इस सब की शुरुआत दो साल पहले हुई, जब मैं 20 साल का हुआ था, और मेरी सुधा दीदी 25 साल की।
सुधा दीदी और मैं हम दोनों बचपन से ही एक साथ बड़े हुए थे। तो हम दोनों भाई-बहन की तरह नहीं बल्कि दोस्तों की तरह रहते थे। हम दोनों के बीच में कभी कोई हिचक नहीं रही। वो अक्सर अपने रूम में बिना ब्रा के घूमती, और कभी-कभी तो सिर्फ एक टाइट टी-शर्ट पहन कर मेरे सामने आ जाती।
रात को भी अक्सर वह मेरे पास ही सो जाया करती थी, और हम दोनों को कोई भी कुछ नहीं कहता। क्योंकि हम भाई-बहन थे, और सब को लगता था कि हम दोनों में वैसा कुछ नहीं हो सकता।
रात को अक्सर हम दोनों ढेर सारी बातें किया करते। तब सुधा दीदी का एक बॉयफ्रेंड भी था, तो वह अक्सर उसके बारे में बताया करती। और मैं चुप-चाप उसकी सारी बातें सुन लेता। और भी कई सारी चीजें थीं, जिस पर हम लोग बातें किया करते थे। जैसे उसके पहले किस्स का अनुभव, या किस जगह उसने पहली बार अपने बॉयफ्रेंड का हाथ पकड़ा था। वह मज़े लेकर मुझे बताती और मैं मुस्कराते हुए सब सुनता।
आगे बढ़ने से पहले मैं आपको सुधा दीदी के जिस्म के बारे में बताता हूं, जैसा मैंने देखा और महसूस किया। वो एक-दम असली और मादक खूबसूरती की मिसाल थी। उसकी त्वचा हल्की गेहुंआ, मगर बेहद साफ और मुलायम, जैसे छूते ही उंगलियां उसमें धंस जाएं। जब वो बाल ऊपर बांधती थी, तो उसकी गर्दन से लेकर कंधे तक की त्वचा इतनी चिकनी दिखती कि नज़रें हटाना मुश्किल होता। उसकी कॉलरबोन उभरी हुई थी, और गर्दन के नीचे की दरार, उसके डीप नेक टॉप में झलकती थी, जैसे किसी खजाने की पहली झलक।
उसकी छाती बड़ी, गोल और भरी हुई थी। कोई दिखावे वाली फिगर नहीं, बल्कि असली और मांसल उभार, जिनमें वज़न था। जब वह बिना ब्रा के चलती थी तो उनकी हर थरथराहट दिल को झकझोर देती थी। टाइट टी-शर्ट के नीचे उनके आकार साफ उभरते थे, और कभी-कभी तो निपल्स की नोकें तक उभरी हुई नज़र आती थी। जब वो टाइट लेगिंग्स पहनती, तो उसकी हिप्स कपड़े के अंदर से ऐसे उभरते जैसे उन्हें छू लेना काफी नहीं, बल्कि पकड़ना ज़रूरी हो।
और उसकी चूत, जब वह बिना पैंटी के सलवार या ढीली नाइटी में होती थी, तो पैरों के बीच का उभार साफ नज़र आता था। कपड़ा चिपकता और उसके अंदर की गहराई और हल्की रेखा तक दिख जाती थी। वह हिस्सा उसके पूरे शरीर का सबसे ज़्यादा उकसाने वाला हिस्सा था। हर हलचल में अपनी मौजूदगी का अहसास कराता हुआ, जैसे वो खुद मेरे लिए धीरे-धीरे खुल रहा हो।
एक रात हम दोनों बहुत देर तक बातें करते रहे क्योंकि अगली सुबह संडे था, और हम दोनों को भी काॅलेज नहीं जाना था।
“क्या तू अभी भी वर्ज़न है, गोलू?” उन्होंने हंसते हुए पूछा। हम दोनों बेड पर एक-दूसरे के सामने लेटे हुए बातें कर रहे थे और कभी-कभी मेरी नज़र उनके क्लीवेज पर जाती, जो डीप नेक वाले टी-शर्ट के अंदर से साफ दिख रहा था।
मैंने सिर हिलाकर हामी भरी। उन्होंने मुझे हंसकर मासूम नज़रों से देखा। उनके चेहरे पर एक हल्की शरारती मुस्कान थी, जैसे उन्हें पहले से पता हो। उनकी आंखें चमक रही थी, गालों पर हल्की लाली उभर आई थी, और होंठों के कोनों में वो नर्म मुस्कान थमी हुई थी, जो किसी अनकहे राज़ का इशारा करती है। उनके चेहरे पर एक जानी-पहचानी मस्ती थी, जैसे वो मुझे छेड़ना चाहती हों, लेकिन किसी सीमा को भी समझती हो।
मैंने आगे जोड़ा, “और आप दीदी?”
