रजनी की चुदाई उसी की जुबानी-21 – दास्ताने करनाल

करनाल के चौथे दिन की रात

सरोज ही बोली,थी” तीन तीन नंगी फुद्दियों और सख्त चूतड़ों को देख अगर दीपक का लंड खड़ा हो गया और दीपक ने चुदाई की इच्छा जताई तो चुदाई करवा लेंगीं – करवानी ही चाहिए। ऐसी सूरत में चुदाई से मना करना खुदगर्ज़ी होगी। हां अपनी तरफ से हम उसे चोदने के लिए नहीं कहेंगी,

बिलकुल वही हुआ जिसका अंदेशा था। दीपक आ गया नंगा, खड़े लौड़े के साथ।

आते ही पूछा, “क्या ? आज चुदाई की छुट्टी है “?

सरोज बोली, “छुट्टी का क्या मतलब, हम तीनों तो तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहीं थीं”। सरोज ने हमारी और देख कर एक आँख दबाई I “मगर आज हम कुछ नहीं करेंगी। जो करना है जैसे करना है तुमने करना है। जैसे चोदना है तुमने चोदना है। आज तुम्हारी मर्जी चलेगी, बस फिल्म का एक आख़री सीन हमारी मर्ज़ी का होगा “।

मुझे हैरानी हुई सरोज की बात सुन कर। “आख़री सीन “? अब ये “आख़री सीन” क्या बला है ?

मैंने हल्के से सर घुमा कर रजनी की तरफ देख इशारों इशारों में पूछा, उसने भी इशारे से बताया, “पता नहीं ”।

“तो फिर ठीक है”, दीपक बोला, “आ जाओ लंड चूसो मेरा लौड़ा बारी बारी से। फिर देखते हैं आगे क्या करना है”।

दीपक लेट गया, हमने बारी बारी से उसका लंड चूसा। लंड सख्त हो चुका था।

“हम तीनो बारी बारी से उसके लंड पर बैठी”।

दीपक ने कहा, “बस अब और मत तरसाओ। फुद्धियां खोलो और लंड लेने के लिए तैयार हो जाओ अब रगडूंगा”।

“हम तीनो एक लाइन में लेट गयी। एक तरफ सरोज। बीच में मैं और मेरी बगल में रजनी”।

दीपक ने सब से पहले सरोज की टांगें अपने कंधों पर रक्खी और ऊपर की तरफ उठा दी। सरोज के चूतड़ ऊपर उठ गए, साथ ही उसकी चूत भी ऊपर उठ गयी। दीपक ने लंड सरोज की चूत के अंदर डाला और बिना देर किये धक्के लगाने शुरू कर दिए ।

“गाड़ी ने आज लम्बा सफर तै करना था इस लिए इधर उधर की चूसा चुसाई ऊंगलीबाजी में वक़्त नहीं बर्बाद किया जा सकता था” ?

सरोज ज़बरदस्त तरीके से नीचे से चूतड़ घुमा रही थी और ऊपर नीचे भी कर रही थी ।

मस्त चुदवाती है सरोज। “मैं भी अब से ऐसे ही चुदाई करवाऊंगी पंकज से। पंकज तो हैरान ही रह जायेगा जब उससे चुदाई करवाते हुए ऐसे चूतड़ घुमाऊंगी”।

सरोज के बाद दीपक ने मुझे और रजनी को चोदा। दीपक अभी तक झड़ा नहीं था – झड़े तो हम भी नहीं थे। चूत का पानी तो हमारा भी नहीं छूटा था और गांड का छेद अभी भी फड़फड़ा रहा था। ।

इस तरह लेट के चुदाई करवाने के बाद चुदाई के अगले दौर के लिए के लिए हम कुहनियां बेड के किनारे रख कर, घोड़ी की तरह चूतड़ पीछे कर के खड़ी हो गयीं। मेरे बाएं सरोज और मेरे दाएं रजनी – मैं बीच में।

