चित्रा और मैं-3

ड्राइंग रूम में दीवान पर चित्रा की पढ़ाई के लिए छोटी टांग वाली एक स्टडी डेस्क रक्खी रहती थी, और वहीं वो या तो अल्थी-पालथी मार के या फिर कभी एक टांग नीचे लटका के पढ़ने के लिए बैठती थी। दीवान और चित्रा के ठीक सामने रखी कुर्सी पर बैठ कर मैं पढ़ाई करता था। उस दिन भी वो वहीं बैठी थी एक टांग नीचे करके, और लग रहा था कि बड़े ध्यान से कुछ लिख रही थी।

हाँ, उसके कान लाल तो थे ही, और चेहरे पर साफ़ दिखाई दे रहा था कि उसकी धड़कन अभी तक थोड़ी तेज़ ही थी। मेरा भी लौड़ा चित्रा को उस हालत में देख कर काफ़ी फूल सा गया, और इससे पहले कि वह खड़ा होकर तम्बू बनाये, मैं भी चुप-चाप अपनी कुर्सी पर बैठ गया।

पढ़ाई का तो मेरा मन था नहीं, तो मैं अपने ख्यालों में डूब गया। सोच रहा था कि लड़कियों के कितने मज़े होते हैं। पहली बात, लौड़ा ना होने की वजह से चाहे कितनी भी मस्ती में क्यूं ना हों, सामने वाले को कुछ पता नहीं चलता, दूसरे दो मम्में और चूचियां भी तो हैं जिन पर जब चाहे हाथ फेर कर भी मस्ती ले सकती हैं, और चूची चुसवाने में तो उन्हें बहुत मज़ा आता ही होगा। चूत तो है ही बड़े काम की चीज़।

मेरे तो इन ख्यालों से ही लौड़े पर असर होने लगा था, और यह चाहते हुए कि चित्रा मेरी पैंट को हल्का सा उठते हुए भांप तो ले, कुर्सी पर धीरे से अपने आप को एडजस्ट कर रहा था। 18 भी क्या उम्र होती है, बाथरूम में मुठ मारने के बाद भी प्यारे मुन्ने को चैन ना था, और मुझे मालूम था कि चित्रा चाहे कितनी भी पढ़ने का नाटक कर रही हो, पर उसकी चूत तो मुझे बाथरूम में नंगा देख कर गीली ज़रूर हो गयी होगी।

पर मैंने तो सोच ही लिया था कि पहल वो ही करे तो ठीक था, इसलिए भी कि अगर वो पहले कुछ करेगी तो हरगिज़ मेरी शिकायत तो कर ही नहीं सकती।

मेरी सोच इस बार फिर सच निकली।

जब चित्रा ने अपनी नीचे लटक रही टांग को पल भर के लिए उठा कर दीवान पर रखा, और दोनों घुटने आपस में मिला कर फिर अलग किये तो उसकी स्कर्ट थोड़ी जांघ पर ऊपर हुई, और यह साफ़ नज़र आया कि उसने एक टाइट सफ़ेद पैंटी पहनी थी, जो कि उसकी चूत (या प्यारी मुनिया) की दरार में घुसी थी, और काली झांटें पैंटी की दोनों साइड से निकली हुई भी दिख रही हैं।

मैंने यह पूरी हरकत बिना हिले देख ली थी। और उसने शायद यह जान-बूझ कर किया था। लग रहा था कि चित्रा ने मुझे दिखाने के लिए ही एक बार अपनी टांग उठाई और फिर वापस नीचे रख ली। उसकी पहल करने की यही पहली हरकत थी।

मैंने भी अपनी एक टांग आहिस्ता से उठा कर कुर्सी पर रखी, जिससे कि ध्यान से देखने वाले को यह महसूस हो सके कि ढ़ीले कच्छे में पैंट के अंदर झटका मारता लौड़ा बहुत खुश हो रहा था।

हम दोनों ने एक-दूसरे से कुछ बोले बिना और एक-दूसरे की तरफ देखे बिना ही आपस में बहुत कुछ कह दिया था। और दोनों ही एक दूसरे की तरफ देखे बिना हल्का-हल्का मुस्कुरा रहे थे। ज़रूर चित्रा भी अपनी अगली हरकत प्लान मन ही मन कर रही थी।

