घरेलू काम वालियों की चुदाई-1

एक बात बता दूं। अगर किसी ने घर में काम करने वाली बाई को, धोबन को या मोहल्ले में सफाई करने वाली जवान औरत को नहीं चोदा तो उसने ज़िंदगी में कुछ नहीं किया, बस घास ही उखाड़ी है।

ये ज्ञान मुझे पहले नहीं था – मगर अब है।

अब पूछने वाले पूछेंगे कि भई ये तो बताओ, इनके चुदाई में ऐसा भी क्या ख़ास होता है। चूत तो चूत ही होती है – चाहे काम वाली की हो या घरवाली की।

बात इन पूछने वालों की भी ठीक है। मगर यहां सौ बात की एक बात ये है कि शारीरिक मेहनत करने के कारण इनकी मम्मे, चूतड़ और चूत एकदम टाइट होते हैं और चुदाई से पहले या चुदाई के दौरान हमारी शहरी बीवीयों की तरह इनकी चूतें पानी नहीं छोड़ती।

चुदाई के वक़्त लंड इनकी चूत में रगड़ा खा कर जाता है – आआह ….. क्या रगड़ा लगता है लंड को I मजा ही आ जाता है।

दूसरी बात है कि इनके पति इनकी बढ़िया चुदाई नहीं कर पाते। मगर इसमें काम वालियों का कोइ कसूर नहीं। इन कामवालियों के मर्द बेचारे दस बारह घंटे के काम से थके मांदे घर आते हैं खाना खा कर घरवाली के ऊपर सवार हो जाते हैं – पानी छुड़ाते हैं और सो जाते हैं।

घरवाली की चुदाई उनके लिए नींद की गोली खाने की तरह होती है। चुदाई की और सो गए। एक काम की थकान, दूसरी चुदाई की थकान। बढ़िया नींद आती है।

साथ ही इनके पति कालोनियों के ये रेढ़ी, ठेले लगाने वाले, मिस्त्री मज़दूर नशा बहुत करते हैं। बीवियों की पिटाई इनके लिए आम बात है – औरतों की पिटाई इन कालोनियों में मर्दानगी की निशानी समझी जाती है।

यही दो चार कारण है कि इनकी औरतें बढ़िया मर्द, बढ़िया लंड और बढ़िया चुदाई की तलाश में रहती हैं।

उनकी देखा देखी इनकी कुंवारी लडकियां भी उसी लाइन पर चल पड़ती हैं। बढ़िया मर्द, बढ़िया लंड और बढ़िया चुदाई की तलाश में I

अब आते हैं असली किस्से पर कि मुझे ये ज्ञान कैसे हुआ कि अगर किसी ने घर में काम करने वाली बाई को, धोबन को या मोहल्ले में सफाई करने वाली जवान औरत को नहीं चोदा तो उसने ज़िंदगी में कुछ नहीं किया, बस घास ही उखाड़ी है।

दोस्तो मैं हूं अनूप त्रेहन, उम्र 27 साल। दिल्ली के पास फरीदाबाद में रहता हूं I फरीदाबाद में ही चार सितारा – 4 स्टार – होटल में शिफ्ट मैनेजर हूं। होटल में अलग अलग समय की शिफ्टें चलती हैं फैक्ट्रियों की तरह नहीं सुबह आठ से साढ़े चार। शाम साढ़े चार से रात एक बजे तक। होटल की शिफ्ट किसी भी समय शुरू हो सकती है।

कई कई बार कोइ ना आए तो दो दो शिफ्टों में भी काम करना पड़ता है। उसके बदले में छुट्टी मिल जाती है ।

25 साल की रूपा मेरी पत्नी है। फरीदाबाद में ही निजी क्षेत्र के बैंक में काम करती है। दो साल पहले ही हमारी शादी हुई है। कोइ बच्चा अभी नहीं है, मगर अगले महीने होने वाला है।