दीपक ने बारी बारी से हमारी चूत और गांड दबा कर चोदी।

“अब हम गर्म होने लग गयीं थी। चूतें हमारी पानी छोड़ने लग गयी थीं”।

जब दीपक सरोज की चूत – या हो सकता है गांड – चोद रहा था तो मैंने धीरे से रजनी के कान में कहा। “रजनी आज दीपक वियाग्रा की गोली खा कर आया लगता है जो झड़ ही नहीं रहा”। कहां तो हम सोच रही थी की आज चुदाई नहीं करवाएंगी, अब हालत ये थी कि हमारी चूतें पानी छोड़ने लग गयी थे और छप्प छप्प पट्ट पट्ट छप्प छप्प की आवाज के साथ चुद रही थी ।

मैं फुसफुसाई ,”लगता है सरोज गरम है, बड़े ही जोर जोर से चूतड़ आगे पीछे कर रही है”।

अभी मैं और रजनी बात कर ही रहीं थीं कि सरोज ने एक सिसकारी ली ,”उईईई मां….. निकल गया मेरा, दीपक लगा कस के धक्के लगा। जान निकाल आज – रगड़ मेरी चूत को…. चोद मुझे…. आआआआह, आआआह, दीपक मजा आ गया। जीजी…… गई मैं आआआह “। और सरोज धड़म से आगे बेड पर लेट गयी। दीपक का लंड अपने आप ही सरोज की चूत से बाहर निकल गया”।

दीपक अब मेरे पीछे आ गया। मेरी कमर पकड़ कर मेरे चुदाई शुरू कर दी। कभी चूत कभी गांड।

“जैसा दीपक लंड सख्त हुआ पड़ा था पक्का ही उसने वियाग्रा खाई थी “। मोटा सख्त लंड, ऊपर से फूला हुआ सुपाड़ा – सोने पर सुहागे वाली बात थी।

मैंने दीपक से कहा, “दीपक गांड रगड़ो आज”।

“लगता था गांड चुदवाने का चस्का पड़ गया था मुझे “।

दीपक गांड चोद रहा था – धुआंधार – मैं चूत का दाना रगड़ रही थी। चूतड़ों को जोर जोर से हिला हिला कर आगे पीछे कर रही थी। कुछ ही देर की गांड चुदाई और चूत के दाने की मालिश से मैं भी झड़ गयी और सरोज की बगल में ही ढेर हो गयी।

अब दीपक रजनी के पीछे था।

पता नहीं कितना चुदी रजनी भी। मैं और सरोज तो निढाल पड़ी थी।

तभी दीपक और रजनी की इक्क्ठी सिसकारियां निकली, “आआआआआह…… रजनी …..निकल गया मेरा पानी….. झड़ गया मेरा लंड”। दीपक के जोरदार धक्कों की आवाजे आ रही थीं,”धप्प धप्प ….. छप्प छप्प…. पट्ट पट्ट…..छप्प छप्प….धप्प धप्प “।

“रजनी की सिसकारियां दीपक की सिसकारियों में गुम हो गयी हो गई”।

कुछ रुकने के बाद दीपक ने लंड निकला और जा कर सोफे पर बैठ गया। हम तीनो ही बेड पर लेट गयी।

जब दम आया तो सरोज उठी और बोली। “चल दीपक अब फिल्म का आख़री सीन भी पूरा कर लें”। हमारी तरफ देख बोली “चलो रजनी जीजी आभा जीजी, तुम लोग भी उठो”।

सब खड़े हो गए और सरोज की अगले “आदेश” का इंतज़ार करने लगी।

सरोज बोली, “चलो सब बाथ रूम में”।

मैंने सोचा, तो ये मूतना है आख़री सीन। “पर ये तो हम पहले भी कर चुके हैं। इन मर्दों पर मूत भी चुके हैं इनसे मुतवा भी चुके हैं – और आपस में मूता मुताई तो की ही है”।

