मेरे बचपन का प्यार रूबी – भाग 2 – रूबी के साथ चूत और चुदाई की बातें

पिछला भाग: मेरे बचपन का प्यार रूबी – भाग 1

शिमले में पहला दिन – मंगलवार

चार बजे के लगभग मैं शिमला पहुंचा। सड़क घूम कर सीधा रूबी के फ्लैट तक जाती है। टैक्सी, कार सब वहां तक जाती है। रूबी के घर से नीचे की तरफ मॉल रोड का पैदल का रास्ता केवल आठ दस मिनट का है।

फोन तो मैंने कर ही दिया था। टैक्सी की आवाज़ सुन कर रूबी बाहर आयी, साथ ही वो लड़की भी थी जिसके बारे में रूबी ने मुझे बताया था।

रूबी तो बहुत ही सुन्दर लग रही थी। जिस्म भरा हुआ। चूचियों में अच्छा खासा उभार था। चूतड़ भी भरे भरे थे लेकिन कमर पतली ही थी।

“पहाड़ों पर रहने वाले यूं भी पतले और तंदरुस्त ही रहते हैं – मोटापा उनको जल्दी नहीं आता”।

फर्क था तो ये कि रूबी पहले लड़की थी अब औरत बन गयी थी मगर भरे जिस्म के कारण सेक्सी और भी ज़्यादा दिख रही थी। रंग तो मुझे लगा और भी लाली पर था। 36 की उम्र में भी 26 – 27 से ज्यादा नहीं लग रही थी। मेरा तो लंड ही खड़ा होना शुरू हो गया। रूबी के नंगे जिस्म कि कल्पना करने लगा था मैं ।

रूबी साथ वाली लड़की तो ग़ज़ब की सुन्दर थी। गोरी, लम्बी – पूरी जवान। हीरोइन या फिर कोई टॉप की खिलाड़ी लग रही थी – एथलीट।

उस लड़की ने मेरे हाथ से मेरा बैग पकड़ लिया सीढ़ियां चढ़ने लगी। रूबी ने मेरा हाथ पकड़ा हुआ था और उस पीछे पीछे चल रहे थे। बिल्डिंग चार मंज़िला थी। दो मंजिल पार्किंग कि जगह से नीचे की और दो ऊपर की और। हर मंजिल के पर केवल दो बड़े बड़े चार कमरों के फ्लैट्स – हर कमरे के साथ जुड़ा हुआ बाथ रूम,और एक छोटी सी बार।

रूबी का फ्लैट तीसरी मंजिल पर था दस बारह सीढ़ियां चढ़ कर गलियारे में जाने के बाद दूसरा फ्लैट।

लड़की अंदर जा चुकी थी। हम दोनों जैसे ही अंदर पहुंचे, रूबी ने मुझे कस कर पकड़ लिया लिया और मेरे होठ अपने होठों में ले कर चूसने लगी। मैं हैरान हो गय। इस बात की कल्पना मैंने नहीं की थी की रूबी इस तरह मिलेगी। मैंने भी उसके होंठ चूसने शुरू कर दिए।

मेरे हाथ अपने आप उसकी चूचियों पर पहुँच गए। पांच मिनट के बाद रूबी ने अपने होठ मेरे होठों से हटाए और लगभग चिल्ला कर पूछा “कहां चला गया था तू “।

वो इतनी जोर से बोली कि मेरी बोलती बंद हो गयी मेरी। मैंने बोलने की कोशिश की….. मैं…..मुझे…..मैं…..। रूबी ने मुझे बीच में ही टोक दिया , “क्या मैं मैं मैं मैं…..कहां चला गया था तू मुझे छोड़ कर ” और वो रोने लगी।

अब मैं कुछ परेशन सा हुआ, मुझे समझ नहीं आ रहा था की मैं क्या करूं। मैंने उसके कंधे पर हाथ रख कहा, “रूबी मेरी बात …..” अभी मेरी बात शुरू भी नहीं हुई थी की वो मुझसे लिपट गई । उसकी चूचियां मेरे सीने के साथ चिपकी हुई थी। मैंने भी पीछे हाथ डाल कर उसे भींच लिया।

मैं अभी कुछ सोच ही रहा था की उस लड़की ने, जिसका अभी तक मुझे नाम भी मालूम नहीं था, कमरे में आयी मगर हममे लिपटा देख कर वापस चली गयी।

