चित्रा और मैं-2

इत्तेफ़ाक़ से अगले शनिवार को ही मम्मी-पापा को सुबह 6 बजे एक सत्संग में जाना था, और चित्रा और मैं भी उस दिन जल्दी उठ गए थे। पापा-मम्मी के चले जाने के बाद मैंने चित्रा कहा कि पहले वह नहा ले क्योंकि नल में 7 बजे तक अच्छा पानी आएगा, और उसे पानी आते-आते नलके की धार में ही नहाने में अच्छा लगता था।

मैं कमरे में डाइनिंग टेबल पर बैठा अखबार पढ़ रहा था। जैसे ही चित्रा ने बाथरूम का दरवाज़ा बंद किया, मैंने सोचा उसको कपड़े उतारते और नंगा होकर नहाते हुए झाँक कर देखता हूँ, जैसे मम्मी को देखा करता था। मैं दबे पाँव उठ कर बाथरूम की प्राइवेट बालकनी में खुलने वाले दरवाज़े पर जाकर उसमें एक छेद में से सांस रोक कर अंदर झाँकने लगा। अंदर जो हो रहा था वह देख कर मेरी धड़कन तेज़, चेहरा लाल, और लौड़ा टन्न हो गया।

चित्रा अपना ब्लाउज और स्कर्ट उतार चुकी थी, और पीछे हाथ करके ब्रा का हुक खोल रही थी। मैंने भी झट अपने पजामे का नाड़ा खोल कर उसे नीचे किया, और एक हाथ में लौड़ा और दूसरे में बॉल्स थाम लिए। डर कोई था ही नहीं, क्योंकि मम्मी-पापा जा चुके थे।

चित्रा ने ब्रा उतार कर अपने मम्मों को फ्री किया, और दोनों हाथ में एक-एक मम्मा पकड़ा और उनको ऊपर नीचे किया जैसे उनका वज़न तौल रही हो। चूचियों को ऊपर उठा कर ध्यान से देखा, और लम्बी जीभ निकाल कर दोनों पर जीभ फेरी। चूचियां तन गयीं तो उन्हें थोड़ा मसला। फिर कच्छी उतार कर खूंटी पर टाँग दी।

खूँटी उसी दरवाज़े पर थी जिससे मैं अंदर झाँक रहा था, तो चित्रा की झांटें मुझे बहुत पास से दिख गयीं। चूत की फांकें थोड़ी फूली हुई थीं और उनके बीच की दरार साफ़ दिख रही थी। बाथरूम की तेज़ रोशनी में 18 साल की एक-दम नंगी सांवली चित्रा को मैं चार फुट की दूरी से आराम से देख रहा था, बिना पकड़े जाने के डर के।

चित्रा की चूत का एरिया काली मुलायम झांटों से ढका था। थोड़ा झुक कर चित्रा ने अपनी चूत को देखा, और तीन-चार बार झांटों को धीरे-धीरे सहला कर एक पाँव उठा कर उल्टी रखी बाल्टी पर टिका दिया। ऐसा करने से उसकी झांटें नीचे की तरफ से अलग हुई तो चूत की फांकें भी अलग हुई और चूत के अंदर का पिंक हिस्सा थोड़ा नज़र आने लगा। इधर मेरे हाथ में लौड़ा झटके मार रहा था और उधर बाथरूम के अंदर चित्रा अपनी चूत रगड़ रही थी एक हाथ से, और दूसरे हाथ से कभी एक चूची तो कभी दूसरी चूची मसली जा रही थी।

थोड़ी देर तक यह करने के बाद चित्रा ने चूची से हाथ हटा कर नल को बस इतना खोला कि उसमे से एक पतली-सी धार लगातार गिरती रहे। पटले को पानी की गिरती धार के नीचे खिसकाया और उस पर बैठ कर जांघें चौड़ी करके चूत को गिरते पानी के नीचे कर लिया। अब चूत पर लगातार नल से पानी की धार गिर रही थी, और चित्रा ने अपने दोनों हाथ पीछे ज़मीन पर टिका रखे थे। कभी-कभी अपने चूतड़ थोड़ा उठा कर पानी की धार को चूत के अलग-अलग हिस्सों पर गिराती तो उसका पेट अंदर जाता और लम्बी सांस उसे आ जाती। मैं दरवाज़े की दरार पर आँख लगा कर लौड़े को थामे मस्त खड़ा नंगी चित्रा और उसकी चूत पर पानी गिराने कि हरकत देखे जा रहा था।