सरोज ने दीपक से कहा दीपक लेट जाओ आज, “तुम्हें गरम पानी से स्नान करवाएं”।

दीपक आज्ञाकरी बालक की तरह लेट गया।

हम टांगें चौड़ी कर उसके ऊपर अपनी चूतें खोल कर खड़ी हो गयी। खड़ी होने का क्रम भी वही था। सरोज खड़ी हुई दीपक के मुंह के ऊपर, मैं बीच में और रजनी दीपक के लंड ऊपर। सरोज का मुंह मेरी तरफ था।

सरोज बोली, “जब तक मैं ना कहूँ मूतना मत “।

ठीक है, “मैं और रजनी इक्क्ठे बोली”।

मैंने सरोज को कस के पकड़ लिया। रजनी ने हम दोनों को पकड़ लिया। हमारी चूचियां एक दूसरी के साथ दब रहीं थी।

तभी सरोज बोली,” एक ..दो..तीन…….मूतो”।

और दीपक पूरा गर्मागर्म मूत से नहा गया।

तो ये था फिल्म का “The End – सुखद अंत – हैपीज़…..एंडिंग्ज़ “।

दीपक को अपने पेशाब का स्नान करवा कर उसे उठाया और फिर हमने सबने अच्छे से स्नान किया। दीपक को बढ़िया से आगे पीछे – लंड के आस पास, टट्टों के नीचे, चूतड़ों की दरार के अंदर – सब जगह साबुन लगा कर हम तीनों ने अच्छे से धोया। तौलिये से पोंछ कर पानी सुखाया और एक एक चुम्मी उसके होठों पर और एक एक चुम्मी सब ने उसके लंड पर की और शुभ रात्री – गुड नाईट – की और वो अपने कमरे की और चला गया।

“अगर बेड और बड़ा होता तो उसे अपने साथ ही सुला लेते”।

फिर ऐसा ही ऐसे हम तीनों ने एक दूसरी की सफाई की । सारी जगहों को – चूचियों के बीच चूत में, चूत के दोनों तरफ, चूतड़ों की दरार में अच्छी तरह सफाई की, एक दूसरी को तौलिये से साफ़ किया और बिस्तर पर लेट गयी।

एक दूसरी पर हाथ फेरते फेरते न जाने कब नींद आ गयी।

करनाल में पांचवां दिन

सुबह सब से पहले मैं जब उठी तो सरोज और रजनी दोनों सोई हुई थी। मैं बाथ रूम गयी और फ्रेश होकर किचन में चाय बनाने चली गयी – नंगी ही।

मैं चाय बना कर लाई और बेड पर बैठ कर नंगी सरोज और रजनी दोनों की चूचियों को सहलाया, चूतों पर हाथ फेरा और उनको जगाया।

वो उठी, अभी भी आलस में थी।

मेरे हाथ में ट्रे देख कर सरोज बोली, “जीजी आप क्यों चाय बना कर लाई, मुझे क्यों नहीं जगाया”।

“अरे तो क्या हुआ “, तूने हमारा इतना ध्यान रखा, चूत और गांड को लंडों की कमी नहीं होने दी – मैंने चाय बना दी तो क्या हुआ”।

चाय पी कर हम तीनो बाथ रूम गए और सब काम कर के, नहा धो का बाहर निकलीं ।

दीपक अभी भी सोया हुआ था, नंगा ही।

मैं और सरोज चाय ले कर उसके कमरे में पहुंची। सरोज ने बड़े प्यार से उसका लंड मुंह में लिया और चूसने लगी। दीपक की जाग भी खुल गयी। देख कर ही लगता था की अभी और सोना चाहता है।

“तीन तीन देवियों को चोदना – उनकी चूत को ठंडा करना – हर के बस की बात नहीं है”।

खैर दीपक उठ गया। चाय पी कर बाथ रूम में चला गया।

हम लोगों ने भी कपड़े पहने और रसोई में नाश्ते की तैयारी करने लगे।

नाश्ता करते करते दीपक बोला, “मैं थोड़ी देर में खेतों पर चला जाऊंगा। आज शहर जाना है, संतोष से पूछ लूंगा कुछ लाना तो नहीं ? रात शहर में रहूंगा और कर सवेरे तीनों लौंडों बंटी सन्नी और मोनू को साथ ही ले के आऊंगा”।