थोड़ी और देर पढ़ाई का नाटक करने के बाद अचानक चित्रा ने अपनी नोटबुक बंद की और दीवान से उठ कर मुझसे बोली “मेरा चाय पीने का मन हो रहा है, तुम भी पियोगे? मैं बना के लाऊंगी।”

मैंने भी हामी भर दी। वहीं ड्राइंग रूम में चाय की चुस्की लेते हुए चित्रा मेरे पास वाली कुर्सी पर बैठ गयी और बोली “यार तुम तो स्कूल चले जाते हो रोज़ और घर में चाची और मैं रह जाते हैं। कितनी पढ़ाई करूँ? और सच तो यह है कि मुझे तो बस पास होना है किसी तरह। फिर दो चार साल में शादी कर लूंगी किसी अच्छी कमाई करने वाले लड़के से और सेट हो जाऊंगी।

बहुत बोर होती हूँ अकेली यहाँ घर पर तुम्हारे स्कूल चले जाने के बाद। यहाँ कोई दोस्त भी तो नहीं है आस-पास में, समझ नहीं आता कि दिन कैसे काटूँ?” तो मैंने पूछा “आप अपने घर पर खाली समय में क्या करती थीं?” वोह बोली कि “वहां अपनी बहनों और सहेलियों से गप लड़ाती थी, या उनके साथ घूमने निकल जाती थी।” मैंने कहा कि ‘यह समस्या तो है, लेकिन इसमें मैं क्या मदद करूं?”

चित्रा बोली कि “वह सोच के बताएगी और पूछा कि मैं स्कूल मे़ अपने दोस्तों के साथ किस टॉपिक पर अक्सर बातें करता हूँ?” अब मेरी बारी थी सोच में पड़ने की, लेकिन बहुत हिम्मत करके बोल ही पड़ा मैं: “हम लड़के लोग तो ज़्यादातर कुछ एडल्ट टॉपिक्स पर बातें ही करते हैं, या फिर कभी क्रिकेट, टेनिस या फुटबॉल के मैच चल रहे होते हैं तो उनके बारे में बातें होती हैं।”

साफ़ दिखाई दे रहा था कि चित्रा की आँखों में मेरे जवाब से अचानक एक चमक सी आ गयी थी। उसने अपनी कुर्सी थोड़ी मेरे पास खिसकाते हुए कहा “थोड़ा खुल कर बताओ ना-एडल्ट टॉपिक्स पर बातें मतलब? क्या बताते या पूछते हो?” मैंने टालते हुए कहा “में आपको ऐसी-वैसी बातें जो मेरे दोस्त लोग करते हैं कैसे बताऊँ?आप कहीं मुझसे पूछ कर मेरे बताने से मम्मी से मेरी शिकायत तो नहीं कर दोगी?”

चित्रा काफ़ी मिन्नतें सी करती हुई बोली “यार तुम तो मुझे अभी ठीक से पहचाने ही नहीं हो। एडल्ट टॉपिक्स पर तो मैं और मेरी फ्रेंड्स भी बातें करते हैं और उस तरह की बातों में ही तो मन लगा रहता है ना। अब मैं चाची से तो ये सब बातें कर नहीं सकती, और बचे एक तुम।

और फिर तुम हो भी तो इतने हैंडसम और थोड़े से दुष्ट भी, तुम भी नहीं बताओगे तो मैं कहाँ जाउंगी? तुमसे मिलते ही मुझे तो लगने लगा था कि यहां तुम्हारे साथ मज़े से यह बोर्ड एग्जाम तक का टाइम कट जाएगा, और तुम्हें तो लग रहा है कि मैं तुम्हारी शिकायत कर दूँगी ”

चित्रा ने रुआंसी सी शक्ल बना कर बोला। मुझे उस पर तरस आ गया और सबसे ज़्यादा मज़ा तो यह सुन कर आया था कि उसे भी एडल्ट और उस तरह की बातों में ही तो मज़ा आता था।