थोड़ी देर बाद चित्रा ने दोनों हाथों से नल की टोंटी के पीछे के पाइप को पकड़ लिया। उसने अपना सर अपने एक कंधे पर टिका रखा था, और रह-रह कर उसका बदन कंपकंपाता और गहरी सांस आ जाती थी उसको। फिर एक हाथ नल से हटा कर एक-एक करके दोनों मम्मे सहलाये और फिर एक चूची को मसलते-मसलते गांड धीरे-धीरे आग-पीछे करके पानी की धार को चूत पर ऊपर से नीचे तक कई बार गिराया।

मेरी धड़कनें बेहद तेज़ होने के बावजूद, मुझे तो पता था कि घर में दूसरा कोई नहीं था। तो मैं आराम से देख सकता था, और जब तक पूरा मज़ा नहीं ले लेती तब तक चित्रा बाहर आने वाली नहीं है। मैंने भी चित्रा को देखते-देखते दोनों हाथ से लौड़े और बॉल्स को खूब खुल कर आराम से सहलाया।

एक बार सोचा कि धीरे से बाथरूम के दरवाज़े पर दस्तक दूँ, या उसे पुकारूँ, परन्तु ऐसा नहीं किया, यह सोच कर कि वह हड़बड़ा जाएगी और यह नज़ारा बंद हो जाएगा। और फिर कहीं मेरी शिकायत ही ना कर दे। थोड़ी दूर से ही सही, और उसके अपने हाथों से ही, पर पहली बार किसी एक दम नंगी लड़की को चूत में मज़े लेते हुए देख ही लिया मैंने आखिरकार।

एक और चीज़ देख कर और भी मस्त हो गया था, चित्रा की काफी घनी झांटें थीं, और बाकी बदन एक-दम चिकना। मम्मे ऐसे कि हाथ भर जाय और चूची चूसने लायक तनी हुई। वैसे ही झांकते हुए मुझे दो बार रूमाल में मुठ मारनी पड़ी, जब तक चित्रा ने एक ज़ोरदार थिरकन और लम्बी सांस के बाद अपनी जांघें कई बार खोली, और बंद कीं, आगे झुक कर चूत और गांड को साबुन से धोया, नल बंद किया, उठ कर चूत को तौलिया से पोंछा, और बाकी नहाना किये बिना ही सफ़ेद पैंटी और ब्रा पहन कर बाहर आने के लिए तैयार होने लगी। मैं भी दो बार तो लौड़े को झाड़ चुका था। पजामा ऊपर करके फिर मैं डाइनिंग टेबल पर आ कर अखबार पढ़ने लगा, जैसे कुछ हुआ ही ना हो।

चित्रा ने नाहा कर आने पर मुझसे जल्दी नहाने को कहा और बोली कि फिर एक साथ नाश्ता करेंगे। मैंने कहा,”पहले नाश्ता ही कर लेते हैं क्योंकि मैं तो बाल्टी में भरे पानी से भी नहा लूँगा।” तो नाश्ता लाने के लिए जाते-जाते बोली,‌”नल की धार और ताज़े पानी में नहाने का तो मुकाबला ही नहीं, लेकिन तुम्हारी जैसी मर्ज़ी।”