“लौंडे – तो उनके नाम बंटी सन्नी और मोनू हैं – हमारे नए चुदकड़ खलीफे ” I

सरोज बोली, “दीपक संतोष को बोलना आज जल्दी आ जाएगा”।

“ठीक है” और दीपक हंस कर चला गया।

“मैं संतोष से चूत चुदाई के ख्यालों में डूब गयी”।

ऐसे ही इधर उधर डोलते, घूमते, लेटते चूत चूचियों और गांड की चूमा चाटी करते करते शाम के चार बज गए।

साढ़े चार बजे संतोष आ गया। आते ही सब को नमस्ते कर के बाथ रूम में घुस गया। शेव कर के नहा धो कर तैयार हो कर बाहर निकला और सरोज के पास बैठ गया। सरोज के होठों पर एक चुम्मी ली और उसकी चूचियों और चूत को सहलाया और पूछा, “कैसी है मेरी जान, कैसे गुज़रे दो दिन” ? “बढ़िया”, सरोज ने भी संतोष के लंड पर हाथ फेरते हुए कहा I

“पति हो तो सतोष जैसा। पत्नी हो तो सरोज जैसी। कितना प्यार और तालमेल है दोनों पति पत्नी में “।

सरोज ने बात जारी रक्खी ,”और आज का दिन यादगार वाला दिन बनाना है। दो तीन दिनों में रजनी जीजी और आभा जीजी ने वापस चले जाना है, इनकी खातिर में कोइ कमी नहीं रहने देनी। रजनी जीजी तो आती रहेंगी, आभा जीजी पता नहीं कब आएंगी “।

सतोष ने मेरी और देख कर कहा, “तो मतलब है आज आभा का ख़ास ध्यान रखना है ” ?

सब हंस पड़े सिवाए मेरे।

“मेरी तो चूत कुलबुलाने लगी थी”।

मेरी तो आँखों के आगे संतोष का मोटा लंड घूम रहा था। रजनी जैसी चुदाई का ख्याल मेरे दिमाग़ को सुन्न किये जा रहा था। ना मुझे कुछ सुनाई दे रहा था ना कुछ सुझाई दे रहा था – बस संतोष का लंड और ज़बरदस्त चुदाई ही ख्यालों में थी ।

छः बजे संतोष अपने कमरे में चला गया।

संतोष बोली, “मैं आती हूँ, संतोष को व्हिस्की का पेग बना कर दे आऊं, पूछ भी लूंगी कब आये आभा जीजी “।

मैंने बीच में ही सरोज की बात काटी,”मैं ही क्यों, हम सब चलेंगे – तीनो”।

रजनी बोली हम क्या करेंगी, में तो चुद चुकी संतोष से – मस्त चुदाई हो चुकी मेरी तो, और सरोज का तो घर ही है ये। घर भी यहीं घरवाला भी यही। जब चाहो चुदवा लो “।

मैंने कहा, “जो तुमने दोनों ने वहां ना रह कर दूसरे कमरे में करना है वही वहां कर लेना। और संतोष कोइ दीपक से कम तो नहीं – चूत चोदने में तो दीपक से इक्कीस ही है उन्नीस नहीं।

“अगर दीपक हम तीनो मस्त चुदाई कर के हमारी तीनों की तस्सली कर सकता है तो संतोष क्यों नहीं “।

रजनी और सरोज दोनों हंस पड़ी, “मतलब हां, ठीक है “।

सरोज संतोष का व्हिस्की का पेग बंनाने और प्रोग्राम पूछने चली गयी।

रजनी बोली, “आभा दो तीन दिनों में हम वापस चली जाएंगी, मगर करनाल का ये ट्रिप हमेशा याद रहेगा। अब जा कर चुदाई पिलाई छोड़ कर पढ़ाई करनी है – नंबर कम नहीं आने चाहिए, नहीं तो लंड ढंग का और मनमर्जी का नहीं मिलेगा।