“नहीं गोलू,” उन्होंने कहा, “मैं अब वर्ज़न नहीं रही।”
मैं कुछ देर शांत बैठा रहा, फिर एक बार वह हौले से बोली, “क्या अब तू अपनी बहन को जज करेगा, क्योंकि वह वर्ज़न नहीं रही?”
मैंने सिर हिला कर मना दिया और कुछ देर तक हम दोनों शांत रह गए। फिर कुछ देर बाद मैंने पूछा, “वह एहसास कैसा होता है दीदी? मतलब क्या आप बता सकती हो की वह सब चीजें कैसे करते हैं?” वह उठ कर बैठ गई। मैं भी उनके सामने बैठ गया।
“तु यह जानना चाहता है कि सेक्स कैसे करते हैं? या फिर मैंने सेक्स कैसे किया?”
मैंने सिर हिला कर कहा, “दोनों।”
सुधा दीदी ने गहरी सांस ली और धीरे से बोली, “ठीक है… लेकिन जो मैं बताने वाली हूं, वो सिर्फ सुनने के लिए नहीं है, समझने के लिए भी है।”
वह मेरे पास आई और धीरे से मेरे हाथों को अपने हाथों में लिया। उनकी उंगलियां मेरी हथेलियों पर फिसली, फिर उन्होंने अपना चेहरा थोड़ा और करीब किया।
“पहली बार जब मैंने अपने बॉयफ्रेंड को अपने ऊपर महसूस किया था ना, तो पूरा बदन जैसे सिहर उठा था। उसके होंठ जब मेरे गले के पास पहुंचे, तो ऐसा लगा जैसे कुछ गर्म-सा अंदर तक उतर गया हो। फिर जब उसने मेरी ब्रा हटाई और मेरे निपल्स को अपने होंठों से छुआ। वो अहसास शब्दों में नहीं बताया जा सकता।”
वो मुझे देखते हुए मुस्कराई। “उसकी उंगलियां जब मेरी चूत के अंदर गई, तब मैं हौले से कांपी थी। पहले थोड़ी जलन हुई थी, फिर एक मीठी कसक सी… जैसे कोई भीतरी ताले खुल रहे हों। उसने जब पहली बार अपना लंड मेरे अंदर डाला, तब मेरा पूरा बदन तन गया। वो धीरे-धीरे आगे बढ़ता रहा… और मैं हर उस पल को महसूस करती रही। उस रात, मैं पूरी तरह उसकी हो गई थी।”
वो मेरी आंखों में देखते हुए कुछ पल चुप रहीं, फिर अपनी सांसें गहरी कर ली। “उसके हर धक्का, हर स्पर्श मेरे जिस्म में गूंजता था। मैं उसके नीचे थी, पूरी तरह खुली हुई, और वो मेरे अंदर। उसने मुझे ऐसे भर दिया था जैसे मैं उसी के लिए बनी थी। मेरी टांगें उसके कूल्हों के चारों तरफ लिपटी हुई थीं, और मैं हर पल उसे और गहराई तक खींचना चाहती थी।”
“जब उसने मुझे एक हाथ से पकड़ा और मेरे निपल्स को दबाना शुरू किया, तो जैसे पूरे जिस्म में एक झनझनाहट दौड़ गई। उसकी उंगलियों की पकड़ में एक मजबूती थी, एक प्यास थी। हर बार जब उसकी उंगलियां मेरे निपल्स के चारों ओर घूमती, तो मेरा शरीर खुद-ब-खुद और भी सख्त हो जाता था।”
मैं बिना पलक झपकाए सुन रहा था। दीदी की बातों में एक अलग ही गर्मी थी, जो मेरे शरीर को अंदर तक भिगो रही थी। मेरी सांसें तेज़ हो गई थी, और मेरे शरीर में कुछ अजीब सा उबाल आ रहा था। मेरा लंड अपनी पूरी सख्ती के साथ खड़ा हो चुका था और मैंने धीरे से अपनी पैंट को एडजस्ट किया। दीदी ने ये देखा, थोड़ी देर बाद उन्होंने मेरी कलाई को धीरे से छोड़ा और फुसफुसाई, “गोलू यह ग़लत बात है। अपनी दीदी की कहानी सुन कर खुद को सख्त नहीं करना चाहिए।”
मैं चुप था, लेकिन मेरा शरीर और मेरी नज़रें कुछ और कह रही थी। दीदी ने एक पल मेरी आंखों में झांका, फिर बिस्तर पर पीठ के बल लेट गई और हल्के से बोली, “अब सो जा।”