मैंने खड़ा हो कर एक हाथ चित्रा के कंधे पर रख के बोला “आप यहां थोड़े दिन के लिए ही आई हो, मुझसे बड़ी हो, और मैं आपको खुश ही देखना चाहता हूँ। और आप खुद ही कह रही हो कि मेरी शिकायत नहीं करोगी तो मैंने मान लिया।

लेकिन एडल्ट टॉपिक्स जैसी बातों में तो कुछ ऐसे वैसे शब्दों का भी इस्तेमाल होता है, वह सब मैं कैसे बोलूंगा? और आजकल तो लेटेस्ट एक मस्तराम नाम के लेखक की किताबें भी आ गयी हैं जिनमे सब कुछ खुल्लम-खुल्ला लिखा रहता है, ऐसा मैंने अपने दोस्तों से सुना है।”

चित्रा का चेहरा मेरी बातें सुन कर एक-दम रिलैक्स हो गया। वो बोली “हाँ! मस्तराम की किताबों के बारे में तो मेरी फ्रेंड्स भी खुसर-पुसर करती हैं। और तुम पूछ रहे हो ऐसे-वैसे शब्द कैसे बोलूंगा, है ना? रोज़ तो हम सब बार-बार और चाहे कोई भी बात पे चाचा से ‘बुरचोद’ ये या ‘माचोद’ सुनते हैं ना?

जैसे कि यह बोलने में या सुनने में कोई बिग डील नहीं है? या जब गुस्से में होते हैं तो ‘माँ-चोद’ या ‘बैन-चोद’ भी सुनने में आता है ना? बस चाची और मैं या तुम और हमारे माँ-बाप हमारे सामने साफ़-साफ़ आपस की बातों में बुर, चूत, लौड़ा, लंड, झांट, भोंसड़ा, गांड, और साफ़ लफ़्ज़ों में मादर-चोद या बे्हन-चोद नहीं बोलते हैं।

लेकिन कभी सोचा है, इसीलिये तुम और तुम्हारे दोस्त या मैं और मेरी सहेलियां आपस में कुछ भी कहने में झिझकते नहीं हैं? हम और तुम भी बेझिझक एक दूसरे से इन सब तरह की बातें करें अकेले में तो क्या प्रॉब्लम है? और बोलूं ? कोई पर्दा भी नहीं रहेगा मेरी तरफ से हमारे बीच, और मैंने भी मस्तराम के बारे में सुना है, मुझे भी वो किताबें पढ़नी हैं बस अकेले में तुम्हारे साथ।

मुझे तो ज़रा भी शर्म या झिझक नहीं हुई तुमसे यह कहने में। हम सब फ्रेंड्स भी आपस में कभी कभी ‘चूतिया मत बना यार’ जैसी बातें भी करती हैं। मैं अपनी क्लास में कई लड़कियों को जानती हूँ जो अपने बॉय-फ्रेंड्स से रेगुलरली अपने या उनके घर पर रोज़ मौज-मस्ती भी करती हैं।

फिर क्या तुम्हारी क्लास में ऐसे लड़के नहीं है जिन्होंने कई लड़कियों को फंसा रखा है? मैंने तो अपने मन की सारी बात तुमसे कह दी, अब आगे तुम्हारी मर्ज़ी।”

यह सब चित्रा के मुँह से सुन कर मेरी कुछ देर के लिए तो बोलती ही बंद हो गयी और मैं भौंचक्का उनको बस देखता रह गया। चित्रा खिलखिला कर ज़ोर से हंसी और फिर उसने खड़े होकर अपनी बाहें खोली और मुझ से चिपक कर खूब मेरे चेहरे को किस किया और बोली “बड़े भोले हो यार तुम, ठीक तो हो ना, और अब तुम्हें क्या कहना है?”

