कंडोम की खासियतें देख कर ज्योति चुदाई के लिए बेचैन थी।
मैंने लंड ज्योति को चूत के छेद पर रखा, और फचाक के अंदर डाल दिया। लंड पर चढ़े कंडोम ने अपना जलवा दिखाया, और ज्योति के मुंह से एक मस्ती भरी सिसकारी निकली “आह जीते, क्या लंड है तेरा।”
मैंने ज्योति को पीछे से बाहें डाल कर अपने सीने के साथ चिपका लिया, और चुदाई चालू कर दी।
पंद्रह मिनट की चुदाई हुई होगी, कि ज्योति मेरे कान में फुसफुसाई ,”जीते कंडोम निकाल ले, मेरी चूत तो जाने वाली है।”
मैंने लंड बाहर निकाला, और कंडोम लपेट कर निकाल लिया।
फिर लंड दुबारा चूत में डाल दिया, और चुदाई चालू कर दी। जल्दी ही ज्योति ने “आआह आआह आअह जीते” करना चालू कर दिया।
मैंने भी सोच लिया कि अब भरजाई की चूत भर ही देनी चाहिए। मैंने धक्कों की रफ़्तार बढ़ा दी, और ज्योति को अपने से चिपका लिय।
ज्योति के कान में मैंने ऐसी ऐसी बातें बोली, जो शरीफों की भाषा नहीं कही जा सकती।
मैंने कहा “भरजाई, भरने वाला हूं तेरी फुद्दी, मजा आ गया भरजाई तेरी चुदाई का आह। भरजाई तेरी गांड में भी लंड डालूंगा, और फाड़ दूंगा तेरी गांड। पड़खच्चे उड़ा दूंगा तेरी गांड के। दिन रात चुदाई करूंगा भरजाई। अभी तो तेरे मुंह में अपना गरम पानी छोड़ना है। तेरी चूचियां चोदनी हैं। ले भरजाई, ले निकला मेरा आह आह भरजाई, भर दी तेरी फुद्दी।”
और फर्र से मेरा ढेर सारा पानी ज्योति की चूत में चला गया।
ज्योति भी कौन सी कम थी। वो भी बोल रही थी,”आह आह जीते, मेरे राजा क्या चोदता है तू। चोद-चोद, और रगड़, भोंसड़ा बना दे अपनी भरजाई की चूत का, फाड़ दे मेरी चूत, रगड़ दे मेरी गांड आह।”
दो-तीन मिनट के इस वक़्त की हमारी बकवास अगर कोइ रेकॉर्ड करके हमें ही सुनाए, तो लगे हम शर्म के मारे चार दिन तो घर से बाहर ही ना निकल सकें, इतनी गंदी भाषा?
मगर ये हम ही नहीं सभी चोदने और चुदने वाले ऐसी ही भाषा बोलते है। यही तो वो भाषा है जो चुदाई का मजा दुगना कर देती है। ये भी एक कारण हैं, कि चुदाई हमेशा बंद कमरे में की जाती है।
इतनी ताबड़-तोड़ चुदाईयों का बाद मैं और भरजाई पस्त थे। हममे हिलने-डुलने की भी हिम्मत नहीं बची थी।
फिर ज्योति ने कहा,”कहां जाएगा जीते, यहीं सोजा। सुबह उठ कर चले जाना। नीरज तो श्रेया को आठ बजे छोड़ने आएगा।” मुझे क्या एतराज होना था नंगी मस्त औरत के साथ सोने में।
मैंने भी कहा “ठीक है” और हम दोनों एक दूसरे की बांहों में बाहें डाल कर सो गए। रात के सोये, सुबह साढ़े पांच बजे अलार्म की आवाज़ से उठे।
ज्योति ने घड़ी में अलार्म लगा दिया था। उठ कर मैं बाथरूम गया, और फ्रेश होकर बाहर आकर कपड़े पहने। ज्योति तो पहले ही उठ चुकी थी। हम दोनों ने डाइनिंग टेबल साफ़ की।
फिर मैंने कहा,”भरजाई चलता हूं।”
मैंने ज्योति का एक चुम्मा लिया, चूचियों और चूत पर हाथ फेरा और नीचे आ गया।
आ कर नहा कर तैयार होकर दरवाजा खोला, और अखबार ला कर पढ़ने बैठ गया। ज्योति चाय ले आयी। अभी तक तैयार नहीं हुई थी। मैंने पूछा,”क्या बात है भरजाई, आज ऑफिस नहीं जाना? ज्योति बोली, जीते तूने ऐसी चुदाई की रात को, कि अभी तक चूत झनझना रही है। आज घर पर आराम करूंगी।”
इधर मेरा तो आराम ही आराम होता है। बिजली बोर्ड के एसडीओ का तो अपना कोइ दफ्तर होता ही नहीं। कहीं से भी फोन आ जाता है, और फिर वहीं जाना पड़ता है। मैं तो सुबह घर से निकलता ही तब हूं जब कोई फोन आता है। अगर बारह बजे तक कोइ फोन ना आये, तभी ऑफिस जाता हूं। बिजली बोर्ड का ऑफिस मॉडल टाउन से ज्यादा दूर नहीं है।
उस दिन भी मैं तैयार हो कर बैठ गया। तभी चमेली के तेल की खुशबू आयी। चम्पा आ गयी लगती थी। दस मिनट बाद ही धड़-धड़ करती शीला भी आ गयी, तूफ़ान की तरह। आते ही मेरे दरवाजे के अंदर झांका, और बोली, “नमस्ते जीत भैया, कैसी रही कल की रात?”