कायदे के हिसाब से रूपा को बैंक से छह महीने की छुट्टी मिलेगी मैटरनिटी लीव – मातृत्व अवकाश – जचकी छुट्टी – प्रसूती छुट्टी। कुछ भी कह लो। छुट्टी तो छुट्टी ही है।

अगले हफ्ते से रूपा पानीपत चली जाएगी, अपने मायके – डिलिवरी के लिए। पानीपत वो चार पांच महीने तो लगाएगी ही। उसके बाद भी आती जाती रहेगी। इस दौरान मैं ही पानीपत जाया करूंगा। इस दौरान रूपा के साथ चुदाई होना तो कुछ मुश्किल सा ही लगता है।

रूपा को इस बात की बड़ी चिंता रहती है की उसके जाने के बाद मुझे कोइ परेशानी ना हो। काम वाली माया और धोबन कुसुम को ख़ास हिदायत है कि उसके जाने के बाद उन्होंने छुट्टी नहीं करनी है – “साहब को कोइ परेशानी नहीं होनी चाहिए उसकी गैरमौजूदगी में”। पत्नी हो तो ऐसी।

काम वालियों को पटाना मेरी पत्नी – रूपा खूब जानती है। किसी ना किसी बहाने उन्हें पैसे देती रहती है। एडवांस के लिए कभी भी मना नहीं करती।

रूपा डिलीवरी के लिए चली गयी और इन काम वालियों ने भी “साहब” क्या खूब ख्याल रक्खा। ऐसा ख्याल कि रूपा ने कभी सोचा भी नहीं होगा।

ये तो सभी जानते हैं कि शहरों में लगभग सभी घरों में कामवालियां झाड़ू पोछा और बर्तन करने आती हैं। वैसे तो ये हर उम्र की होती हैं मगर हमारे घर जो आती है – माया – वो तीस की है या शायद बत्तीस की या चौंतीस की ? कद होगा पांच फुट एक या फिर दो इंच।

इन काम वालियों की उम्र का अंदाजा लगाना बड़ा मुश्किल है। बस यही देखा जा सकता है कि जिस्म कड़क है या ढीला ढाला है। हमारी काम वाली माया का जिस्म कड़क है – उम्र चाहे जो हो। ये तनी हुए चूचियां सख्त उभरे हुए चूतड़।

वैसे मुझे तो देखने माया में तीस से कम की ही लगती है I

माया – हमारी काम वाली, हंसमुख खुशमिजाज और बातूनी है। काम करते करते बातें करती रहती है। कोइ सुन रहा है या नहीं इससे उसे कोइ मतलब नहीं।

माया का पति सब्ज़ी का ठेला लगाता है – किशन सब्ज़ी वाला। एक नंबर का नशेड़ी। कोइ दिन ऐसा नहीं होता जब रात को नशा करके घर न आता हो और अपनी बीवी माया से झगड़ा न करता हो।

माया जब हमारे घर सुबह काम करने आती है तो पहले दस मिनट रात की पूरी रिपोर्ट देती है। अगर मेरी पत्नी रूपा घर में है तो उसे – अगर रूपा घर पर नहीं है नहीं तो मुझे।

जब माया मुझ से बात कर रही होते है तो उसकी चूचियों में चूतड़ों पर और चूत वाली जगह पर बड़ी खुजली होती रहती है। हमेशा खुजाती रहती है। कई बार मैं हैरान होता हूं कि मेरी बीवी रूपा से बात करते हुए माया को चूचियों, चूतड़ों और चूत पर खुजली क्यों नहीं होती।

शायद रूपा के पास वो चीज़ नहीं है जो मेरे पास है – लंड।

कभी कभी माया के साथ लड़की भी आती है – सुमन – देखने में अट्ठारह बीस की लगती है। किसी को नहीं पता उसका माया के साथ क्या रिश्ता है। सुमन माया को मौसी बुलाती है मेरी बीवी रूपा को मैडम और मुझे सर बुलाती है

