अजब गांडू की गजब कहानी-27

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पिछली रात की चुदाई के बाद राज सुबह देर से उठा। युग फार्म पर जा चुका था। दिन में राज और चित्रा की एक चुदाई और हो गयी। फिर जब राज ने चित्रा से उसका और अंकल का बाथरूम में जा कर मजे करने के बारे में पूछा तो चित्रा राज को वो सब करके दिखाने के लिए बाथरूम में ही ले गयी।

अब आगे

— चित्रा और राज टॉयलेट में

चित्रा की हंसी रुक ही नहीं रही थी। चित्रा हंसते-हंसते बोली,”मेरी चूत के गुलाम, अब ध्यान से सुन। मेरा पहला हुकुम ये है कि जब मैं टॉयलेट सीट पर बैठ कर मूतूंगी तो तुम मेरी चूत को अपनी हाथ की हथेली से थपथपाना। एक तो गरम-गरम मूत जब तुम्हारे हाथ पर गिरेगा, उसका और साथ ही मेरी चूत में से मूत निकलते हुए जो छप छप छप छप की आवाज आएगी, वो सुनना और मजे लेना।”

चित्रा टॉयलेट सीट पर बैठ गयी। मैं चित्र के पास खड़ा हो गया। मेरा लंड बिल्कुल चित्रा के मुंह के आगे था। चित्र ने मेरा लंड पकड़ा और मुंह में लेते हुए बोली, “अब कहीं मेरे मुंह में मत मूत देना, ये इस कार्यक्रम का हिस्सा नहीं है।” ये कहते हुए चित्रा हंस दी।

मैंने भी हंसते हुए कहा, “ठीक है, अच्छा हुआ तुमने बता दिया, वरना मैं तो सोच रहा था मुंह में मूतना है।” चित्रा ने प्यार से मेरे चूतड़ों पर एक धप्प जमा दिया।

चित्रा ने कुछ देर मेरा लंड चूसा, और फिर लंड मुंह में से निकाल कर बोली, “चलो राज, तैयार हो जाओ पहले एक्शन के लिए, मूत निकलने लगा है मेरी फुद्दी में से।”

चित्रा के मुंह से फुद्दी सुनने में बड़ा मजा सा आता था।

मैं झुक गया और अपने हाथ की चारों उंगलियां जोड़ कर चित्रा की चूत पर रख दी। चार पांच सेकण्ड के बाद ही चित्रा की चूत में से मूत की गर्म-गर्म धार निकली और मैंने अपनी उंगलियों से चूत को थपथपाना शुरू कर दिया। गरम-गरम मूत जो हाथ पर गिर रहा था, वो तो मस्त कर ही रहा था, हाथ के थपथपाने से चूत में से आती छप छप छप छप की आवाज, एक संगीत की तरह लग रही थी, और मस्ती को और बढ़ा रही थी।

अभी आधा मिनट भी नहीं हुआ था, कि चित्रा की चूत से मूत निकलना बंद हो गया। मैंने चित्रा की तरफ देखा, चित्रा मेरी आंखो से ही ये समझ गयी कि मैं पूछ रहा हूं क्या हुआ, मूतना क्यों बंद कर दिया?

चित्रा बोली, “बाथरूम में होने वाला एक एक्शन खत्म, अब एक्शन नंबर दो चालू होगा। आज के लिए ये दो एक्शन ही करेंगे। बाकी के एक्शन कर लिए तो नहाना पड़ेगा। वैसे भी ये दो एक्शन करने के बाद मूत ही नहीं आएगा।”

ये बोल कर चित्रा फिर हंस दी। चित्रा की हंसी से लग रहा था चित्रा इन बाथरूम वाले मूतन-मुताई वाले कामों को खूब एन्जॉय करती है। चित्रा बोली, “अब जरा ध्यान से सुनना पडेग़ा राज।”

ये कह कर चित्रा फिर हंसी और बोली, “तुम बैठ जाओ टॉयलेट सीट पर, बाकी का काम मुझे करना है।”