यह सुन कर केवल पजामे में ही मेरा मुन्ना (मेरा लौड़ा) फिर हरकत करने को तैयार होने लगा, और मुझे काफी जोर लगा उसे काबू में करने में। नाश्ता करते-करते मैंने चित्रा को बताया, कि पापा कुछ दिनों से बाथरूम का बाहर बालकनी की तरफ वाला दरवाज़ा ठीक करवाना चाहते हैं, क्योंकि उसमें दरारें पड़ गयी हैं और कोई बद्तमीज़ नौकर या कामवाली अंदर नहाने वाले को झाँक कर नंगा नहाते हुए देख सकते हैं। “हाय राम !” वोह बोली, “तब तो मुझे भी थोड़ा केयरफुल रहना होगा।”

मैं: क्यों, आप को घबराने की क्या ज़रुरत है? इस समय यहां मेरे सिवा कोई भी नहीं है, और फिर आप सिर्फ नहाती ही तो हैं! “चल हट बदमाश! कपड़े तो उतार के ही नहाती हूँ ना, कहीं तूने कुछ झाँका-देखा तो नहीं?”

और हम दोनों बस हंस पड़े और नाश्ता करने लगे। मैंने बात को थोड़ा और मज़ेदार रखने के लिए पूछ ही लिया, “लेकिन आपको बाल्टी के पानी से नहाना क्यों नहीं अच्छा लगता ?” तो चित्रा मेरी तरफ देख कर और मुस्कुरा के बोली “बताया तो, बदन पर मग से पानी डालो या फिर पानी नल की धार से गिरे, दोनों में ज़मीन आसमान का फर्क होता है। तुम बाल्टी में भरे पानी से नहाने वाले लड़के लोग क्या जानो?”

मैंने पूछना तो चाहा कि बदन पर पानी गिरने में भी लड़के और लड़की का फर्क बीच में कैसे आ गया, पर आज के लिए कुछ ज़्यादा ही हो जाएगा, यह सोच कर चुप रह गया। खुश इसलिए था, कि हम लोग एक-दूसरे के साथ कुछ और खुल कर बात करने को तैयार होते तो दिख रहे थे।

नाश्ता ख़त्म होने के बाद भी बाथरूम में पानी अभी आ रहा था, और मेरे मुन्ना मास्टर लौड़े ने भी कच्छे में अपने आप पर थोड़ा काबू कर लिया था जब मैं नहाने गया। पर मुझे उम्मीद थी कि चित्रा के मन में ज़रूर इच्छा है कुछ भी मेरे साथ करने की, और वो भी एक बार झाँकेगी तो ज़रूर।

नहाने जाते-जाते मैं बोला, “मैं चला नहाने और आप भी ताक-झाँक मत करियेगा” तो जवाब मिला “तुम फ़िक्र मत करो और आराम से नहा लो। मुझे ताक-झाँक करने में कोई भी दिलचस्पी नहीं है, मैं तो अगर कुछ देखना होता है तो खुलेआम देख लेती हूँ। सब को यही करना भी चाहिए।” मैं बोला, “कि अगर कुछ भी दिखाने की इच्छा हो, तो भी बिना हिचक बस खुल्लम-खुल्ला दिखा ही देना चाहिए” और हम दोनों फिर हंस पड़े और मैं नहाने चल दिया।

बाथरूम में कपड़े उतारते समय एक आँख बालकोनी की साइड वाले दरवाज़े की दरार पर थी, यह जानने के लिए की कब उसमें से आ रही रौशनी भी कम हो तो पता चल जाए कि चित्रा ने वहां से देखने की कोशिश की थी। पापा-मम्मी के आने में तो अभी कम से कम दो घंटे थे। तो आराम से कपड़े उतार के नंगा बाल्टी के सामने पटले पर बैठ कर मग से अपने ऊपर पानी ऐसे डालना चालू किया, कि बाहर कमरे में डाइनिंग टेबल तक पानी गिरने की आवाज़ जा सके। मैं बदन को भिगो कर साबुन लेने उठा ही था, कि चित्रा ने बाहर से पूछा कि, “चाचा-चाची कब तक आएंगे?”

