ही बाहर आ गया। आते ही नैंसी बिना सलवार के सोफे पर बैठे देख कर बोला, “ये क्या हुआ नैंसी, एक चुदाई और हो गयी क्या? फिर हंसते हुए संधू बोला, “तुम तो कह रही थी तुम्हारी आख़री चुदाई थी?”

नैंसी बोली, “तो और क्या होना था? तुम्हारी और ज्योति की चुदाई की आवाजें बाहर तक आ रही थी।”

फिर उनकी नक़ल करते बोली, “आह ज्योति आह… ले गया पूरा लौड़ा तेरी फुद्दी में… मैं तेरा ही इंतजार कर रहा था आह… ज्योति मेरी जान… आह मेरी जान ज्योति, ये ले लौड़ा मेरी जान, जरा उछाल चूतड़, ले ले पूरा अंदर हां ऐसे ही।

आह मजा आ गया, क्या चुदाई करवाती है तू, आह आह संधू साहब मजा आ गया आज तो… चोदो दबा कर, हां और जोर से आअह नहीं रहा गया मुझसे बिना लंड के… शीला की चूत… नैंसी की गांड… आआआआह और मेरी चूत खाली… अअअअअह… हां संधू साहब ऐसे ही दबा कर… आआह… और पूरा निकाल कर लगाओ एक रगड़ा… चोदो दबा कर… और जोर से अअअअअह…।”

नैंसी की नक़ल वाली बोली सुन के संधू हंसने लगा और बोला, “मैं भी क्या करता नैंसी, ज्योति तो आज इतने प्यासी हुई पड़ी थी लंड की, कि अंदर जाते ही कपड़े उतारे और ना लंड चूसा, चूत भी चूसने नहीं दी गांड भी चाटने नहीं दी। बस बोली, डालो लंड अंदर और चोदो फटा फट।

मेरा तो पहले ही इस शीला की चुदाई से बैंड बजा पड़ा था। फिर भी उसने दो बार चुदाई करवाई। मेरा तो लंड दर्द कर रहा है।”

फिर मेरी और शीला की तरफ देख कर बोला, “अब ये जीत क्या शीला की गांड चोद रहा है?”

नैंसी ने फिर कहा, “तुम लोगों की चुदाई की आवाजों ने सारे गरम कर दिए थे। ये शीला अपनी चूत में उंगली कर रही थी, मेरी गांड में भी झनझनाहट मची हुए थी और इस जीत का लंड खूंटे की तरह खड़ा था।” फिर नैंसी हंसते हुए बोली, “अब बोलो तुम, फिर क्या करे ये जीत, क्या करूं मैं और क्या करे शीला?”

उधर नैंसी और संधू बातें कर रहे थे, इधर मैं शीला की गांड चोद रहा था। मेरा मजा निकलने वाला ही था। मैंने लंड बाहर निकाला और जल्दी से कंडोम उतार कर लंड फिर वापस शीला की गांड में डाल दिया, और धक्के लगाने लगा।

शीला की सिसकारियां शुरू हो चुकी थी। शीला जोर-जोर से चूतड़ हिला रही थी। तभी शीला ने जोर से चूतड़ हिलाये और एक जोर की सिसकारी ली “आआआह जीत भैया निकला मेरा।” उसकी सिसकारी के साथ ही मेरा भी झड़ गया, सारा पानी शीला की गांड में था।

हमारी चुदाई देख नैंसी फिर से अपनी चूत पर हाथ फेर रही थी। जैसे ही मेरा लंड ढीला हुआ, मैंने लंड शीला की गांड में से निकाल लिया। शीला वैसे ही चूतड़ पीछे किये खड़ी थी, शायद उसे अभी भी मजा आ रहा था।

नैंसी उठ कर शीला के पीछे आ कर खड़ी हो गयी और उसके मुलायम चूतड़ों पर हाथ फेरने लगी। मेरा सफ़ेद वीर्य शीला की गांड से बाहर निकल कर नीचे चूत की तरफ जाने लगा।