“बात तो एकदम दुरुस्त ही थी रजनी की “।

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रजनी की चुदाई – उसीकी जुबानी – भाग 22

संतोष ने एक ही घूंट में गिलास खाली किया, लंड मेरे मुंह से निकाला, मुझे गोद में उठाया और बेड पर लिटा दिया ।मैं संतोष का मोटा लंड अपनी चूत में महसूस करने के लिए बेचैन हो रही थी ।

करनाल का पांचवां दिन

अब तक आपने पढ़ा – सरोज संतोष का व्हिस्की का पैग बनाने और चुदाई का प्रोग्राम पूछने जा चुकी थी।

रजनी और मैं बातें कर रही थीं। रजनी बोली, “आभा दो तीन दिनों में हम वापस चली जाएंगी, मगर करनाल का ये ट्रिप हमेशा याद रहेगा। अब जा कर चुदाई पिलाई छोड़ कर पढ़ाई करनी है – नंबर कम नहीं आने चाहिए, नहीं तो मनमर्जी वाला लंड का नहीं मिलेगा।

“बात तो एकदम दुरुस्त थी ही रजनी की “।

अब आगे —- मैं और रजनी बैठी थीं। हमने ये तय कर लिया की करनाल की ताबड़तोड़ चुदाई के बाद अब पढ़ाई की तरफ ध्यान लगाना है। नंबर किसी सूरत में कम नहीं आने चाहिए।

“अच्छी कमाई घर लाने वाला और अच्छी चुदाई करने वाला पति तभी मिलेगा “।

तभी सरोज आ गयी और पूछा, “तैयारी है आभा जीजी” ?

“तैयारी क्या करनी है सरोज ” ? रजनी बोली, ” कपड़े ही तो उतारने है और टांगें उठानी है, बाकी जो करना है वो तो संतोष ने ही करना है”। और वो हंस दी।

“तो फिर उतारो कपड़े”, सरोज बोली, “चलते हैं, शुभ काम में देर कैसी” ?

“यहीं उतारें ” ? मैंने सकुचाते हुए पूछा।

“तो और क्या ” सरोज बोली। “संतोष के मैं कपड़े मैं उतार आयी हूं – लंड सहला भी आयी हूं, चूस भी आयी हूं। खड़ा होना शुरू हो गया है, बाकी का काम आभा जीजी कर देंगी “।

हम लोगों ने कपड़े उतरे और एक कतार में सरोज के कमरे की तरफ बढ़ने लगी। आगे आगे सरोज, उसके पीछे रजनी और सब से पीछे मैं। कमरे में पहुंच कर सब से पहले मेरी नज़र संतोष के लंड पर पड़ी – मस्त था, मोटा ताजा। खड़ा भी हो चुका था। अब खाली सख्त ही करना था – और सब तैयार – चुदाई चालू ।

हम तीनो नंगी बेड पर बैठ गयीं।

संतोष के एक हाथ में गिलास था दूसरा हाथ लंड सहला रहा था। संतोष धीरे धीरे गिलास में से व्हिस्की की चुस्कियां ले रहा था।

जैसे ही गिलास खाली हुआ, सरोज उठी और बोली ,”मैं नया पैग बना कर लाती हूं, चलो आभा जीजी आप अपना काम शुरू करो”।

मैं उठी और जा कर संतोष की गोद में जा कर बैठ गयी।

“नीचे मेरी गांड पर संतोष का खड़ा लंड रगड़ खा रहा था”।

मैंने संतोष के होंठ अपने होठों में ले लिए और चूसने लगी। संतोष ने भी मेरे होंठ चूसने शुरू कर दिए। संतोष का एक हाथ मेरे कमर के पीछे था और एक हाथ मेरी चूचियों पर। संतोष मेरी चूची का निपल मसल रहा था। “बड़ा मजा आ रहा था”।

