हिंदी अन्तर्वासना कहानी अब आगे-
कनाडा से वापस आने के बाद भूपिंदर ने आधी-आधी रात तक चुदाई करवाई। इस उम्र में भी भूपिंदर हट-हट कर मतलब चूतड़ घुमा-घुमा कर चुदाई करवाती थी।
वैसे तो चुदाई में उम्र कम ही आड़े आती है अगर इंसान का खाना-पीना ठीक-ठाक हो – रोज़ मीट मुर्गा, रोज़ शराब। अब मैं ही कौन सा कम था। वैसे कहने की बात हैं पंजाबी मर्द तो अस्सी साल की उम्र में भी चुदाई करते हैं।
एक हफ्ते के बाद जब चुदाई करवा-करवा कर भूपिंदर की तसल्ली हो गयी तो भूपिंदर को ध्यान आया कि सुखचैन यहां था नहीं, लेकिन ऐसा लग नहीं रहा कि प्रीती रोज़ फुद्दी चोदने वाले सुखचैन की चुदाई मिस कर रही थी। भूपिंदर को शक हो गया कि कहीं ना कहीं कुछ तो गड़बड़ थी।
सब से पहला शक भूपिंदर का मुझ पर गया कि हो ना हो मैं ही प्रीती को चोदता रहा हूं। बस भूपिंदर ने अगली सुबह ही मुझे घेर ही लिया और मेरे पीछे पड़ गयी कि मैं सच-सच बताऊं कि क्या सच में मैं ही प्रीती को चोदता रहा था।
भूपिंदर बोल रही थी और मैं चुप-चाप बैठा सुन रहा था। भूपिंदर का शक उस वक़्त यकीन में बदल गया जब मैंने उसे बताया की प्रीती ज्यादा देर तक तो घर से बाहर कभी भी नहीं जाती रही थी।
भूपिंदर बोली, “अब तुम बताओ अवतार अगर प्रीती घर से बाहर नहीं गयी – इसका मतलब है बाहर उसकी चुदाई नहीं हुई – तब तो तुमने पक्का ही उसे चोदा है। ये तो कहना मत कि तुमने प्रीती की चुदाई नहीं की, उसकी फुद्दी मैं लंड नहीं डाला, उसके मम्मे नहीं दबाये, उसकी फुद्दी नहीं चूसी, उसकी चूतड़ों का छेद नहीं चाटा।”
मैंने धीरे के कहा, “अब मैं क्या बताऊं भूपिंदर।”
“क्या कहा, अब मैं क्या बताऊं? मुझे गुस्सा तो मत दिलवाओ अवतार। तुम्हारी इस बात से एक बात तो साफ हो गयी कि प्रीती तुमसे चुदाई करवाती रही है। मुझे तो अब ये बताओ, ये शुरू कैसे हुआ? तुमने कोइ जोर ज़बरदस्ती की क्या प्रीती के साथ? या शराब के नशे में तो नहीं चढ़ गए अपनी बेटी के ऊपर और एक बार तुम्हारा ये साला गधे के लंड जैसा लंड अपनी फुद्दी में डलवा कर प्रीती भी मस्त हो गयी तुम्हारे लंड की? मजा आ गया तुम्हारा लंड फुद्दी और गांड में डलवा कर उसे और फिर तुम दोनों की रोज़-रोज़ की चुदाई चालू हो गयी।”
मैंने उसी धीमी आवाज में कहा, “ऐसा कुछ भी नहीं हुआ भूपिंदर।”
भूपिंदर अपना आपा खोते हुए उसी तीखी आवाज में बोली, “भोसड़ी के अवतार, अगर ऐसा नहीं हुआ तो फिर कैसा हुआ? क्या प्रीती ने उकसाया तुम्हें?”
मैं बोला कुछ नहीं मगर मैंने हां में सर हिला दिया।
“क्या मतलब है तुम्हारा? प्रीती ने उकसाया तुम्हें? क्या उसने तुम्हारे पायजामें का नाड़ा खोला, तुम्हारा लंड पकड़ कर पहले खड़ा किया और फिर अपनी फुद्दी में डाल लिया? प्रीती ने कैसे उकसाया तुम्हें, बताओ?”