मेरे दिल में यही ख्याल आया कि क्या चित्रा मेरे ऊपर मूतेगी? फिर ध्यान आया कि लड़की अगर खड़े-खड़े मूते तो उसका मूत सीधा सामने की तरफ ना जा कर नीचे टांगों की तरफ जाना शुरू हो जाता है। तो क्या करने वाली है चित्रा? मैंने फिर सोचा चलो देखते हैं, मेरे लिए तो ये सारा चक्कर ही नया और अजीब था। और मैं टॉयलेट सीट पर बैठ गया।

चित्रा आयी और मेरा आधा खड़ा लंड पकड़ कर ऊपर की तरफ किया, और अपनी टांगें मेरे दोनों तरफ करके अपने चूत मेरे लंड से सटा कर बैठ गयी। चित्रा का मुंह मेरे मुंह के सामने था। चित्रा की चूत मेरे टट्टों को छू रही थी, और मेरा लंड सीधा ऊपर की तरफ उठा हुआ। चित्रा की चूत के ऊपरी हिस्से को छू रहा था।

ठीक से बैठने के बाद चित्रा ने मेरे लंड को अपने एक हाथ से अपनी चूत के ऊपरी हिस्से के साथ सटा लिया, और मुझे बाहों में लेकर मेरे होंठ अपने होंठो में ले लिए। मैंने भी बाहें पीछे डाल कर चित्रा को पकड़ लिया।

ये सब करने तक हमने मूतना शुरू नहीं किया था। तभी चित्रा ने हूं हूं हूं किया। हम दोनों के होंठ तो एक-दूसरे के होंठो के साथ चिपके हुए थे। इस कारण चित्रा बोल तो पा नहीं रही थी, ये हूं हूं‌ हूं ही अब भाषा थी। मैं समझ गया चित्रा मूतने को कह रही थी।

मैंने भी हूं‌‌ हूं हूं किया और हम दोनों मूतने लग गए।

चित्रा का गरम पेशाब चित्रा की चूत में से निकल कर मेरे टट्टों से होता हुआ नीचे की तरफ जा रहा था। उधर मेरा पेशाब चित्रा और उसकी चूत और मेरे अपने लंड के आस पास फ़ैल रहा था। मैं बस यही सोच रहा था क्या-क्या करती है चित्रा और क्या क्या करते हैं अंकल।

इस बार ना चित्रा ने मुझे पेशाब रोकने के लिए कहा, ना ही उसने अपना पेशाब रोका। पूरा मूतने के बाद चित्रा ने अपने होंठ मेरे होंठों से हटाए और हंसते हुए बोली, “कहो राज कैसा मजा आया?”

मैंने चित्रा की इस बात का जवाब दिए बिना कहा, “अब? और कुछ बाकी है क्या?”

चित्रा बोली, “है तो सही, मगर वो किसी और दिन करेंगे। अभी तो बताया था, वो करने के बाद हम दोनों को ही नहाना पड़ेगा। वैसे भी एक दिन में मैं और अंकल बाथरूम में इतने सारे काम नहीं करते, मूत ही आना बंद हो जाता है।”

मैंने कहा, “चलो ठीक है, फिर किसी दिन सही, पर ये तो बता दो करते क्या हो तुम लोग?”

चित्रा की हंसी थी कि रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। चित्रा वैसे ही हंसते हुए बोली, “राज अंकल मुझे टॉयलेट सीट पर बिठा कर मेरी चूचियां…”, चित्रा ये बोलते बोलते रुक गयी और खिलखिला कर हंसते हुए बोली, “चूचियां क्या, अब तो अंकल ने दबा-दबा अच्छे खासे मम्मे बना दिए हैं, चूचियां तो तब थी जब तुम लखनऊ हमारे घर आया करते थे और किसी कमरे के कोने में मुझे पकड़ कर मेरी छोटे-छोटी नयी-नयी जवान होती चूचियां दबाया करते थे।”

चित्रा की इस बात पर मुझे भी लखनऊ के वो दिन याद आ गए जब मैं और चित्रा अभी जवान हो ही रहे थे। मुझे भी हंसी आ गयी और मैं बोला, “चित्रा वो भी क्या दिन थे।”

