पिछला भाग यहाँ पढ़े – रजनी की चुदाई उसीकी की जुबानी
अगले दिन माँ ने तो कुछ नहीं कहा, दीपक मुझे अजीब नज़रों से देख रहा था। “हे भगवान कहीं इसको भनक तो नहीं लग गयी की मैंने इसे माँ को चोदते देख लिया है, कहीं खिड़की जान बूझ कर तो नहीं खुली छोड़ी गयी जिससे मैं सारा नज़ारा देख सकूं”? उधर सरोज भी मुझे देख देख कर मुस्कुरा रही थी। मैं हैरान थी की आखिर ये हो क्या रहा है ?
दस दिन गुज़र गए। मैं जान चुकी थी की दीपक हर दुसरे दिन माँ को चोदता है। मुझे भी हर चुदाई देखने का चस्का लग गया था। सरोज अब अजीब अजीब सी बातें करने लगी थी, बात को घुमा कर मुझसे जाना चाहती थी मेरा कोइ बॉय फ्रेंड है क्या ? कहाँ तक है हम लोगों की दोस्ती – मैं मतलब समझती थी।
सरोज जानना चाहती थी की क्या मैंने चूत चुदवाई है या नहीं ? मगर क्यों ? कहीं इसने मुझे खिड़की में से चुदाई देखते हुए देख तो नहीं लिया ? क्या ये सरोज माँ और दीपक की चुदाई के बारे में जानती है ?
एक दिन तो कमाल ही हो गया। मैं माँ और दीपक की चुदाई देख कर अपने कमरे की तरफ जा ही रही – जैसे ही रसोई के दरवाजे के सामने से गुज़री अंदर से सरोज ने दबी आवाज में मुझे अंदर बुलाया। मेरे तो पसीने छूट गए। तो मेरा शक ठीक ही था। सरोज जान गयी थी की मैं छुप छुप कर दीपक और माँ की चुदाई देखती हूँ।
मैं रसोई में गयी। सरोज ने पूछा, “क्या देखा ?” मेरी तो आवाज ही नहीं निकल रही थी। वो बोली, “चलो तुम्हारे कमरे में चलते हैं।” मैंने सरोज से पूछा ये कब से चल रहा है।
“क्या कब से चल रहा है “? उसने पूछा। यही सब, मैंने माँ के कमरे की तरफ इशारा करके कहा।”
ओह तुम्हारा मतलब बीबी जी (सरोज माँ को बीबी जी बुलाती थी) और दीपक बाबा की चुदाई का चक्कर”? मैं हैरान हुई की ये कैसे बात कर रही है।
“अरे जीजी ये तो शुरू से – जब से दीपक घर आये हैं तब से ही चल रहा है। बाबू जी को काम से फुर्सत नहीं। ये चूत चुदाई उनके लिए बेमानी है और बीबी जी अभी जवान हैं, उनको लंड चाहिए – वो उनको दीपक बाबा से मिल रहा है “।
मुझे सुन कर बड़ी ही हैरानी हुई। अगर दीपक को चूत ही मारनी है तो सरोज की क्यों नहीं ? सच्चाई तो यही है माँ की चूत 41 साल की उम्र में तो अब भोसड़ा बन चुकी होगी – या फिर वो सरोज को भी चोदता होगा या फिर माँ को चुदाई से मना नहीं कर पाता होगा।
“जो भी हो, घर मैं चुदाई का खेल तो चल ही रहा था”।
मैंने सरोज से पूछ ही लिय। अगर दीपक को चूत ही चाहिए तो तुम भी तो हो। तुम तो जवान भी हो। सरोज ने मेरे गाल पर चिकोटी काटी,”हाँ मैं भी हूँ मगर मेरा काम संतोष बढ़िया चलाता है – आगे और पीछे, दोनों छेद चोदता है। इस लिए जरूरत नहीं पड़ती”। मैं हैरान तो थी, मगर मुझे सरोज की बात पर विश्वास नहीं हुआ।
तभी अचानक सरोज ने मेरी सलवार के अंदर हाथ डाल कर मेरी चूत में उंगली डाल दी और बोली, “अरे इसमें तो बरसात हो रही है। लंड मांग रही है ये”।
बात तो सरोज ठीक ही कह रही थी। लंड तो मांग ही रही थी मेरी चूत। मगर मैं बोली कुछ नहीं – बोलती भी तो क्या बोलती।
ज़रा सा रुकने के बाद सरोज बोली, “चलो”।
मैंने पूछा, “कहाँ” ?