मैंने बड़ी सी मुस्कराहट के साथ फिर उन्हें गले लगाया और इस बार मैंने उन्हें सारे चेहरे पर किस करते हुए कहा “चित्रा बहन यू आर द बेस्ट इन द वर्ल्ड”, और दोनों पास पास की कुर्सियों पर बैठ गए।

इतना सब कुछ इतनी जल्दी हम दोनों के साथ हो गया था कि दोनों की साँस में साँस आने में समय लगा। इससे पहले कि हम और कुछ बात करते दरवाज़े की घंटी बजी। मैंने जाकर देखा तो पड़ोस वाली आंटी आयी थीं यह बताने कि उनके घर में फ़ोन करके मेरे पापा ने उनको बताया है कि वो लोग रात को डिनर के बाद तक ही आएंगे, और चित्रा और में उनके आने का इंतज़ार तब तक ना करें।

हम वापस आ कर बैठ गए, लेकिन पहले से कहीं ज्यादा रिलैक्स्ड थे, और खूब सारी बातें करने के मूड में थे। इस बार मैं पहले बोला “चित्रा बहन आपको—” मेरा इतना कहना था कि चित्रा मेरी बात काटते बोल पड़ी “ये क्या आप-आप लगा रखी है तुमने? बंद करो ये फॉर्मेलिटी और मुझे चित्रा या ‘तुम’ ही बुलाया करो ” “ओके” मैं बोला, “यह बताना चाहता था कि आज मैंने तुम्हें बाथरूम के दरवाज़े की दरार से झाँक कर नंगा नहाते हुए देखा था।”

वह हंसी और बोली “अच्छा तो बताओ क्या देखा तुमने?” मैंने कहा “तुम तो बहुत ही अनोखे तरीके से मास्टरबेट कर रही थीं यार, बिल्कुल बिना हाथ लगाए अपनी चूत को, नहाने के बहाने बाथरूम में बैठी। कैसे सीखा ये तरीका?” “अरे ये तो बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद वाली बात है तुम लड़कों के लिए।

चूत में जो सही जगह नल से पानी की धार गिराने में मज़ा आता है और कितनी देर तक आता रहता है इसका अंदाज़ तो सिर्फ खुद लड़की या फिर उसको बेहद प्यार करने वाला और मज़ा दिलाने में ही मज़ा लेने वाला लड़का ही जान सकता है” चित्रा ने मुझे समझाया।

“ओह्ह्ह्ह यह तो मुझे भी तुमसे सीखना पड़ेगा, सिखाओगी ना?” मैंने कहा। “ओके” चित्रा बोली “लेकिन पहले ज़रा खड़े होकर मेरे सामने तो आओ। और ये जान लो की मैंने भी उसी दरार से तुम्हें भी नंगा और लौड़े पर साबुन लगाते हुए भी देखा है। और जैसे मैंने कहा था, अब सब कुछ खुल्लम-खुल्ला भी देखने वाली हूँ।” मैं तो हैरान था कि चित्रा ने यह सब कुछ कह भी दिया बिना किसी संकोच के, और मुझसे कहलवा भी लिया, जैसे रिहर्सल करके ही आयी हो यहाँ।

मैं जा खड़ा हुआ उसके सामने तो चित्रा ने पहले मेरे कंधे पर हाथ रख कर मेरे होठों पर किस किया। फिर अपना चेहरा हटा कर बोली “कैसा लगा?” मेरा तो सर चकरा सा गया था! मैंने बिना कुछ बोले उसे ठीक उसकी तरह बस किस कर लिया फिरसे। “ओह, इसका मतलब अच्छा लगा तुम्हें। पता है, मैंने पहली बार किसी को होठों पर चूमा है?” मैंने भी अपना हाथ खड़ा करके कहा “मेरी भी पहली किस थी यह।” “चाचा और चाची तो डिनर तक आएंगे, तब तक और खुल्लम-खुल्ला मस्ती करें?” चित्रा ने पूछा।

मैंने हिम्मत करके जवाब में चित्रा की कमर में हाथ डाल कर उसे अपने पास खींचा, और उसके एक मम्मे पर अपना हाथ रख दिया। फुल मज़े लेने के मूड में चित्रा ने खुद ही मेरा दूसरा हाथ अपने दूसरे मम्मे पर रखते हुए बोली “लो दबा लो इन्हें मेरे मम्मों को।” मैंने उन्हें दबाया तो लौड़े पर असर होना ही था, तो मेरी पैंट पर तम्बू बनते हुए उसने देखा, और मेरी पैंट और ढीली चड्डी उतार दी। और मुझसे मेरी शर्ट और बनियान भी उतरवा दी।

आगे की कहानी अगले पार्ट में।

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