मैंने भी सोचा कमाल है, ये लड़की जरा भी नहीं झिझकती।
फिर मैंने भी कह दिया,”ठीक रही, पर तू कैसे आ गयी आज? आज तो इतवार नहीं है।”
शीला वैसे ही हंसते हुए बोली, “अरे जीत भैया, वो तो मैंने भाभी की कार बाहर खड़ी देख ली, तो मैंने सोचा चलो पूछ लूं भाभी आज ऑफिस क्यों नहीं गयी।” फिर वो थोड़ी चुप्पी के बाद धीरे से हंसते हुए बोली, “अजीत भैया, वैसे तो मुझे मालूम ही है क्यों नहीं गयी भाभी।”
फिस्स-फिस्स करके हंसती हुई शीला सीढ़ियां चढ़ गयी।
कुछ देर बाद मुझे फोन आ गया, और मैं भी कार उठा कर निकल गया। शाम को छः बजे मैं वापस आया। आते ही ज्योति का फोन आ गया। ज्योति बोली,”जीते याद है ना आज का? तीन दिन रह गए हैं अमित को आने में।”
मैंने भी कह दिया,”ठीक है भरजाई समझ गया।”
उधर से ज्योति बोली,”मेरी मिस कॉल का इंतज़ार करना।”
उस रात और अगली दो रातों को वही खेल हुआ, खूब चुदाई हुई। नौं-साढ़े नौं के बीच ज्योति का फोन आ जाता और मैं चुदाई करने ऊपर पहुंच जाता। रोज कंडोम चढ़ा कर चुदाई हुई। तीन-तीन चार-चार बार भरजाई का पानी छूटा।
तीसरी रात तो पता नहीं ज्योति के मन में क्या आया, कि उसने मुझे नीचे सीधा लिटा लिया, और मेरे लंड की सवारी इतनी जोरदार तरीके से की, कि मैं हैरान हो गया। भरजाई की चूत का पानी तीन बार छूटा, और तीनों बार ज्योति ऊपर थी, और मेरा लंड ज्योति की चूत में था।
तीन बार पानी छोड़ने के बाद ज्योति बोली, “चल जीते अब कंडोम उतार ले और आजा। रगड़ मेरी चूत और डाल दे गर्मा-गर्म पानी चूत में।”
फिर ज्योति नीचे लेट गयी, और तकिया चूतड़ों की नीचे रख कर चूत उठा दी और बोली, “आजा जीते आजा”।
मैं ज्योति की इस तीसरी रात की चुदाई से यही सोच रहा था, कि अगले दिन अमित ने आना था, और मेरे साथ चुदाई होनी नहीं थी। क्या इसलिए ज्योति इतनी जोरदार चुदाई करवा रही थी? क्या अमित ज्योति की चुदाई ढंग से नहीं कर पाता था?