मैंने उसी मरी हुई आवाज में कहा, “कुछ ऐसा ही किया प्रीती ने।”
भूपिंदर की शक्ल बता रही कि भूपिंदर का गुस्सा अब सातवें आसमान पर पहुंचने लगा था। मैंने सोचा अब किसी भी घरेलू कलह से बचने के लिए भूपिंदर को पूरी बात बताना ही ठीक था।
मैंने अपने ऊपर कंट्रोल किया और भूपिंदर से कहा, “भूपिंदर पहले तो अपना गुस्सा शांत करो यार, मैं पूरी बात बताता हूं, फिर तुम जो ठीक समझ वो कहना और करना।
भूपिंदर मेरी तरफ देखने लगी। मैंने भूपिंदर को सारी बात साफ़-साफ़ बता दी। सुखचैन के जाने से ले कर प्रीती के झीने कपड़े बिना ब्रा पैंटी घर में घूमना, उसका नहा कर नंगी ही बाहर आना – हमारी चुदाई होना और फिर रात को मेरी गोद में बैठ जाना। मैंने ये भी बता दिया की कई सालों से प्रीती हमारी चुदाई देखती रही है – जब से उसे पीरियड शुरू हुए हैं।
सारी बात सुनने के बाद भूपिंदर चुप-चाप बैठ गयी। मैंने भूपिंदर से कहा, “भूपिंदर सच बात तो ये है कि उस दिन सुबह मैं प्रीती को इस तरह नंगी देख कर अपने ऊपर कंट्रोल ही नहीं कर पाया। इतना सेक्सी जिस्म? खड़े मम्मे? ये बड़े-बड़े चूतड़? सच बताऊं भूपिंदर तेरी कसम, पहली चुदाई तो जोश-जोश में हो गयी थी, जब प्रीती नंगी मेरे सामने खड़ी थी। मैं मानता हूं मुझे से अपने पर कंट्रोल नहीं हुआ, वो मेरी गल्ती थी। मुझे पछतावा भी हुआ और उस पहली चुदाई के बाद मैंने प्रीती को समझाने की कोशिश भी की कि ये ठीक नहीं है, मगर वो मान ही नहीं रही थी।”
मैंने भूपिंदर का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा, “और सब से बड़ी बात, तुम यहां थी नहीं, मैं सलाह करता भी तो किससे करता?”
“और फिर वही बात मेरे दिमाग में भी आयी, प्रीती जवान है खूबसूरत सेक्सी है, लंड लेने की शौक़ीन है। चंडीगढ़ के चप्पे-चप्पे से वाकिफ भी है और चंडीगढ़ में उसके लड़के-लड़कियां दोस्त भी हैं। ये तो छोड़ो चंडीगढ़ में शौक़ीन, अमीरजादों की कमी नहीं। प्रीती जैसी सेक्सी लड़की को चोदने के लिए वो हजारों भी खर्च कर सकते हैं।”
“और फिर भूपिंदर मैं ही कौन सा सारा दिन घर पर रहता हूं। फार्म पर तो मैं चलो रोज नहीं जाता पर सत्रह सेक्टर तो मुझे तकरीबन रोज ही जाना पड़ता है। मेरी गैरमौजूदगी में अगर प्रीती किसी से चुदाई करवा ले तो? यहां कालका से आगे हिमाचल में ऐसे होटलों की भरमार है जो घंटों के हिसाब से भी कमरे किराये पर देते हैं – आओ जी वेलकम जी – करो चुदाई और “फक एंड फ्लाई।”
“और फिर भूपिंदर एक बात बताओ एक बार भी अगर बाहर के किसी लड़के के साथ प्रीती की चुदाई हो जाती, तो फिर समझो सब खत्म। किसी का भी डर और झिझक सब खत्म और फिर इसके बाद चुदाई रुकने वाली ना होती।”
मेरी बात लग रहा था भूपिंदर को समझ आ रही थी। वो कुछ देर चुप-चाप बैठी कुछ सोचती रही और फिर बोली, “तो अवतार अब क्या करें? सुखचैन की तो अब कम से कम तीन-चार महीने से पहले ट्रांसफर नहीं होने वाली। इसका मतलब अभी उतनी देर और तो वो ढुबरी में ही रहेगा।”
मैं भी कुछ देर सोचता रहा, फिर बोला, “भूपिंदर सच कहूं तो इसका हल इतना आसान नहीं है, कम से कम अब तो नहीं। अगर ये इतना ही आसान होता तो मैं प्रीती की चुदाई ही ना करता।”
भूपिंदर मेरी तरफ देखने लगी। भूपिंदर को इस तरह मेरी तरफ देखते हुए मुझे परेशानी से होने लगी थी, टेंशन कि कारण मेरा सर दर्द करने लगा था।
मैंने उठते हुए कहा, “मैं चलता हूं भूपिंदर, अभी फार्म पर जाऊंगा। अगर कुछ सामान घर छोड़ना होगा तो छोड़ कर सत्रह सेक्टर चला जाऊंगा। तुम अपने तरीके से प्रीती से बात करना और मुझे बताना क्या हुआ। सच बताऊं भूपिंदर मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा।”
मैंने जुगनू को आवाज दी, “ओये कहां है जुगनू, चल आजा।”
जुगनू आया और बोला, “सरदार जी मैं तो यहीं था।”
मैंने गाड़ी में बैठते हुए जुगनू से कहा, “चल पहले फार्म पर।”
