मजदूर ठेकेदारों ने बजायी मेरी ईंट से ईंट

दोस्तों आपने मेरी पिछली कथा में पढ़ा कैसे मैं फिर अपने बच्चों के करीब आयी और साथ ही चूत की आग भी शांत करवाई उनके प्रिंसिपल से। उफ्फ प्रिंसिपल सर पूरी रात लेते है, क्या मजा आता है उनके नीचे। अब मैं अपने बच्चों से मिलती रहती। वो मुझे हर बात बताते और मुझे फिर एक बार मां वाला प्यार देने लगे।

एक दिन मेरा बेटा अपने एक बिहारी दोस्त की बातें मुझे बताने लगा। वो उसके पापा की जम के तारीफें कर रहा था। तो मेरे मन में उत्सुकता बढ़ गई। एक दिन मैं बच्चों से मिलने गई तो उस बिहारी दोस्त निशांत के पापा राजकमल जी भी मुझसे टकराए। थे तो लंबी कद काठी के। पता चला कि वो एक दिहाड़ी मजदूर थे, और गरीबी रेखा कोटे से बच्चों को पढ़ा रहे थे।

वो थे तो पतले से, लेकिन उनकी भुजाओं की मसल मेरी बावली गांड को फिर उकसाने लगे। मैंने सोचा प्रिंसिपल से भी चुदवा लूंगी, लेकिन इस सांड जैसे फौलाद को चूत की गहराई में लेने का अपना मजा होगा। मैंने बहाने से उनका नंबर लिया, और रोज व्हाट्सएप करने लगी। एक दिन मैंने उन्हें फोन किया और कहा कि मैं अपने बच्चों की अच्छी परवरिश के लिए उन्हें जीवन के संघर्ष दिखाना चाहती थी। इसलिए दो दिन उनके साथ बिताना चाहती थी।

वो मुझे साफ दिल मान कर मान गए। लेकिन उन्हें क्या पता, कि मेरी शराफत उनका पूरा लवड़ा गटकना चाहती थी। फिर मैं बच्चों के साथ उनके घर पहुंच गई। मुझे पता चला कि उनकी बीवी बीमार थी, इसलिए मायके गई थी छोटी बेटी के साथ। तो मैं अपने बच्चों को पूरा दिन राज का संघर्ष, काम इत्यादि दिखाई रही, और खुद भी उनकी मर्दानगी देख-देख कर गरम होती रही।