कुछ देर हम ऐसे ही चूसा चुसाई करते रहे।

सरोज पैग बना कर ले आई थी और खड़ी इंतज़ार ही कर रही थी की कब हमारे होंठ अलग हों और कब वो संतोष के हाथों में पैग पकड़ाए।

“मेरी गांड के नीचे संतोष का लंड और ज़्यादा सख्त हो रहा था”।

मैंने अपने होंठ संतोष के होठों से अलग किये और उठ कर फर्श पर बैठ गयी। संतोष का मोटा लंड मैंने अपने मुंह में ले लिया और सुपाड़े के छेद पर जुबान फेरने लगी। संतोष का लंड एक दम फनफना उठा। सरोज ने व्हिस्की का गिलास संतोष के हाथों में दिया और बेड पर जा कर रजनी के साथ ही बैठ गयी।

तीन चार हल्के हल्के घूंट लेने के बाद संतोष ने एक ही घूंट में गिलास खाली कर दिया। लंड मेरे मुंह से निकाला, मुझे गोद में उठाया और बेड पर लिटा दिया। सरोज और रजनी दोनों बेड से उठ गयीं।

” मैं संतोष का मोटा लंड अपनी चूत में महसूस करने के लिए बेचैन हो रही थी “।

सरोज मोटा तकिया ले कर आयी और मेरी कमर के नीचे रख के मेरे चूतड़ ऊपर उठा दिए । मेरी चूत भी ऊपर उठ गयी। मैंने अपनी टांगें उठा कर फैला दी।

संतोष ने जांघों से पकड़ कर मेरी टांगें चौड़ी कर दी। “पक्का ही संतोष को मेरी फुद्दी का गुलाबी छेद चूत की फांकों के बीच में दिखाई दे रहा होगा “।

आननफानन में संतोष ने अपना मोटा लंड एक ही झटके से लंड मेरी चूत में घुसेड़ दिया। “आआआआआह ” मेरी सिसकारी निकल गयी।

थोड़ा चोदने के बाद संतोष उठा और मेरी फुद्दी का दाना चूसने लगा – साथ ही संतोष नीचे से हाथ डाल कर गांड में भी उंगली कर रहा था।

“मस्ती के मारे मेरी हालत खराब हो रही थी”।

मेरे चूतड़ अपनेआप ही हिलने शुरू हो गए। संतोष समझ गया अब मैं पूरी चुदाई चाहती हूं – फुल स्पीड वाली। वो उठा, मेरी टांगें चौड़ी की, अपने लंड का सुपाड़ा मेरी फुद्दी के छेद पर रक्ख़ा और फच्च की एक आवाज के साथ अपना पूरा लंड अंदर डाल दिया।

” चुदाई शुरू हो गयी – पूरी चुदाई – फूल स्पीड वाली चुदाई – लगातार नॉन स्टॉप वाले धक्के”।

मेरे कंधों के पीछे से हाथ डाल कर मुझी भींच लिया और जो उसने ताबड़तोड़ धक्के लगाने शुरू कर दिए। मुझे लगा मैं जन्नत कि सैर कर रही हूँ । इतना कस के पकड़ा हुआ था संतोष ने मुझे कि मैं अपने चूतड़ भी नहीं हिला पा रही थी। बस अपनी चूत को कभी टाइट कर रही थी कभी ढीला छोड़ रही थी।

अगले बीस मिनट संतोष ने मेरा कचूमर निकाल दिया”। पानी पानी हो गयी मेरी चूत। मेरी चूत में से चुदाई में आवाज़ें आने लग गयी, फच्च फच्च फच्च….फच्च फच्च फच्च ।

“अब मैं झड़ने को थी। मजा कभी भी आ सकता था – चूत का पानी कभी भी छूट सकता था”।

संतोष की चुदाई लगातार चल रही थी। तभी मुझे लगा की अब मेरी चूत मजे वाला पानी छोड़ने वाली है। मैंने संतोष को कस कर पकड़ लिया और चूतड़ हिलने की कोशिश करने लगी।