चित्रा ने मेरी इस बात का कोइ जवाब नहीं दिया, और बात जारी रखते हुए बोली, “अंकल मेरा मम्मा पकड़ कर मम्मे के निप्पल के साथ अपना लंड सटा देते हैं और मूतना शुरू कर देते हैं। अंकल का गर्म गर्म मूत मम्मे के ऊपर से बहता हुआ नीचे मेरी चूत की तरफ चला जाता है। ये करते हुए अंकल आआह चित्रा आआह चित्रा ही बोलते रहते हैं।”

मैंने बस इतना ही कहा, “हद्द ही है।”

चित्रा तो हंस ही रही थी। हंसते-हंसते बोली, “चलो अब एक आखरी हद्द भी सुन लो, वो और भी मजेदार है।”

हंसी तो मेरी भी नहीं रुक रही थी। मैंने भी कह दिया, “वो भी सुना ही डालो मेरी सरकार।”

चित्रा बोली, “अंकल मुझे हाथ धोने वाले सिंक पर झुका कर खड़ा कर देते हैं और मेरी टांगें फैला कर पहले तो बैठ कर मेरे चूतड़ों का छेद चाटते हैं। फिर अंकल खड़े हो कर अपना लंड मेरे चूतड़ों के छेद के साथ सटा कर मूतना शुरू कर देते हैं। अंकल ने लंड छेद में डाला हुआ नहीं होता, खाली छेद पर रक्खा हुआ होता है। अंकल का गर्म मूत चूतड़ों के छेद से नीचे चूत के तरफ बहने लगता है और टांगों से होता हुआ नीचे चला जाता है।”

“मुझे तो मजा आता है क्योंकि अंकल के लंड से निकलती मूत की गर्म-गर्म धार मेरे चूतड़ों पर गिर कर चूत से होती हुई टांगों पर बहती जाती है। अंकल को ऐसे मूतने में पता नहीं क्या मजा आता है। जितनी देर तक उनके लंड से मूत निकलता रहता है वो ‘आआआह मजा आ गया आअह मजा आ गया’, बोलते रहते हैं।”

“इन आखिर की दो मूतने वाले एक्शन करने के बाद मैं और अंकल इकट्ठे ही नहाते हैं। अब इस इकट्ठे नहाने में भी एक एक्शन होता है।” ये कह कर चित्रा चुप हो गयी।

मैंने वैसे ही हंसते हुए पूछा, “नहाने में एक्शन? अब वो एक्शन भी बता ही डालो।”

चित्रा बोली, “इसमें ये होता है कि मैं और अंकल इकट्ठे नहाते हैं हुए हंसते-हंसते एक-दूसरे की चूत और गांड में खूब उंगली बाजी करते हैं। लंड चूतड़ों के साथ खूब खिलवाड़ होता है। नहाने के बाद एक-दूसरे को तौलिये से सुखाते हैं। इस तरह हमारा उस दिन का बाथरूम का काम खत्म हो जाता है।”

इतना बोल कर चित्रा चुप हो गयी और मेरी तरफ देखने लगी।

मेरा तो सर ही चकरा रहा था। वहीं एक ही सवाल घूम-घूम कर दिमाग में आता जा रहा था, “अंकल अपने बेटे की बीवी के साथ ये सब कैसे कर लेते हैं? और चित्रा? चित्रा भी ये सब अंकल के साथ कैसे कर पाती है?”

मैं पहले भी ये सवाल चित्रा से बहुत बार पूछ चुका था। मैंने फिर वही सवाल चित्रा से पूछा, “चित्रा, एक बात बताओ, जब अंकल ये सब तुम्हारे साथ ये सब करते हैं, तो क्या तुम्हें अजीब नहीं लगता? आखिर को तुम्हारा आपसी रिश्ता वैसा भी तो नहीं।”

चित्रा का जवाब सुलझा हुआ था, “राज, मेरे और अंकल के बीच का रिश्ता तो तभी बदल गया था जब चाची ने मुझे चुदाई करवाने अंकल के कमरे में भेजा था। अब हम दोनों में अगर कोइ फर्क है भी तो वो उम्र का है, बस। वर्ना बाकी तो सब कुछ वही और वैसा ही हो रहा है जैसा एक मर्द और औरत के बीच होता है जब वो चुदाई करते हैं। तुम ही बताओ राज, जब अंकल का लंड एक बार मेरी चूत में चला ही गया तो फिर बाकी बचा ही क्या?”