“चलो तो, आज तुम्हारी चुदाई का इंतज़ाम करते हैं “। मैं एक दम ठिठक गयी, “क्या “? मेरे मुंह से आवाज़ नहीं निकल रही थी।
सरोज बोली, “अरे जीजी घबराओ नहीं, चलो “।
“मगर कहाँ “, मैं हैरान थी।
“हमारे कमरे में, संतोष के पास। उसे बोलूंगी तुम्हारी चूत को ठंडा करे “।
“मगर”, सरोज मेरी बात काट कर बोली, “कोइ अगर मगर नहीं, चलो”।
“मगर माँ, दीपक ?” मैंने दबी आवाज मैं पूछा।
सरोज बोली, “दीपक तड़का होने से पहले बाहर नहीं आने वाला, ना ही बीबी जी। दूसरे दीपक तुम्हाई चूत चोदने वाला नहीं जब तक बीबी जी घर में हैं। अगले हफ्ते बीबी जी और बाबू जी तीन दिनों के लिए अम्बाला एक शादी में जाने वाले हैं। दीपक घर पर ही होगा तब उससे चुदवा लेना – अब चलो संतोष का लंड ट्राई करो “। बात करते करते सरोज का कमरा ही आ गया।
मुझे बाहर ही रुकने के लिए बोल कर सरोज अंदर चली गय। कुछ देर बाद बाहर आयी और बोली, “जाओ जीजी अंदर जाओ और मौज लो”। इतना कह कर सरोज ने मुझे अंदर धकेल दिया। मैं दरवाजे के पास ही खड़ी हो गयी। संतोष चारपाई पर बैठा मुस्कुरा रहा था – वो उठा और मुझे पकड़ कर बिस्तर की तरफ ले गया।
संतोष ने मेरी चूचियां पकड़ ली और दबाने लगा। उसने मेरी सलवार का नाड़ा खोला और बिस्तर पर लिटा दिया। मेरी टांगें चौड़ी कर के मेरी चूत चाटने लगा I फिर संतोष ने अपनी जीभ मेरे चूत के दाने भग्नाशा – क्लोरिटिस – पर फेरनी शुरू कर दी। मेरी तो सिसकारियां निकल रही थी। मैंने संतोष का सर चूत से हटाया और दबी आवाज में बोली, मुंह में डालो।
वो एक सेकण्ड के लिए रुका फिर उलटा मेरे ऊपर लेट गया – अब उसका लंड मेरे मुंह में था और वह मेरी चूत चाट रहा था। लंड वाकई मोटा था। लग रहा था चुदाई का सही मजा आने वाला है। अगले पांच सात मिनट तक यही चलता रहा।
फिर संतोष ने अपना लंड मेरे मुंह में से निकला और उठ गया, लगता था गर्म हो गया है। मैं भी तैयार ही थी। संतोष ने मेरे चूतड़ों के नीचे तकिया रख कर मेरी चूत ऊंची की – टांगें फैलाई, लंड मेरी चूत पर रक्खा और फच्च – फच्च की एक आवाज़ के साथ आधा लंड मेरे अंदर था।
कुछ सेकण्ड रुक कर संतोष ने पूरा लंड चूत के अंदर डाल दिया और चुदाई शुरू कर दी। क्या चुदाई थी। हालांकि मैं अपने बॉय फ्रेंड से भी चुदी थी और तुम्हारे (उसने मेरी और इशारा कर के कहा) बॉय फ्रेंड से भी चुदी – लेकिन वो चुदाई जल्दबाज़ी वाली थी – यहाँ संतोष मस्त चोद रहा था – न कोई जल्दी न कोई डर। लगभग बीस मिनट की चुदाई के बाद संतोष ने अचानक ही धक्कों के स्पीड बढ़ा दी लगता था झड़ने वाला था। मैं खुद भी झड़ने के लिए तैयार थी।
अचानक संतोष के मुंह से एक आवाज़ निकली ओ… ओ… आह… आह… मजा आ गया आह… आह… और मेरी चूत उसने अपने गरम गरम वीर्य से भर दी। मैं भी झड़ चुकी थी। मन तृप्त हो गया। दो मिनट के बाद संतोष उठा कपडे उठा कर टॉयलेट में चला गया। मैंने अपनी सलवार से ही चूत साफ़ की – संतोष का लेसदार वीर्य बाहर तक आ गया था। कपड़े पहने और अपने कमरे की तरफ चल पड़ी।