मैं रूबी के सर और पीठ चूतड़ और चूचियों पर हाथ फेरता रहा। थोड़ी ही देर में वो सामान्य हो गयी और मुझसे अलग होते हुए पुछा, ” हां तो अब बता, कहां ग़ायब हो गया था तू – कहां चला गया था “।

मैंने सारी बात रूबी को बताई की कैसे मुझे चिट्ठियों के जवाब मिलने बंद हो गए, कैसे मैं उसके धर्मपुर वाले घर में गया और आस पास के लोगों ने बताया की तुम लोगों का परिवार हमीरपुर चला गया है। मुझ पर विश्वास कर रोज़ी, मैं कभी तुझे नहीं भूला।

रूबी ने फिर मेरे गले में बाहें डालीं और मेरे होंठ अपने होठों में ले लिए। इस बार वो ज्यादा खुल रही थी। मैंने जब उसकी चूचियां दबाई तो उसने अपना हाथ मेरे हाथ के ऊपर रख कर दबा दिया।

“क्या ये एक संकेत था – शुभ संकेत “?

मैंने भी एक हाथ रूबी के चूतड़ों पर रखा और चूतड़ दबा दिए। मेरा लंड खड़ा होने लगा पैंट के बीच से उभार रूबी कि चूत को दबा रहा था। रूबी मेरे साथ और भी चिपक गयी।

बाकी तो सब ठीक था, मगर मुझे ये समझ नहीं आ रहा था की रूबी ये सब चिपका चिपकी, चूमा चाटी उस लड़की के सामने करने से हिचकिचा क्यों नहीं रही ?

थोड़ी देर में रूबी और मैं अलग हुए तो रूबी ने पूछा,”कितने दिन का प्रोग्राम है ” ?

“एक हफ्ते का ” मैंने जवाब दिया।

वो हंस कर बोली, “कौन सा हफ्ता ? हमारी अदालत वाला पांच दिन वाला या कैलेंडर वाला सात दिन वाला “। वही खनखनाती हंसी।

मैंने हंस कर कहा ,”रूबी तू नहीं बदली – कैलेंडर वाला हफ्ता – सात दिन वाला हफ्ता। आज का दिन और छः दिन और “।

“बढ़िया”, रूबी ने कहा। “आज मंगल है – बुध वीर और शुक्कर तीन दिन। मैं कोर्ट से तीन दिन की छुट्टी ले लेती हूं। जाओ और फ्रेश हो जाओ”।

उसने बाथरूम की तरफ इशारा कर के कहा, “फिर मॉल रोड घूम कर आएंगे”।

गर्म पानी के स्नान से सफर की सारी थकान दूर हो गई। बहुत बड़ा और सब सुविधओं से लैस था बाथ रूम। लगता था अच्छा खासा कमा रही थी रूबी।

तैयार हो कर हम नीचे की तरफ मॉल रोड चले गए – फिर रिज पर जा कर बैठ गए। मेरा हाथ उसकी जांघ पर था, उसकी चूत से चार अंगुल दूर। उसका हाथ मेरी जांघ पर था लंड से थोड़ा ही दूर। उंगली से रूबी मेरे लंड को छू भी रही थी।

“शिमला के रिज पर ऐसे ही रोमांस करते हैं लोग”।

मैंने रूबी से पूछा ,”रूबी तेरे मम्मी पापा कैसे हैं। धर्मपुर में पता लगा था की वो अब हमीरपुर में रहते हैं और तेरा पति राघव कैसा है, खुश है तू उसके साथ ? और ये लड़की – रितू – लगता है तेरे साथ बहुत खुली हुई है “।

“क्या बात है, सारे सवाल अभी ही पूछेगा” ? वो हंस कर बोली।

“मम्मी पापा अब हमीरपुर में ही रहते हैं। मेरे शिमला आने के बाद धर्मपुर में कोई था नहीं। शिमला उनको पसंद नहीं। पापा के सारे पुराने दोस्त हमीरपुर में हैं, वहां उनका वक़्त अच्छा गुज़र जाता है। मम्मी सेहत से ढीली रहती हैं”।

वो बोलती गयी, “राघव ठीक है, जैसे मिलिट्री वाले होते हैं – कड़क, कायदे क़ानून के पक्के, वक़्त के पाबंद।