चित्रा मेरे हाथ पकड़ कर बोली, “राज, मजे लेने और मजे देने वाली सारी बीवियां और उनके मर्द ये सब करते ही होंगे। अंकल के साथ उन दो, ढाई तीन घंटों में मैं उनकी बीवी ही होती हूं। तुम बताओ, मैं उन घंटों का पूरा मजा क्यों ना लूं?”

फिर हंसते हुए बोली, “चलो अब नहा कर फ्रेश हो जाते हैं, आज के लिए बहुत हो गया। जब भी मौक़ा मिलेगा तो बाकी के दो काम भी करेंगे।”

हम बाथरूम से इकट्ठे नहा कर वापस ड्राईंग रूम मैं आ गये। बाथरूम वाला सीन तो सच में सोने पर सुहागा ही था। मैंने सोचा अगर पारुल या तबस्सुम का फोन आया तो ये सीन उन्हें भी बताऊंगा।

— युग के साथ शाम

ठीक चार बजे युग आ गया। आते ही बोला, “क्या बात है राज, बड़ा लेट उठा यार तू। मैं तैयार हो कर आधा घंटा तेरे उठने का इंतजार करता रहा, फिर फार्म चला गया। पापा पूछ रहे थे तेरे बारे में। मैंने कह दिया रात बातें करते-करते लेट हो गए इसलिए तो देर तक सोता रहा।”

मैंने युग की इस बात का कोइ जवाब नहीं दिया। इतने में चित्रा एक फर्माबरदार बीवी की तरह पानी का गिलास ले आयी।

पानी पी कर गिलास चित्रा को पकड़ा कर युग बोला, “चित्रा आज कल फार्म में काम बहुत है। पापा डेयरी का काम बढ़ा रहे हैं। पापा से अब इतना काम होता नहीं, मुझे रुकने के लिए बोल रहे थे। मैंने कह दिया राज आज यहीं है, आज नहीं रुक पाऊंगा। अब कल के बाद दो तीन दिन मेरी ड्यूटी है फार्म पर रहेगी। मैं रुकूंगा वहां।”

चित्रा ने चूत खुजलाई और मेरी तरफ देख कर हल्का सा मुस्कुरा दी।

मैंने कह दिया, “कोइ काम आसान नहीं होता युग और जिमींदारी तो बिल्कुल भी आसान नहीं होती मेरे दोस्त। ऊपर से डेयरी का काम। मेरा क्या है दस दिन बाद फिर आ जाऊंगा। फ़ास्ट फ़ूड रेस्टॉरेंट का काम शुरू होने में तो अभी तीन महीने का वक़्त है।”

युग फिर कुछ सोचते हुए बोला, “अच्छा राज पापा अगले महीने एक हफ्ते या दस दिन के लिए हरियाणा के करनाल और झज्झर जा रहे हैं। वहां से डेयरी के लिए मुर्रा नस्ल की भैसें लानी हैं। उन दिनों तू यहां आजा एक हफ्ते के लिए।”

फिर चित्रा की तरफ देख कर युग बोला, “क्यों चित्रा , ठीक बोला ना मैंने? राज यहां होगा तो मस्ती रहेगी।”

चित्रा बोली, “मैं क्या बोलूं , ये तुम दो दोस्तों के बीच की बातें हैं।” ये कहती हुई, मुस्कुरा कर मेरी तरफ नजर डालती हुई चित्रा चली गयी।

युग बोला, “चल राज मैं फ्रेश हो कर आता हूं, फिर बाजार चलते हैं। रात के लिए कुछ लेकर आएंगे।”

युग बाथरूम गया तो चित्र आ गयी और बोली, “आओगे राज एक हफ्ता यहां रहने के लिए?”