सरोज मेरे कमरे में ही बैठी थी। मुझे उससे शर्म सी आ रही थी – आखिर उसके पति से चुदवा कर आ रहे थी। मेरी नज़रें नीचे की तरफ थी। सरोज उठी और मेरे पास आ कर बोली, “शर्माओ मत जीजी, जब तक यहां हो संतोष से चुदवा सकती हो। मुझ से पूछने की भी ज़रूरत नहीं है। बस जब मौक़ा मिले जाओ और मजे ले कर आ जाओ”।
यह कह कर सरोज जाने लगी, मगर दरवाजे पर रुकी, “और हाँ याद रखना बीबी जी और बाबू जी तीन दिन के लिए अम्बाला जा रहे हैं, दीपक बाबा अकेले होंगे”। इतना कह कर सरोज चली गयी।
मैं भी टॉयलेट में गयी कपड़े उतारे और छह फुट लम्बे शीशे में अपने नंगा जिस्म देखा।संतोष का वीर्य अभी भी मेरी चूत से निकल कर टांगों पर बह रहा था। मैं टॉयलेट सीट पर बैठ गयी और जोर लगा कर सारा वीर्य बाहर निकाला पेशाब किया, स्नान किया और सो गयी। क्या नींद आयी सुबह जब नींद खुली तो नौ बज चुके थे। मुंह धो कर बाहर निकली तो सामने ही माँ थी, “क्या बात है, लगता है आज थकान दूर हुई है, आज तो बड़ी तरोताजा लग रही हो”, कह कर वो चली गयी, मैं शर्मा गयी, सरोज पीछे खड़ी हंस रही थी।
शुक्रवार को मेरे पिता जी (सौतेले) आ गए, माँ तैयार ही थी। अम्बाला अपनी कार से ही जा रहे थे – 80 किलोमीटर ही तो सफर था। जाते जाते माँ बोली अच्छा रजनी तीन या चार दिन लगेंगे। मेरा मन तो हुआ की कहूँ तीन या चार ही क्यों ? चार या पांच क्यों नहीं, पांच या छः क्यों नहीं। मेरी चूत तो दीपक के खूंटे के लिए बेचैन थी।
खैर शाम हुई और सब खाना खा कर इधर उधर समय बिताने लगे। जल्दी सोने की दिनचर्या थी। साढ़े आठ बजे सरोज अपने कमरे की तरफ जाने लगी। जाते जाते बोल गयी, “जीजी एक बात बोलूं मैंने दीपक को बीबीजी की चुदाई करते देखा है। बढ़िया चोदता है। लंड चुसवाने का बड़ा शौक़ीन है, वहीं से शुरू करना”। और वो चली गयी।
मुझे यकीन हो गया दीपक ने सरोज की भी चुदाई की है, वार्ना इसे कैसे पता की दीपक को लंड चुसवाने मैं मज़ा आता है।
मैं भी अपने कमरे में आ गयी और टीवी देखने लगी। साढ़े दस बजे मैं उठी और पानी का जग ले कर पानी लेने के बहाने बाहर निकली। जग रसोई में रख क़र, धीरे से दीपक के कमरे की तरफ गयी। दरवाजे को धीरे से धक्का दिया, दरवाजा खुला ही था। नाईट लैंप में दीपक बिस्तर पर लेटा दिखाई दे रहा था। बनियान और वेस्ट (कच्छे) में। लंड का उभार साफ़ दिखाई दे रहा था।
मेरी हिम्मत जवाब दे रही थी। दीपक और माँ की चुदाई आखों के आगे आ गयी – बढ़िया चुदाई करता था। मैं आगे बढ़ी और जा कर घुटनों के बल पलंग के साथ बैठ गयी। मेरा मुंह दीपक के लंड के बिलकुल सामने था।
थोड़ी देर मैं ऐसे ही बैठी रही, फिर सोचा जब चुदाई की करवानी है तो शर्म कैसे और डर कैसा। मैंने दीपक का लंड धीरे से उसकी वेस्ट से बाहर निकाला और अपने मुंह में ले कर चूसना शुरू कर दिया।