संतोष समझ गया की मेरा काम होने ही वाला है। उसने एक दम से धक्कों की स्पीड बढ़ा दी – और तभी मैं छूट गयी।

एक सिसकारी निकली मेरे मुंह से, “आआआआह संतोष चुद गई मैं, झड़ गयी मैं…..आआआह……आआआआह…….आआआआह…..उईईई……उईईई….आआह…..संतोष। सरोज…..रजनी…..मजा आ गया। निकाल दिया मेरी चूत का पानी संतोष ने। आआआआह…..ऊऊऊ…ओह्आ……आआआह I “मजे में पता नहीं क्या क्या बोले जा रही थी मैं।

संतोष ने धक्के लगाने बंद कर दिए लेकिन वो अभी भी नहीं झड़ा था। मैं उसका खड़ा सख्त लंड अपनी चूत में महसूस कर रही थी।

थोड़ी देर मेरे ऊपर वैसे ही लेटने के बाद, संतोष ने खड़ा लंड बाहर निकाला और सोफे पर बैठ गया।

पांच सात मिनट के बाद जब मैं कुछ हिली तो सरोज मेरे पास आयी, “कैसा लग रहा है आभा जीजी “।

“स्वर्ग की सैर करवा दी सरोज आज तेरे संतोष ने – क्या मस्त चोदता है। मजा ही आ गया”।

सरोज मेरे पास ही बैठ गयी और रजनी से बोली, “रजनी जीजी तुम संतोष के लंड का ध्यान रखो, मैं जरा आभा जीजी की चूत को अगले दौर के लिए तैयार कर दूं।

सरोज मेरी चूत चूसने लगी और रजनी संतोष का लंड चूसने लगी।

एकाएक रजनी उठी और संतोष का लंड अपने हाथ में ले कर अपनी चूत पर रक्खा और उस पर बैठ गयी। लंड रजनी की चूत के पूरा अंदर था। रजनी कि पीठ संतोष कि तरफ थी। संतोष ने भी पीछे से हाथ डाल कर उसकी चूचियां पकड़ ली।

इधर सरोज घूमी और अपने चूत मेरे मुंह पर लगा दी। अब सब व्यस्त थे।

“रजनी संतोष का लंड अपनी चूत में ले कर बैठी थी। मैं और सरोज एक दूसरी की फुद्धियाँ चूस चाट रही थी। सरोज की चूत गीली हो रही थी और मेरी चूत तो थी ही गीली”।

मेरी चूत फिर से गरम होने लगी और मेरे चूतड़ हिलने शुरू हो गए।

“समझदार को इशारा ही काफी होता है – सरोज समझ गयी कि मैं चुदाई करवाने के अगले दौर के लिए तैयार हूं”।

सरोज मेरे ऊपर से उतर गयी, रजनी ने जब देखा सरोज मेरे ऊपर से हट गयी है तो वह भी संतोष की गोद से खड़ी हो गयी। संतोष का खम्बे जैसा लंड रजनी की फुद्दी से बाहर आ गया। रजनी ने बड़े ही प्यार से संतोष के लंड को देखा और एक बढ़िया सा चुम्मा संतोष के लंड के सुपडे पर जड़ दिया।

संतोष खड़ा हो गया। उसका फूला हुआ लंड बिलकुल सीधा था।

संतोष फिर से मेरे ऊपर आया, मेरी टांगें चौड़ी की और लंड फच्च की एक आवाज के साथ पूरा अंदर डाल दिया।

“लगता है सरोज ने सब कुछ पहले से ही तै किया हुआ था “।

इस बार कि चुदाई से लग ही रहा था कि संतोष अपना लेसदार सफ़ेद गर्म वीर्य मेरे अंदर छोड़ेगा। मुझे भी अब इच्छा हो रही थी कि संतोष मेरी चूत को गर्मागर्म पानी से भर दे।