नैंसी घुटनों के बल बैठ गयी, और शीला की गांड से निकलता हुआ सफ़ेद लेसदार पानी चाटने लगी। मैं बाथरूम जाते-जाते रुक कर ये नजारा देखने लगा I

मैं सोच रहा था ये नैंसी भरजाई तो कमाल है किसी भी चीज़ से परहेज नहीं इस नैंसी भरजाई को। और तो और संधू भी बड़े मजे से नैंसी को शीला की गांड से निकलता पानी चाटते देख रहा था, और अपना लंड मसल रहा था।

मेरे मन में ख्याल आया कि जिस तरह ये सब कुछ, नैंसी संधू कि सामने ये सब कर रही है, और संधू खुश हो रहा है, जरूर इनके ग्रुप में भी ये सब होता होगा।

तभी अंदर से ज्योति भी कपड़े पहन कर आ गयी। नैंसी ने शीला के चूतड़ चाटते हुए एक बार मेरी तरफ देखा, और एक बार मेरे गीले मगर ढीले हो चुके लंड की तरफ देखा और वो भी नीचे बैठ कर मेरा लंड चूसने लगी।

संधू खड़ा-खड़ा सब कुछ देख रहा था। अपना खाली गिलास फिर से भर कर बोला, “जीत, सुन ले मेरी बात। आज रात को तेरे लंड का भी अपने फ़िल्मी हीरो तरमिंदर के लंड कि तरह बैंड बजेगा।”

फिर सब के तरफ नजर घुमाता हुआ संधू बोला, “तरमिंदर तो पता है ना तुम लोगों को? अरे वही, अपने फन्नी देओल और हॉबी देओल का पापा। हमारी फ़िल्मी लाइन का पहला मर्द हीरो।” और फिर थोड़ा रुक कर बोला, “और शायद आख़री भी।

अब तो साले सारे के सारे चॉकलेटी हीरो हैं। हीरो कम चिकने लौंडे ज्यादा लगते है। सच पूछो तो यार मेरा तो कभी-कभी इनकी गांड मारने का ही मन होने लगता है।” और हो हो करके संधू हंसने लगा।

सब संधू कि तरफ देखने लगे, समझ गए कि एक और जोक आने वाला था। मैंने हंसते हुए कहा, “तरमिंदर के लंड की तरह बैंड बजेगा? क्या हुआ था संधू साहब तरमिंदर के लंड को?”

संधू बोला, “एक बार क्या हुआ? अपना मर्द हीरो तरमिंदर, अपने फैमिली डाक्टर के पास गया और बोला डाक्टर साहब मेरे लंड को चेक करो, कभी कभी इसमें बड़ी जोर का दर्द होता है।”

डाक्टर बोला, “तरमिंदर जी आपको तो कभी छींक भी नहीं आती, ये लंड में दर्द कैसे होने लग गया? फिर भी चलो निकालो लंड, एक बार चेक कर लेते हैं।”

तरमिंदर भी ने अपना नौ इंची हथियार निकाला और डाक्टर के सामने लहराने लगा। डाक्टर ने तरमिंदर के लंड को पकड़ कर इधर किया उधर किया, उलटा-पलटा, आगे किया, पीछे किया, दबाया और तरमिंदर को बोला, “तरमिंदर जी मुझे तो इसमें कुछ खराबी नहीं दिखाई दे रही, ये तो आपकी ही तरह एक दम तंदरुस्त दिखाई दे रहा है।” आप अपनी दिन भर की रूटीन (दिनचर्या) बताईये, उससे शायद मुझे कुछ समझ आ जाए।”

तरमिंदर बोला, “भई ऐसा है जी डॉक्टर साहब-सुबह उठ कर शूटिंग पर जाने से पहले मैं अपनी दूसरी बीवी की चुदाई करता हूं, या ये कह लो करनी पड़ती है। फिर स्टूडियो जाते हुए मेरी सेक्रेटरी मेरे साथ होती हैI सारे रास्ते वो मेरा लंड चूसती जाती है।”