माया जितने घरों में भी काम करती हैं सभी को उसने सुमन के साथ अपना रिश्ता अलग अलग बता रखा है। किसी को कहती है सुमन उसकी भतीजी है – किसी को कुछ किसी को कुछ।

किसी को भी – मेरे समेत – इससे कोइ मतलब नहीं कि वो माया की क्या लगती है। मोटी बात ये है कि सुमन सुन्दर है जवान है कड़क है – और शायद अब तक चुदी भी नहीं – कुंवारी है – सील बंद।

सुमन जब भी हमारे घर आती है मुझे बड़ी अजीब नजरों से देखती है।

सुमन छोटे कद की है – पांच भी मुश्किल से होगी। शरीर से गोल मटोल। भरे जिस्म वाली I बड़ी बड़ी चूचियां और बड़े बड़े ही चूतड़। नैन नक्श बंगालनों जैसे – मुझे तो बंगाल की ही लगती है ।

शायद सब को ये बात मालूम नहीं कि असली और कुदरती सुंदरता या तो कश्मीरी लड़कियों में होती है – गोरी चिट्टी गुलाबी रंगत की, या फिर बंगाल की लड़कियों की। सांवले रंग की ये गोलमटोल बंगालनें – ये बड़ी बड़ी आँखें, गोल गोल होंठ।

बंगालनों के गोल गोल होंठ देख कर हमेशा मन करता है पहले तो इन होठों को चूसा जाये, फिर इनसे लंड चुसवाया जाये।

माया के साथ आने वाली लड़की सुमन को देख कर भी मुझे ऐसा ही लगता रहता है।

शहरी लोग घर में कपड़े धोने की मशीन होने के बावजूद अक्सर काम वालियों से कपड़े भी धुलवाते हैं। उनका मानना है की मशीन की धुलाई से कपड़े खराब हो जाते हैं।

मुझे तो अक्सर ऐसा लगता है कि कपड़े धोने की मशीन घर में इस लिए रखी जाती है कि पड़ोसी और रिश्तेदार ये ना कहें “लो जी इनके घर में तो कपड़े धोने की मशीन भी नहीं है”। कम से कम हमारी घर में तो कपड़े धोने की मशीन होने का यही कारण है।

कई घरों की काम वालियां कपड़े धोने से मना कर देती हैं क्योंकि कपड़े धोते हुए उनके अपने कपड़े गीले हो जाते हैं। ऐसे में कई लोग धोबन से कपड़े धुलवाते हैं। धोबनें पैसे तो जरूर थोड़े ज्यादा लेती हैं, मगर कपड़े बढ़िया धोती हैं – चका चक।

मेरी पत्नी कहा करती है धोबन की सबसे बड़ी पहचान है कि वो कपड़े तो बढ़िया धोती ही हैं, कपड़े धोते समय उनके अपने कपड़े कभी गीले नहीं होते।

हमारे घर में भी ऐसी ही एक धोबन कपड़े धोने आती है – कुसुम। उम्र होगी यही कोइ 30 – 32 साल। वही बात – इनकी उम्र का अंदाजा लगाना मुश्किल है। माया की ही तरह कुसुम भी कड़क है। मुझे तो कुसुम भी तीस से कम की ही लगती है।

कुसुम मुझे साहब बुलाती है और रूपा को बीबी जी।

कुसुम का घरवाला – मुरारी – पास ही कपड़े इस्त्री करने वाला ठेला लगाता है। अगर कभी कुसुम लोगों के घरों में कपड़े धोने से जल्दी फारिग हो जाती है तो ठेले पर चली जाती है पति मुरारी की मदद करने। कुसुम फिर कपड़े इस्त्री करती है और मुरारी बैठ कर बीड़ी पीता है।

कुसुम भी कद की छोटी है – पांच फुट एक इंच या दो इंच होगी। हल्की सांवली है मगर है ग़ज़ब की सुन्दर।

काम वाली माया और धोबन कुसुम मुझे तो दोनों एक जैसी ही लगती हैं। दोनों का कद भी बराबर सा ही है और जिस्म भी एक सा – कड़क। कुसुम माया से थोड़ी भारी शरीर वाली है।