फिर मैंने सोचा, कि अमित कितने दिन रहेगा। उसका तो एक हफ्ता बठिंडे में कटता है, और दो हफ्ते टूर पर रहता है। ये भी कारण हो सकता है, कि ज्योति की चुदाई उतनी नहीं होती जितनी ज्योति चाहती है। सोचा इस बार अमित टूर पर जाएगा तो ज्योति से पूछूंगा।
फिर एक ख्याल और दिमाग में आया, अमित तो जब जायेगा तब जाएगा। तब तक मेरे लंड का क्या होगा जिसको शीला और ज्योति की चूत का चस्का लग चुका था।
इतनी धुआंधार चुदाईयों की बाद बिना चुदाई की रहना मुश्किल था, और मुठ मार कर लंड का पानी निकालने वालों में से मैं नहीं था।
ऐसा लग रहा था, कि जल्दी ही शीला को होटल लेके जाना पड़ेगा।
अमित टूर से वापस आ चुका था। ज्योति की दिन रात की इतनी धुआंधार चुदाईयां करने के बाद मेरी हालत ये हो चुकी थी, कि ज्योति या शीला का ख्याल भर आने से लंड खड़ा होना शुरू हो जाता था। रात को सपने भी ज्योति और शीला की चूत और चुदाईयों के ही आते थे।
शुक्र था अभी चम्पा की चुदाई नहीं हुई थी, वरना वो भी सपनों में आने लग जाती।
एक दिन मैं शाम को जल्दी घर आ गया। ज्योती अभी नहीं आयी थी।
मैं कपड़े बदल कर बैठा ही था, कि ज्योति आ गयी। दरवाजा खुला देख कर अंदर ही आ गयी, और हंसती हुई बोली,”क्या हाल है जीते, आज जल्दी आ गया?”
मैंने कहा,”हाल क्या होना है भरजाई”, फिर अपने लंड की तरफ इशारा कर के कहा,”खड़े-खड़े थक गया है ये। करो कुछ इसका।”
ज्योति हंसी और बोली,”अरे इतनी जल्दी? अभी तो चार दिन भी पूरे नहीं हुए ये हनीमून मना कर हटा है दो-दो चूतों के साथ। समझा इसको, थोड़ा सबर कर ले।”
मैंने ज्योति से पूछा,”भरजाई अगर अमित ने अभी टूर पर नहीं जाना, तो मैं शीला को होटल ले जाऊं चोदने के लिए?”
ज्योति हंसी,”क्यों जीते, शीला को ही क्यों मुझे क्यों नहीं ले जायेगा होटल में? क्या शीला ही बढ़िया चुदाई करवाती है, मैं नहीं?”
मैं कुछ बोले वाला ही था, कि ज्योति बोल पड़ी,”मैं मजाक कर रही हूं जीते।” फिर वो बोली,”एक दो दिन और इंतजार कर ले, अमित के टूर तो लगते रहते हैं। अगर कुछ दिन तक उसका टूर नहीं लगता, तो ले जाना शीला को होटल।”
फिर वो कुछ रुक कर बोली,”एक बात बता जीते, तू चम्पा को क्यों नहीं चोद लेता। ठीक ठाक तो है वो भी I मैंने पहले भी कहा था तेरे से।”
मैंने इस बार भी ज्योति की इस बात का कोइ जवाब नहीं दिया। लेकिन मेरी आंखों के आगे चम्पा के मोटे चूतड़ और भारी चूचियां घूम गयीं। लंड में भी हरकत होने लगी।
मुझे कुछ ना बोलते देख ज्योति ने ही पूछा,”बता जीते, बोलूं शीला को बात करे चम्पा से? वो वाला कंडोम चढ़ा कर चोदेगा, तो वो भी तेरा पीछा नहीं छोड़ेगी?”
मैंने ज्योति की इस बात का तो जवाब नहीं दिया, मगर मेरे मन में एक दूसरा ख्याल भी तो था, जो कई दिनों से दिमाग में घूम रहा था। आखिर अमित के होते ज्योति मुझसे चुदाई कयों करवा रही थी? मैंने पूछा,”भरजाई एक बात पूछूं, आप बुरा तो नहीं मानेंगी?”
समझदार ज्योति एक मिनट में समझ गयी, कि मैं ऐसा क्या पूछना चाहता था, जो उसे बुरा लग सकता था। ज्योति बोली,”जीते यही पूछना चाहता है ना कि अमित के होते मैं तुझसे क्यों चुदवाती हूं?”