“फिल्म की शूटिंग के दौरान हीरोइन या साइड हीरोइन या कई बार मेरी मेकअप करने वालियों का मन मचल जाता है और वो भी मुझसे चुदाई करवा लेती हैं।

वापसी में मेरे साथ मेरी वही सेक्रेटरी साथ होती है, वो फिर मेरा लंड मुंह में ले कर चूसती रहती है,  जब एक उसका घर नहीं आ जाता।

रात को मुझे चार पेग लगाने की आदत है। फिर ये भी मेरी पुरानी आदत है कि दारू पी कर मैं चुदाई करे बिना नहीं रह सकता। इसलिए खाना खाने से पहले फिर अपनी खूबसूरत जवान बीवी की दुबारा चुदाई करता हूं।” इतना बोल कर तरमिंदर चुप हो गया।

डाक्टर हैरानी से बोला, “कमाल है तरमिंदर जी सारा दिन तो आप अपने लंड से कसरत करवाते हो, अब आप मुझे ये बताओ कि लंड में दर्द कब होता है।”

तरमिंदर बोला, “रात को सोने से पहले जब मैं मुट्ठ मरता हूं तब।”

सारे खुल कर हंसे, संधू समेत। ज्योति अभी भी लंड चूस रही थी। मगर मेरा लंड बस आधा ही खड़ा था। इतनी चुदाईयों के बाद लंड की हिम्मत भी जवाब दे गयी लग रही थी। मुझे तो रात की ज्योति की चुदाई भी मुश्किल ही लग रही थी। कुछ देर चूसने के बाद ज्योति ने लंड मुंह से निकाल लिया और मेरे पास ही सोफे पर आ कर बैठ गयी।

मैं बाथरूम चला गया। वापस आया तो नैंसी और शीला भी बाथरूम जा चुकी थी। संधू ने भी अपना मुक्तसरी कुर्ता पायजामा पहन लिया था।

मैंने ज्योति से पूछा, “भरजाई क्या हुआ था? चूत ज्यादा गरम हो गयी थी क्या? आपका तो आने का कोइ प्रोग्राम नहीं था?”

ज्योति बोली, “बहुत ज्यादा गरम हो गयी थी जीते। मेरी आंखों के सामने से नैंसी और शीला की चुदाई हट ही नहीं रही थी। मुझ से तो रात को तेरे साथ होने वाली चुदाई का भी इंतजार नहीं हो पा रहा था।”

“फिर मैंने सोचा रात कि रात को देखेंगे, किसी तरह अभी तो चूत की आग ठंडी की जाए। उधर मेरी चूत में लगी आग लगी हुई थी। हालत ये थी कि उंगली भी चूत को ठंडा नहीं कर पा रही थी। ऐसी आग लगी थी चूत में जिसको बुझाने के लिए फायर ब्रिगेड की जरूरत थी, चुल्लू भर पानी से कुछ नहीं होना था। चूत को लंड ही चाहिए था, किसी का भी लंड।”

“और बस मैंने कार उठाई और आ गयी चुदाई करवाने। मेरे मन में संधू साहब से चुदाई करवाने का तो ख्याल ही नहीं था, तू सामने आता तो मैंने तेरे से ही चुदाई करवा लेनी थी।”

शाम के पांच बजने को थे। लंड बैठ चुके थे और चूतें ठंडी हो चुकी थीं। सब का काम हो चुका था। अब सब आराम के मूड में थे। हम- मैं ज्योति और शीला उठे और चलने लगे।

नैंसी बोली, “जीत वो कंडोम का पैकेट भिजवा देना ज्योति के हाथ। और अगर वो केमिस्ट कुलभूषण ये कंडोम मंगवा देता है तो फिर हमें भी बता देना।”

मैंने कहा, “ठीक है भरजाई।”और हम बाहर निकल गए। सब ने एक दूसरे को बाए कहा। मैं अपनी कार में था और शीला ज्योति की कार में थी। मेरे घर पहुंचने की पांच मिनट के बाद ही ज्योति और शीला भी आ गयी।

मैं ताला खोलने ही वाला था कि ज्योति बोली, “जीते ऊपर ही आजा, चाय पी के फिर नीचे आ जाना।”

फिर शीला को बोली, “तू भी आजा शीला चाय पी के चली जाना।” फिर अचानक से ज्योति शीला से ही बोली, “शीला आज रात रुकेगी यहां?”