मैं धीरे से उनके पास लेट गया, लेकिन नींद तो बहुत दूर की बात थी। मेरा दिल तेज़ी से धड़क रहा था, और दीदी की मौजूदगी मेरे हर होश पर छाई हुई थी।
उसके बाद मेरे अंदर बहुत कुछ बदल गया। मैं सुधा दीदी को उस तरह देखने लगा, जिस तरह पहले कभी नहीं देखा। अब मैं उसे सिर्फ दीदी नहीं, एक औरत की तरह देखने लगा था। एक ऐसी औरत जिसे मैं हर वक़्त महसूस करना चाहता था। मैं जान-बूझ कर उसे देखने के बहाने ढूंढने लगा।
जब वह नहा कर बाहर आती, तो मैं बाथरूम के दरवाज़े के पास जाकर उसके भीगे बदन को झांकने की कोशिश करता। कभी उसके कमरे में जाते वक्त उसकी अलमारी में से उसके अंडरगारमेंट्स ढूंढता, उन्हें छूता, सूंघता और फिर चुप-चाप रख देता। उसकी सलवारों की सिलवटों में उसकी खुशबू बस चुकी थी और मैं उसे छूते ही सिहर उठता था।
वो जब बेखबर होकर लेटी रहती या मोबाइल में मग्न होती, मैं कोने से बैठ कर उसकी टांगों के बीच की हरकतों को देखता। कई बार जब वह झुकी होती या कुछ उठा रही होती, मैं उसके हिप्स को ऐसे घूरता जैसे वो किसी खजाने की तरह हों।
अब मैं जब भी दीदी के साथ लेटता, जान-बूझ कर अपनी टांगें उनके बदन से छुआता, जैसे नींद में करवट ले रहा हूं। कई बार मेरा हाथ उनकी कमर या हिप्स को छू जाता। कभी हल्का सा टच, कभी थोड़ी देर रुक कर।
रात को जब वो करवट लेकर सोती, तो मैं पीछे से धीरे से खिसक कर उनसे सट जाता। मेरा लंड उनके हिप्स के पास सख्त होकर टिक जाता और मैं सांस रोक कर उस अहसास में खो जाता। अगर कभी उनका हाथ मेरी ओर आता, मैं खुद को ढीला कर लेट जाता, जैसे कुछ पता ही ना हो।
धीरे-धीरे यह मेरी आदत बनती जा रही थी। जान-बूझ कर छूना, फिर मासूम बन जाना। हर रात मैं उन्हें ऐसे छूने की कोशिश करता जैसे नींद में गलती से हो गया हो, लेकिन अंदर ही अंदर मेरी मंशा कुछ और ही होती थी।
एक रात मैं और ज़्यादा करीब खिसक गया। मेरा हाथ उनकी कमर से सरकते हुए धीरे-धीरे उनके सीने तक पहुंच गया। मैंने बहुत धीमे से अपनी हथेली उनकी एक छाती पर टिका दी, नर्म, भारी और गर्म। मैं अपनी उंगलियों से उनकी गोलाई को महसूस करने लगा, कभी हल्के से दबाते हुए, जैसे कोई नींद में करवट लेता हो और हाथ कहीं अनजाने में टिक जाए।
फिर मेरा हाथ नीचे फिसलने लगा, उनकी पेट से होता हुआ जांघों के बीच की तरफ। मैंने उंगलियों को थोड़ा और बढ़ाया, और फिर धीरे से उनकी पैंटी के ऊपर से उनके सबसे निजी हिस्से को छू लिया। हल्के से, जैसे नींद में हाथ भटक गया हो। मेरा दिल ज़ोर से धड़क रहा था, लेकिन मैं अपने चेहरे पर एक नींद भरी मासूमियत बनाए रहा, जैसे कुछ भी जान-बूझ कर नहीं हुआ हो।
मैं हर बार ऐसा करता, और फिर तुरंत हाथ वापस खींच लेता, जैसे अचानक जाग कर संभल गया हो। लेकिन हर रात मेरी हिम्मत और बढ़ती जा रही थी, और मेरा लालच भी।
इसके आगे क्या हुआ, वो आपको आगे पता चलेगा। यहां तक की कहानी की फीडबैक [email protected] पर दें।
अगला भाग पढ़े:- उस रात दीदी ने चखाया अपना गीलापन-2