साल में दो तीन या कभी चार बार आता है। आर्टीलरी यानि तोपखाने की यूनिट में होने के कारण ज्यादातर बॉर्डर पर ही उसकी तैनाती होती है। जब किसी फेमिली स्टेशन पर वो जाता भी है जहां परिवार भी साथ रह सकता है, वहां मैं अपनी वकालत की प्रैक्टिस के कारण नहीं जाती। मेरी महीने कि आमदनी राघव की मोटी तनख्वाह से ज्यादा है”।

रूबी कुछ रुक कर बोली,”और असल बात ये है विक्की कि राघव के घर से ज्यादा समय दूर रहने के कारण उसे अब दूर रहने कि आदत हो गयी है। उसे घर की याद नहीं सताती”।

फिर कुछ रुक कर बोली, “और ना ही शायद घरवाली की “।

क्या मतलब ? छुट्टियों में तो आता ही होगा ? मैने पूछ ही लिया। फिर ऐसा क्यों कह रही हो ?

वो बोली, “मतलब कि छुट्टियों के दौरान कुछ दिन तो वो अपने परिवार के पास चंडीगड़ रहता है। जब वो शिमला आता भी है तो यहां के मिलिट्री क्लब में दारूबाजी, ताश बिलियर्ड्स और गोल्फ खेलने में खुश रहता हैI मेरे साथ उसका कितना वक़्त बीतता होगा उसका तुम समझ ही सकते हो। मगर इसमें उसका कोई कसूर नहीं। ये मिलिट्री वाले ऐसे ही होते हैं । मुझे भी अब इन सब की आदत हो गयी है”।

“फिर भी रूबी, अकेले, मेरा मतलब”….. रूबी ने बात काटते हुए कहा, मैं समझ रही हूं विक्की तेरा मतलब है मेरा जिस्मानी जरूरत कैसे पूरी होती है। मेरा सेक्स – मेरी चुदाई कैसे होती है – यही ना”।

अब मैं हैरान हो गया, “चुम्मा चाटी करना एक बात है, चूत चुदाई लंड कि बात इतना साफ़ साफ़ करना दूसरी बात है”। मैंने धीरे से कहा,”हां”।

“विक्की, सेक्स – चुदाई हर स्वस्थ आदमी या औरत की जरूरत होती है I फिर उसने गोलमोल जवाब दिया – “कैलेंडर वाला एक हफ्ता है न तू यहां – पूरे सात दिन, पता लग जाएगा”। और वो हंस दी – वही खनखनाती हंसी।

मैंने पूछा “और वो लड़की” ?

रितू ? वो बोली, “वो जो हमारे घर दूध देने आता है, वो उसकी बेटी है चार साल से हमारे ही घर रहती है। उसका गांव नीचे की तरफ है, दूर है। रोज़ आना जाना मुश्किल है। बाहरवीं पास है, समझदार है। घर के सदस्य की तरह है। मेरी सारी जरूरतें पूरा करती है, लगभग सारी – हर तरह की। मेरा कुछ भी उससे छुपा नहीं है”।

“सारी जरूरतें पूरा करती है, लगभग सारी – हर तरह की”। क्या मतलब हो सकता था इसका ?

मैंने कहा “रूबी, ये रितू सुन्दर तो बहुत है”।

“क्यों दिल आ गया क्या उस पर ? वो हंसी “अच्छा ? ये बता कितनी सुन्दर लग रही है ? उसकी लेने का मन कर रहा है क्या ? और मैं सुन्दर नहीं लग रही ” ?

मैंने कहा, “नहीं रूबी वो बात नहीं, ऐसे कह दिया। तू तो अब और भी सुन्दर लग रही है – सेक्सी “। मैंने उसका हाथ पकड़ कर दबा दिया और हल्के से उसकी चूत तो छू भर लिया। उसने एक नजर मुझे देखा और मुस्कुरा दी।

“ऐसी मुस्कुराहट ? घर में होते तो चोद ही देता”।

वो बोली, “विक्की सुन्दर और आकर्षक तो तू अभी भी बहुत है, लड़कियां तो बहुत फसाई होंगी तूने और चुदाई भी खूब की होगी”।

“हां फसाई भी और चोदी भी मगर उनमें एक भी तेरे जैसी सुन्दर और सेक्सी नहीं थी”। मैंने रूबी से कहा।

बड़ी ही कामुक नजर से उसने मुझे देखा, “ऐसा क्या ” ?