मैं फार्म पर गया। बिशनी अंदर काम कर रही थी। मुझे आया देख काम छोड़ कर मेरा लंड पकड़ कर बोली, “सरदार जी बड़े दिनों के बाद आये हो, क्या हो गया? आज तो जरा मस्ती से ‘कर’ दो, बड़ा मन कर रहा है।”
घर के माहौल के कारण बिशनी को चोदने का मेरा मन तो नहीं था थोड़ी टेंशन भी हो रही थी। मगर फिर भी दिमाग हल्का करने के लिए बिशनी को चोदने का मन बना लिया। बिशनी को मैंने बिस्तर लिटा दिया और आननफानन में बिशनी के सलवार उतार दी। फिर मैंने अपना पायजामा उतारा और बिशनी की चूतड़ों के नीचे तकिया लगा कर बिशनी की टांगें उठा दी और टांगें चौड़ी करके एक ही झटके में लंड बिशनी के चूत में डाल दिया।
बिशनी बोली, “क्या बात है सरदार जी आज बड़ी जल्दी में लग रहे हो? लंड पर रबड़ भी नहीं चढ़ाया, ना फुद्दी में उंगली डाली ना चूतड़ों में?
मैंने बिशनी की फुद्दी मैं धक्के लगाते हुए कहा, “कंडोम की मां की चूत! आज ऐसे ही चोदनी है तेरी फुद्दी बिशनी बिना कंडोम के।”
और ये कर मैंने बिशनी को बाहों में जकड लिया और चुदाई शुरू कर दी। मेरा ध्यान भूपिंदर की बातों के तरफ था, और मैं बिशनी को चोदता जा रहा था। बिशनी नीचे चूतड़ घुमा रही थी। बिशनी को एक बार मजा आया और फिर दूसरी बार मजा आ गया, मगर मेरा लंड ना ढीला हो रहा था और ना ही पानी छोड़ रहा था।
मैं बस बिशनी की चूत रगड़ता जा रहा था। जैसे ही बिशनी को तीसरी बार मजा आया तो बिशनी बोली, “आज क्या हो गया सरदार जी आपका लंड तो झड़ ही नहीं रहा। तीन बार मजा आ गया मुझे। अगर नहीं निकल रहा तो चूस कर दे दूं आपको मजा? नहीं तो गांड में डाल लो। थोड़े रगड़े लगेंगे तो निकल जाएगा।”
मैंने लंड बिशनी की चूत में से निकाल लिया और खड़ा हो कर बोला, “चल बिशनी घोड़ी बना जा आज तेरी गांड में ही निकालता हूं। बिशनी ने एक बार लंड पकड़ा और लंड दबाते हुए बोली, “सरदार जी आज कुछ बात तो है।”
ये कह कर बिशनी बेड की साइड में चूतड़ ऊपर करके उल्टी लेट गयी। बिशनी के चूतड़ सख्त थे मैंने बिशनी की गांड के छेद मैं थूक डाला और लंड गांड के छेद पर बिठा कर अंदर धकेलना शुरू कर दिया। बिशनी की गांड का छेद प्रीती की गांड की छेद जितना टाइट नहीं था। जरा सी मेहनत के बाद ही लंड बिशनी की गांड में पूरा बैठ गया।
मैंने बिशनी की कमर पकड़ी और चुदाई चालू कर दी। मेरा ध्यान अब प्रीती की गांड की तरफ था। प्रीती की गांड चोदते हुए मेरा मन था कि प्रीती के नरम मुलायम चूतड़ों पर जोर-जोर से हाथ मारूं। मगर प्रीती मेरी बेटी थी और मैं प्रीती के साथ ऐसा कुछ नहीं कर सकता था।
मगर बिशनी के साथ ऐसा कुछ नहीं था। मेरा और बिशनी का सिर्फ चुदाई का रिश्ता था। मैंने बिशनी के चूतड़ों पर जोर-जोर से हाथ मारते हुए बोलना शुरू किया तो बस बोलता ही गया, “ले मादरचोद बिशनी ले, आज फाड़ता हूं तेरी गांड। ऐसे चोदूंगा कि चार दिन दुखती रहेगी। ले बिशनी ले। गया तेरी गांड में पूरा का पूरा। मैं बिशनी के चूतड़ों पर धप्प जमाता जा रहा था और गांड में लम्बे-लम्बे धक्के भी लगाता जा रहा था। बिशनी अपने आप को आगे गिरने बड़ी मुश्किल से रोक रहे थी। मैं बिशनी की गांड को वहशियों की तरह चोद रहा था और बिशनी मुड़-मुड़ कर मुझे देख रही थी।
पता नहीं बिशनी की गांड भी मैंने कितना टाइम चोदी, और आखिर को मेरा लंड पानी छोड़ गया। मेरे मुंह से जोर की आवाज निकली, “आह बिशनी, ले निकला तेरी गांड में।”
जैसे ही मेरे लंड से गरम रस निकलना बंद हुआ और मैंने बिशनी की कमर छोड़ी तो बिशनी एक-दम आगे की तरफ लुढ़क गयी।
मैं बाथरूम में चला गया और लंड की धुलाई करके वापस आया तो बिशनी सलवार नाड़ा बांध रही थी।
बिशनी ने मेरी तरफ देखते हुए कहा, “सरदार जी आज क्या हो गया था? मेरा पूरा जिस्म तोड़ दिया आपने। ऐसा तो कभी नहीं हुआ। सरदार जी सच-सच बताना आपको मेरी कसम, कोइ दिमागी परेशानी है क्या आज? मुझे आपकी और मेरी चुदाई से ज्यादा आपकी सेहत की फ़िक्र है। सरदार जी आप ठीक-ठाक हो तो हम सब भी थी ठीक-ठाक हैं, वरना आपके बिना हम किस काम के?”