मैंने उल्टा चित्रा से ही पूछा, “तुम क्या कहती हो चित्रा, आऊं?”

चित्रा हंसती हुई बोली, “बिल्कुल आओ, आना ही चाहिए। दो सांड और एक गाय। अंगरेजी में इसको थ्रीसम यानी तिकड़ी की चुदाई बोलते हैं। एक मैं और दो तुम। एक लड़की, दो लड़के। बारी-बारी से चढ़ो और एक-दूसरे के सामने चुदाई करने के मजे लो। जब युग को इसमें कोइ एतराज नहीं तो तुम क्यों इतना सोच रहे हो?”

फिर हंसते-हंसते ही बोली, “मुझे तो लगने लगा है अगर तुम ऑस्ट्रेलिया ना हो कर यहां लखनऊ में होते तो युग ने तो मेरी सुहागरात तुम्हारे साथ ही मनवा देनी थी, वो भी अपने सामने।”

मैने कहा, “चलो देखते हैं क्या प्रोग्राम बनता है। चित्रा मैं तुम्हें अपना फोन नंबर देता जाऊंगा। मुझे फोन करती रहा करना। वैसे युग के पास मेरा नंबर है।”

चित्रा ने हां में सर हिलाया और चली गयी।

— राज और युग बाराबंकी बाजार में

कुछ ही मिनट के बाद युग आ गया और बोला, “चलो राज।”

मार्किट घूमते-घूमते एक घंटा हो गया। कई पुराने साथी मिले। फिर युग बोला, “राज रात को क्या खाना है?”

मैंने कहा, “जुनैद की मछली लेते है। उसकी फिश फ्राई बड़ी मशहूर है – पापा की फेवरेट है। उसका कोइ जवाब नहीं।”

मुझे तो पता ही था अंकल रोज व्हिस्की पीते हैं, मैंने ऐसी ही पूछ लिया, “और दारू पड़ी है घर पर?”

युग हंसते हुए बोला, “दारू की बात मत कर मेरी भाई। दारू की बोतलों से तो अलमारी भरी पड़ी है। तुझे तो पता ही है पापा का। रोज पीनी होती है उनको।

उधर मैं सोच रहा था “साले, अंकल को पीने के बाद तेरी बीवी भी तो चोदनी होती है। जल्दी-जल्दी चित्र की चुदाई के लायक हो जा जिससे चित्रा फिर अंकल के पास ना जाये चुदाई के लिए।”

युग उस दिन बड़ा खुश लग रहा था। ख़ुशी के मारे युग बातें ही बंद नहीं हो रहीं थी। क्या चित्रा की चुदाई कर पाने की खुशी थी? वही होगी। युग के हिसाब से तो चित्रा की पहली बार चुदाई हुई थी। युग के सर से मानो बड़ा बोझ उतर गया था।

— राज और युग पहुंचे घर

घर पहुंच कर युग ने जुनैद के दूकान से लाई तली हुई मच्छी वाला थैला चित्रा को देते हुए कहा, चित्रा जरा गिलास लाना। ये कह कर युग ने अलमारी में से ब्लेंडर्स प्राइड की बोतल निकाली और सोफे पर बैठ गया। चित्रा ट्रे में तीन गिलास, सोडे और अपने लिए पेप्सी ले आई।

युग ने मेरा और अपना पेग बनाया और सोडे गिलासों में डाल दिए। चित्रा ने आपने सामने पड़े गिलास में पेप्सी डाल ली। अभी मैं शुरू ही करने वाला था कि युग ने अपना गिलास उठाया और एक ही सांस में खाली कर दिया।

मैंने कहा, “क्या कर रहा है युग? क्या गाड़ी छूट रही है। आराम आराम से पी। पूरी रात पड़ी है।

चित्रा बोली, “खुशी के मारे पागल हो गया है।”

मैंने पूछा, “किस बात की खुशी?”

चित्रा ने कोइ जवाब नहीं दिया, मगर पता तो हम तीनों को ही था कि युग को किस बात की खुशी थी।

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