मैंने बताया कि, “उन्हें अभी और दो घंटे लगने वाले हैं”, तो चित्रा बोली “ठीक है, मैं अपने कमरे में जा रही हूँ ” और फिर कुर्सी खिसकने की आवाज़ आई। सोचा कि उसकी ताक-झाँक ना करने वाली बात शायद ठीक ही होगी, मगर तभी लगा कि दरवाज़े की दरार पे रोशनी बंद हुई थी।

दिमाग में “चित्रा आ गयी” का मैसेज पहुँच गया, और जो कुछ भी मैंने चित्रा के बारे में सोचा था, सब सही साबित होने लगा। मेरा प्यारा लौड़ा (जिसको मैं प्यार से मुन्ना और चित्रा की चूत को मुनिया कहूंगा आगे से) चित्रा को सलाम करने को खड़ा था, लेकिन उसको दिख नहीं रहा होगा क्योंकि दरवाज़ा तो मेरे बायीं तरफ था।

मैंने तुरंत साबुन लौड़े और टांगों पर लगाया, और वहीं खड़ा होकर खड़े लौड़े और बॉल्स को अच्छी तरह मला, जिससे बाहर से झांकती हुई चित्रा मेरे लौड़े और बॉल्स को अच्छे से देख सके। मग में पानी लेकर लौड़े को और अपनी झांटों को धोया, और फिर इत्मीनान से धीरे-धीरे सुपाड़े को खोला और बंद किया।

दरवाज़े की दरार से रोशनी ना आने का मतलब साफ़ था कि चित्रा खूब अच्छी तरह आँख दरार पर लगा कर ध्यान से देख रही थी मेरी सब हरकतों को। अच्छा मौक़ा था चित्रा को दिखाने का कि मुझे भी नहाते समय मुठ मारने में मज़ा आता था। लौड़े के सुपाड़े को देखने की जगह के पास ले जाकर आराम से धीरे-धीरे फोरस्किन को खोल-बंद करके और बॉल्स को सहला-सहला कर जो मैंने मुठ मारी, तो क्लाइमेक्स पर एक मोटी बूँद दरवाज़े से देखने वाले छेद के ठीक नीचे जाकर चिपकी।

चित्रा ने सब-कुछ अपनी आँख को दरवाज़े के छेद पर लगाए हुए देखा। सोच रहा था कि चित्रा भी अपनी पैंटी नीचे गिरा कर खूब चूत रगड़ रही होगी, और मम्मे दबाये होंगे मुझे नंगा लौड़ा हिलाते देखते हुए, और बाथरूम से बहार आकर उसकी शकल देख कर पता चल जाएगा, और कान लाल भी तो ज़रूर हो गए होंगे।

सब कुछ सही निकला मगर मैंने ठान लिया था, कि पहल भी उसको ही करने दूंगा मामला आगे बढ़ाने में, क्योंकि यह भी तो पता करना था, कि एक चालू लड़की क्या करती होगी अपने से छोटे कजिन भाई के साथ मस्ती करने के लिए, उसे पटाने के लिए।

मैंने जान बूझ कर उस दिन थोड़ा ढीला कच्छा पहना जिससे दो बातें हो सकें। एक तो यह कि जब ज़रुरत हो तब आसानी से जेब में हाथ डाल कर मुन्ने को पकड़ या सहला सकूं या काबू में ला सकूं, और दूसरा ये कि अगर चित्रा आज ही कुछ कर डालने के मूड में आ गयी हो, तो वोह आसानी से लौड़े को मेरी पैंट के ऊपर से ही टटोल सके।

बाथरूम से बाहर आया तो ज़ाहिर है, चित्रा वहां नहीं थी क्योंकि अपने कमरे में जाने वाली बात तो वो कर ही चुकी थी। समझ में आ गया की यही था उसके चालू होने का सबूत। सोच रहा था कि मैंने तो चित्रा को अपनी चूत पर पानी गिराते हुए और मम्मे सहला कर चूची मसलते देख दो बार मुठ मारी थी, तो उसने मुझे नंगा और लौड़े से खेलते देख कर जाने क्या-क्या मस्ती की होगी अपने बदन और चूत से?

आगे की कहानी अगले भाग में।