मगर कुसुम से मेरा सामना कम होता है। वो दुसरे वाले टॉयलेट में कपड़े धोती है, छत पर कपड़े सूखने के लिए डाल कर बाहर बाहर से ही चली जाती है।

अगर कभी माया की तरह कुसुम भी मुझसे बात करे तो मुझे पता चले की मुझ से बात करते हुए उसकी चूचियों, चूतड़ों और चूत पर खुजली मचती है या नहीं – जैसे माया के मचती है।

कुसुम कपड़े धोते हुए साड़ी घुटनों तक चढ़ा लेती है और नीचे जमीन पर घुटने मोड़ कर पैरों के बल बैठ कर कपड़े धोती है। पीछे से अगर नजर पड़े तो भारी चूतड़ बाकी शरीर से बिलकुल अलग दिखाई देते हैं।

इस तरह पैरों के बल बैठने से चूतड़ और ज़्यादा फ़ैल जाते हैं I सच कहूं, मेरा तो कई बार कुसुम के चूतड़ चाटने का ही मन करने लगता है।

वैसे तो आपस की बात है – इतनी सुन्दर बीवी के होते हुए भी कुसुम की नंगी टांगें और मांसल चूतड़ देख कर कई बार मैंने मुट्ठ मार कर लंड का पानी छुड़ाया है।

वैसे कुसुम की चुदाई का ख्याल पहले तो मन में कभी नहीं आया मगर उस दिन – जिस दिन से मैंने कुसुम की काली झांटों वाली चूत देख ली तब से उसकी चुदाई का भी मन होने लगा।

हुआ ये, कि एक दिन मेरी दोपहर दो बजे की शिफ्ट थी और मुझे मोज़े नहीं मिल रहे थे। रूपा बैंक जा चुकी थी। मैंने सोचा धोने वाले कपड़ों में से मोज़े निकाल लेता हूं, बाद में रूपा आएगी तो ढूंढ देगी।

कुसम साड़ी घुटनों तक चढ़ा कर जमीन पर घुटने मोड़ कर पैरों के बल बैठी कपड़े धो रही थी। सामने धोने धोने कपड़ों का ढेर लगा हुआ था।

मैं झुक कर मोज़े ढूंढ रहा था कि मेरी नजर कुसुम टांगों के बीच पड़ी। कुसुम की साड़ी उस दिन घुटनों से भी ऊपर थी ।

कुसुम ने चड्ढी नहीं पहनी थी – वैसे तो कोई काम वाली बाई चड्ढी नहीं पहनती – कुसुम की चूत और झांटों के काले स्याह बाल मेरी आँखों के सामने थे। पैरों के बल बैठने के कारण चूत की फांकें खुल गयी थी और गुलाबी छेद दिखाई दे रहा था।

मोजा तो मैं भूल गया, बस कुसुम की चूत और चूत के ऊपर की झांटें ही देखता रह गया।

कुसुम ने मुझे उसकी चूत पर नजरें गड़ाए देखा और कपड़े धोने बंद कर दिए। फिर वो हंस कर बोली, “साहब कहां ढूढ़ रहे हैं मोज़े – वहां ढूंढिए” – कुसुम ने कपड़ों के ढेर के तरफ इशारा किया।

मै हड़बड़ा कर कपड़ों के ढेर से मोज़े ले कर वापस आ गया।

मै ड्राईंग रूम में बैठा था। कुसुम काम खत्म कर जाने लगी।

मेरे पास आ कर बोली, “साहब, बीबी जी कब जा रही हैं डिलीवरी के लिए”।

मैंने भी बता दिया, “अगले हफ्ते “।

आज से पहले तो कभी कुसुम मेरे सामने नहीं आयी थी, ना ही कभी बात ही की थी। फिर आज अचानक ?