बिशनी की ये बात सुन कर तो मैं हैरान और परेशान ही हो गया। मुझे बिशनी पर बड़ा ही प्यार आया। मैंने पहली बार बिशनी की होठों को चूमा और बोला “नहीं बिशनी ऐसा कुछ नहीं है” और मैं बाहर की तरफ निकल गया।
जुगनू दूध की डिब्बे और अंडों का थैला लिए मेरा इंतजार कर रहा था। मैंने जुगनू से कहा, “जुगनू जरा पूरन को बुला दे।”
जुगनू चला गया और मैं गाड़ी के पास खड़ा हो गया। पूरन आया तो मैंने पूछा, “पूरन कोइ काम तो नहीं कोइ, पैसा वैसा तो नहीं चाहिए?”
पूरन बोला, “नहीं सरदार जी सब ठीक है बस एक गाये अब गाभिन है और दूध कम दे रही है। बदलने वाली हो गयी है।”
मैंने कहा, “कोइ बात नहीं मैं सतपाल से बात कर लूंगा। ये गाये उसके मुल्लनपुर वाले फार्म में छोड़ आना और दूसरी ले आना जो जल्दी ब्याने वाली – बच्चा देने वाली हो।”
सतपाल मेरा दोस्त था और सुखना झील की बगल वाली बस्ती किशनगढ़ में बहुत बड़ा डेरी फार्म चलाता था। सौ के लगभग गायें भैंसे थी। आधे चडीगढ़ में सतपाल की दूध की सप्लाई थी। हमारे फार्म से थोड़ी दूरी पर ही उसका भी फार्म था जिसमें सिर्फ सब्जियां और गाये भैसों का चारा उगाया जाता था। फार्म में उसकी वही गायें भैंसें घूमती रहती थी, जो दूध नहीं देती थी और जिन्हें गाभिन करवाना होता था।
गायों की लिए दो जर्सी नस्ल के सांड थे और भैंसों की लिए मुर्रा नस्ल के दो झोटे थे। जब भी कोइ-कोइ गाये या भैंस गर्म होती थी उस पर चढ़ जाते थे।
सतपाल कभी किसी सूखी गाये या भैंस को – जो दूध देना बंद कर देती थी – उसे बेचता नहीं था। कहता था “भैंसों को कसाईखाने में ले जा कर काट देते हैं और गायों को बंगलादेश स्मगल कर देते हैं कटने के लिया। ये क्या बात हुई जब तक जानवर दूध देता है, तब तक तो सब ठीक है, दूध देना बंद कर दे तो निकाल दो?”
सतपाल को अपनी गायों भैंसों से बड़ा प्यार था।
वैसे सतपाल कहता तो ठीक ही था, “ये क्या बात हुई जब तक जानवर दूध देता है, तब तक तो सब ठीक है, दूध देना बंद कर दे तो निकाल दो? उस हिसाब से तो लोगों को अपने बुड्ढे मां-बाप को भी घर से निकाल देना चाहिए।”
पूरन “जी सरदार जी” कह कर चला गया।
मैं गाड़ी में बैठा और हम सेक्टर पांच की तरफ रवाना हो गए। घर आ कर मैंने जुगनू से कहा, “जुगनू ये सामान अंदर छोड़ आ और बोलना हम सीधे सेक्टर सत्रह जा रहे हैं, कुछ जरूरी काम है।