शीला बोली, “भाभी रुक तो जाऊंगी, मगर चुदाई नहीं करवाऊंगी। आज और हिम्मत नहीं है। मेरी गांड जीत भैया से चुदाई करवाने के बाद अभी भी थोड़ी-थोड़ी दुःख रही है।”

ज्योति बोली, “अरे तो मैं ही कहां चुदाई कि लिए बोल रही हूं। ये जीत भी तो इतनी चुदाई कि बाद थक गया होगा। संधू साहब का तो मुझे चोदने से पहले ही बैंड बजा हुआ था। दो बार मेरी चुदाई के बाद तो बोलने लगे लंड दुखने लगा है। अब अगर संधू साहब का लंड दुखने लगा है तो फिर जीत का लंड भी तो दुःख रहा होगा।”

फिर ज्योति शीला के चूचियों को दबा कर बोली, “आज मैं और तू खाली बाते करेंगी और एक दूसरी की चूत और गांड की मालिश करेंगी I अपनी चुदाई कि कहानी नहीं बताएगी क्या?”

शीला भी बोली, ” ठीक है भाभी, मैं घर फोन कर देती हूं।” उस रात तो कुछ नहीं हुआ। किसी की गांड दुःख रही थी तो किसी की चूत, और किसी का लंड दुःख रहा था। शीला ज्योति के यहां ही रुक गयी

आने वाले दिनों में, जब तक अमित नहीं आया लगातार चुदाई चली। शीला की चुदाई का और चम्पा की चुदाई का तो अमित से कुछ लेना देना नहीं था, ज्योति जरूर अमित के होते हुए मेरे से चुदाई नहीं करवाती थी। वैसे अमित के टूर तो लगते ही रहते थे। जब भी अमित जाता, बाहर आ जाती थी। ज्योति, शीला, चम्पा के साथ साथ नैंसी। और उधर गांड चाटने और चोदने का शौक़ीन संधू।

हरामी गांडू संधू ने तो ज्योति और शीला को भी गांड चुदवाने की आदत डाल दी थी, और साथ ही मुझे भी गांड चोदने की।

अब इसमें तो किसी को कोई शक नहीं होना चाहिए कि गांड चुदाई में रगड़ा-पच्ची ज्यादा होती है और गांड का छेद लंड को ऐसे जकड़ता है जैसे सील बंद लड़की की चूत जकड़ती है।

केमिस्ट कुलभूषण ने कंडोम मंगवा लिए थे। संधू और संधू का पूरा ग्रुप इस कंडोम कि साथ चुदाई कि मजे लेते थे।

ज्योति ने भी अमित को इस बारे में बता दिया था, मगर बहाना ये बनाया था कि ऑफिस की उसकी एक सहेली ने उसे इसके बारे में बताया था। अमित को तो इससे कोई फरक शायद ना पड़ा हो, ज्योति की चूत कि बढ़िया रगड़ाई होती थी।

बस अब मेरी यही इच्छा थी, कि जब भी मेरा तबादला कहीं दूसरी जगह हो तो ज्योति, शीला चंपा और नैंसी जैसे चूतें भी वहां हों।

वैसे अभी तक तो मैं, अजीत सिंह गिल उर्फ़ जीत, जीता, जीते इस मामले में बड़ा ही खुशकिस्मत रहा हूं। उम्मीद है मैं आगे भी खुशकिस्मत रहूंगा। जहां-जहां भी तबादला होगा, चूतों की कमी नहीं रहेगी।

समाप्त।

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