कुसुम ने एक हाथ से अपनी चूत के ऊपर से साड़ी या धोती खींची, जैसे चूत में घुसी चड्ढी निकाल रही हो। ये पहली बार हो रहा था।

मगर मैंने तो देखा ही था उस दिन कुसुम ने चड्ढी नहीं पहनी हुई थी। झांटों की काले बल मैंने खुद अपनी आखों से देखे थे। तो फिर कुसुम चूत में से क्या निकाल रही थी। चूत में तो चड्ढी ही घुसती है, साड़ी या धोती तो घुसती नहीं।

तो फिर कुसुम ने मेरे सामने ऐसा क्यों किया ? क्या कुसुम चुदाई के लिए पट रही थी ?

रूपा पानीपत चली गयी।

मैंने कुसुम और माया के साथ आने वाली कड़क लड़की सुमन की चूत चोदने के सपने लेने शुरू कर दिए।

माया अभी चुदाई के सपनों में नहीं थी। वैसे तो पहले कुसुम भी नहीं थी। ये तो जिस दिन से कुसुम की चूत और झांटें देखी उसके बाद से उसकी चुदाई का मन होने लगा।

कुसुम की चुदाई तो रूपा के जाने के तीसरे दिन ही हो गयी।

हुआ ये की मुझे होटल रात में जाना था।

दस बजे तक माया झाड़ू पोछा बर्तन करके जा चुकी थी ।

ग्यारह बजे कुसुम आयी और इधर उधर देख कर बोली, “साहब, बीबी जी गयी” ?

मैंने भी जवाब दिया, “वो तो परसों ही चली गयी थी। कल तुम आई नहीं”।

कुसुम कुछ रुक कर बोली साहब आज तो मोज़े गुम नहीं हुए ? साथ ही वो हंस दी और चूत के ऊपर से साड़ी ऐसे ठीक की जैसे साड़ी के नीचे चड्ढी चूत में घुस गयी हो और उसको निकाल रही हो।

मैंने सोचा उस दिन तो कुसुम ने चड्ढी नहीं डाली थी I साड़ी तो चूत में फंस नहीं सकती और चड्ढी कुसुम पहनती नहीं। फिर ये बार बार चूत वाली जगह से साड़ी क्यों खींचती है ?

क्या मुझे जताना चाहती है, “साहब मेरी फुद्दी तैयार है आ जाईये”।

फिर भी मैंने पूछा, “मोज़े “?

कुसुम हंसी और बोली, “आप के मोज़े बहुत गुम होते हैं”।

मैंने भी शरारत से कहा कहा, “कुसुम गुम तो हुए हैं, तुम मदद कर दो ढूंढने में”।

ये कहने के साथ ही मैने साड़ी के ऊपर से कुसुम के चूतड़ों को जोर से दबा दिया। क्या सख्त चूतड़ थे कुसुम के।

कुसुम ने कुछ भी नहीं कहा।

उल्टा कुसुम ने बड़ी ही कातिल नजरों से मुझे और मेरे लंड को देख कर कहा, “कहां ढूंढने हैं साहब” ? कुसुम ने फिर चूत पर साड़ी ठीक की।

मैं समझ गया की कुसुम चुदाई चाह रही है। मेरे लंड में हरकत होने लगी।

कमरे में ही ढूंढते हैं – और तो कहीं मिलेंगे भी नहीं।

ठीक है साहब। और वो कमरे की तरफ चल पडी।

मैंने जाली वाला दरवाजा बंद कर दिया और कुंडी लगा दी, मगर लकड़ी वाला दरवाजा खुला रहने दिया।

कोइ आ भी जाए तो शक नहीं होगा। और अगर कोइ आ भी गया तो घंटी बजायेगा और हमारे पास टाइम होगा लंड और चूत ढकने का।

वैसे किसी का आने की उम्मीद कम ही थी – लड़की की के आने की उम्मीद तो नहीं ही थी। जिस आदमी की बीवी घर में न हो ऐसे “छड़े लंड गिरधारी” के घर कौन लड़की आएगी।

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