मैं चुप रहा, पूछना तो मैं यही चाहता था।
ज्योति ही बोली,”जीते वो कहावत सुनी है, घर की मुर्गी दाल बराबर? मैं और अमित दोनों ही एक दुसरे के लिए घर की मुर्गी हैं, जो दाल की तरह होती है। रोज वही चूत, वही लंड, वही रस्मी चुदाई।”
“लंड अंदर डाला, धक्के लगाए, और लंड का पानी मेरी चूत में छोड़ दिया। मैं भी चुदाई का मजा आते वक़्त थोड़े चूतड़ घुमा लेती हूं।”
“अमित का लंड वैसे ठीक है, मगर घर की बीवी को देख कर मर्द के लंड में वैसी सख्ती कहां आती है, जैसी पराई औरत को देख कर आती है। तेरी और अमित की चुदाई में यही फरक है। चुदाई के वक़्त तेरा लंड एक दम सख्त हो जाता है लकड़ी के खूंटे की तरह। अमित का वैसा सख्त नहीं होता। रगड़ाई भी वैसी नहीं होती, जैसी तेरे साथ चुदाई में होती है। तभी तो मैं कह रही थी अमित को भी बोलती हूं वो वाला कंडोम चढ़ा कर चुदाई किया करे।”
फिर भरजाई बोली,”जीते, शादी के बाद अमित को छोड़ कर तू पहला ऐसा मर्द है जिससे मैंने चुदाई करवाई है। पता नहीं क्या है तुझमें।”
मैं बात समझ गया, मगर बोला कुछ नहीं। ज्योति भी मेरी तरफ देखने लगी कि मैं कुछ और पूछना चाहूं तो पूछ लूं।
मैं क्या पूछता, ज्योति ने सब तो साफ़-साफ़ बता दिया था। जब मैं कुछ नहीं बोला तो ज्योति ने ही फिर पूछा,”जीते तूने चम्पा का बताया नहीं?”
मैंने बोल ही दिया,”ठीक है भरजाई देख लो, पर मेरा असली मन तो आपकी चुदाई का ही है, आपकी और शीला की। मस्त चुदवाती है शीला भी।”
ज्योति ने फिर कहा,”तूने चम्पा की चुदाई देखी कहां है। एक बार उसे चोद के तो देख, क्या पता वो चुदाई करवाने में हमारे से भी दो कदम आगे ही हो।” फिर बिना मेरे जवाब का इंतज़ार किये भरजाई हंसते हुए सीढ़ियां चढ़ गयी।
ऐसे ही दिन निकल रहे थे। शीला भी नीचे मेरे वाले पोर्शन में एक-दो बार आ चुकी थी।
जब भी आती, मस्त हंसती हुई बोलती,”नमस्ते जीत भैया, कैसे हो।” फिर मेरे लंड की तरफ इशारा करके पूछती,”पप्पू कैसा है?” मेरे जवाब का इंतज़ार किये बिना सीढ़ियां चढ़ जाती। मगर ये सब पूछते वक़्त अपनी चूत खुजलाना नहीं भूलती थी।
ऐसी है खुश मिजाज और सेक्सी शीला।
शीला तो “पप्पू” का हाल पूछ कर सीढ़ियां चढ़ जाती थी, लेकिन पप्पू को खड़ा कर जाती थी।
ये मैं बता ही चुका हूं कि चम्पा से मेरा आमना-सामना कम ही होता था। जब मैं घर पर नहीं होता था, तो आरती पीछे की सीढ़ियों से आ कर थोड़े बहुत जो बर्तन कपड़े होते वो और सफाई करके चली जाती थी। कपड़े और सफाई तो कभी-कभी एक दिन या दो दिन छोड़ कर करती थी, मगर बर्तन रोज के रोज करती थी।
लेकिन पिछले कुछ दिनों से कई बार चम्पा ऐसे टाइम पर आती थी, जिस टाइम पर मैं घर होता था। चम्पा आती और मुझे देख कर हंसती, और चूत खुजलाती, और इधर-उधर मेरे सामने बेमतलब डोलती रहती।
एक दिन सुबह बैठा मैं फोन का इंतजार कर रहा था। चम्पा चमेली की खुशबू बिखेरती हुई सीढ़ियां चढ़ गयी। पीछे-पीछे शीला भी आ गयी। शीला ऊपर जाने की बजाए नीचे सीधा मेरे पास आ गयी।
शीला के वही डायलॉग चालू हो गए,”नमस्ते जीत भैया, कैसे हो आप ” और फिर वही लंड की तरफ इशारा करके, “ये पप्पू कैसा है?” मिला कुछ इसको कि अभी भी नहीं मिला?”
मैंने भी हंसते हुए कह दिया,”कहां मिला कुछ इस पप्पू को। तू ध्यान ही कहां रखती है इसका।” फिर मैंने बोल ही दिया,”शीला होटल चलेगी? दोपहर को जायेंगे, शाम तक वापस आ जायेंगे।”
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