चलो काफी देर हो गयी है घर चलते हैं “। और उसने मेरा हाथ पकड़ लिया और अपनी चूत पर हल्का सा दबा दिया।

मेरा लंड खड़ा होने लगा। “अब घर चलना ही ठीक था। क्या चुदवाने का मन है रूबी का ? अभी कुछ कहना जल्दबाज़ी थी”।

घर पहुंच कर रूबी ने पूछा,” व्हिस्की पीता है विक्की”? मैंने हां में सर हिलाया।

“बढ़िया, चल उठ “। वो छोटे कमरे की तरफ चल पड़ी। वहां एक कोने में बहुत ही अच्छी बार बनी हुई थी – अलमारी में उम्दा किस्म की विदेशी शराब तरह तरह की – जिन,वोदका स्कॉच की बोतलें रखी थी, एक तरफ एक फ्रिज था। अलमारी के ऊपर के खाने में गिलास रखे थे। मतलब पूरा शराबखाना था – वो भी टॉप क्लास।

उसने रितू को आवाज दी, “रितू कुछ ले कर आना खाने के लिए “।

रितू ट्रे में ड्राई फ्रूट ले आयी और बार की ऊंची टेबल पर रख दी। मैं टेबल के सामने वाले स्टूल पर बैठ गया। मेरे साथ ही रूबी बैठ गयी। रितू ने टेबल पर दो उम्दा किस्म के ग्लास रख दिए। सोडे की बोतल और एक जार में बर्फ। मैंने फिर रितु की तरफ देखा। “सच में ही सुन्दर थी “।

रूबी ने भांप लिया। बोली, “बहुत अच्छी लग रही है क्या विक्की ? चोदेगा ?

मैंने भी कहा, “हां सुन्दर तो है, मगर तेरे से ज्यादा नहीं, और अगर तू चोदने की बात पूछे तो मैं उसे नहीं, तुझे चोदना चाहूंगा – अगर तुझे ऐतराज़ ना हो तो”।

“एतराज़” वाली बात को नज़रअंदा कर के रूबी बोली, “मेरे में अब क्या रखा है बाल बच्चे वाली 36 साल की अधेड़ उम्र की औरत हो गयी हूं। अब तो चूत भी ढीली हो गयी होगी। ये रितु अभी कुंवारी है कड़क है। कसी हुई चूत होगी इसकी। लंड रगड़ के जाएगा इसकी चूत में। चोदने में मजा आ जाएगा।

“36 में कोइ अधेड़ नहीं हो जाता” I मैंने कहा, “मेरे लिए कसी हुई चूत – टाइट या ढीली चूत अब कोइ मायने नहीं रखती। “मेरे मन में तेरी चुदाई की इच्छा इस लिए है क्यों कि मैं तुझ से प्यार करता था – तुझ से शादी करना चाहता था। तेरे साथ शादी की पहली रात गुज़ारना चाहता था – तेरी चूचियां चूसना चाहता था, तेरी चूत चूसना चाहता था। मगर किस्मत को ये नहीं मंजूर था और ये नहीं हो सका। मुझे अब टाइट चूत का कोइ लालच नहीं “।

रूबी ने मेरा हाथ दबा दिया, कस के मेरे होठों पर एक चुम्मा लिया और पूछा, “क्या पियेगा, मैं तो वोदका लूंगी “।

“ये एक तरह से चुदाई के लिए हां थी”।

तो रूबी पीती भी थी ? बहुत हाई सोसाइटी – उच्च समाज – वाली ज़िंदगी जी रही लगती थी।

“रितू , जॉनी की बोतल निकाल ले “। रितू को जैसे सब पता था। उसने “जॉनी वॉकर” और “वोदका प्लस” की बोतलें निकल दी – दोनों इम्पोर्टेड ब्रांड थे।

रूबी बोली, “रितु फिश फ्राई और बटर नान आर्डर करदे। दाल और चावल घर पर बना ले।

“जी अच्छा”। रितू ने पैग बनाये और चली गयी।

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अगला भाग: मेरे बचपन का प्यार रूबी – भाग 3

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