”पता नहीं कितनी देर चली वो तबाड़तोड़ चुदाई”।

मेरी चूत कि मस्त रगड़ाई ने मेरा दिमाग़ सुन्न कर दिया था। मेरे लिए चूतड़ हिलने मुश्किल थे लेकिन मैं फिर जोर लगा लगा कर चूतड़ हिला रही थी। मेरा पानी निकलने वाला था। मैंने संतोष को कस के पकड़ लिया और अपनी गांड ऊपर नीचे करने कोशिश करने लगी।

संतोष के ध्क्के लम्बे हो गए थे। फच्च थच्च फच्च थच्च फच्च थच्च कि आवाजें आ रही थी।

अचानक से मेरी चूत का नमकीन पानी छूट गया। मेरे मुंह से फिर सिसकारियां निकल रही थी आआआह …आआआआह …आआआआह…उईईई…उईईई…आआ….आआआआह….ऊऊऊओह्आ….
आआआह “।

और तभी संतोष ने एक लम्बी हुंकार – आआआआह सरोज …….ओओओहहहह सरोज – के साथ मेरी चूत गरम मलाई के साथ भर दी।

संतोष चोद मुझे रहा था और जब मजा आया तो याद सरोज को किया। “ऐसा होता है पति पत्नी का सच्चा प्यार “।

थोड़ा ऐसे ही लेटने के बाद संतोष ने लंड मेरी चूत से बहार निकल लिया। पूरा गीला। मेरी चूत और उसकी अपनी मलाई से सना हुआ। संतोष जा कर सोफे पर बैठ गया।

सरोज उठी और जा कर अपने प्यारे प्यारे पति का लंड चूसने चाटने लगी।

रजनी मेरी चूत चाटने लगी। सपड़ सपड़ कि आवाजों के साथ मेरी चूत का सारा पानी साफ़ रही थी।

साफ़ क्या कर रही थी सपड़ सपड़ करके पी ही रही थी – मैं भी तो ऐसे ही करती हूं। सरोज भी ऐसे ही करती है । सारी लड़किया ही ऐसा करती हैं।

“चूत और लंड से निकला हल्का नमकीन पानी चाटने और पीने का भी अपना ही मजा है”।

सरोज ने संतोष का लंड चाट चाट कर साफ़ कर दिया और इधर रजनी ने मेरी चूत चाट चाट कर साफ कर दी। सरोज उठी, संतोष के होठों पर कस के एक चुम्मा दिया और पैग बनाने लगी।

पैग संतोष के हाथ में पकड़ा कर बोली, “संतोष अब तुमने हम तीनो को चोदना है – मगर अपना पानी इस बार भी आभा जीजी की चूत में ही छोडना है। आज कि तुम्हारी चुदाई केवल आभा जीजी के लिए है। मैं और रजनी तो बस साथ देने के लिए हैं। फिर रजनी कि तरफ देख कर बोली, “क्यों जीजी ” ?

रजनी ने भी सरोज कि हां में हां मिलाई ,”हां मैं तो संतोष से चुदाई करवाने के मजे ले ही चुकी हूं। जब से मैंने आभा को बताया कि संतोष मस्त चूत चुदाई करता है तभी से ये आभा संतोष का लंड लेने लिया उतावली हो रही थी”।

संतोष हल्के से हंसा और मेरी तरफ देख कर बोला ,” आभा को कोइ शिकायत का मौका नहीं मिलेगा ” फिर कहा ,”आभा कोइ थोड़ी सी भी चुदाई में कसर रह जाए तो बताना – एक चुदाई और कर दूंगा”।

सब हंस पड़े। मैंने भी हंसते हुए कहा, ” नहीं संतोष, उसकी जरूरत नहीं पड़ने वाली। तुम्हारा चोदना एक दम अव्वल है – फर्स्ट क्लास – मस्त। नीचे वाली की तस्सली कर के ही तुम अपना लंड बहार निकालते हो और नीचे उतरते हो।

सब एक बार फिर हंसी। सतोष बोला, तो फिर हो जाओ तैयार अगली चुदाई के दौर के लिए।

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